शक्ति,भक्ति और बुद्धि संचय का महापर्व-नवरात्रि
पार्थसारथि थपलियाल
नवरात्रि शब्द का अर्थ है नौरात्रियाँ। सनातन संस्कृति में वे नौ रात्रियाँ बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। अनुष्ठानिक पूजाएँ रात्रि को होने के कारण इन नौ दिनों में नौ रात्रियों का विशेषं महत्व है। सामान्य दुर्गा पाठ,लोग अपनी अपनी सुविधाओं के अनुसार भी करते हैं। कोई नौ आवृति पाठ,कोई 36 आवृति पाठ….करवाते हैं। संकल्पित पाठ पूरा होने के बाद पाठ का दसवां भाग हवन किया जाता है। साल में नवरात्रियाँ 4 बार आती हैं अथवा नवरात्रि में शक्ति स्वरूपा देवी दुर्गा की पूजा आत्म उत्थान और लोक कल्याण के लिए की जाती है।
कई बार लोगों की यह धारणा सुनने में आती है कि जब ईश्वर एक है तो अलग-अलग देवताओं की पूजा क्यों? बात एकदम सही है लेकिन यह भी चिंतन का विषय है कि ईश्वर,देवता और भगवान शब्द के अर्थ अलग अलग हैं,एक नही हैं। आपने राम का नाम भगवान के रूप में सुना होगा, ब्रह्मा,विष्णु, महेश का नाम देवता के रूप में सुना होगा लेकिन ईश्वर को देवता या भगवान के रूप में नही सुना होगा। ये त्रिदेव ईश्वर की तीन शक्तियों के प्रतीक हैं। इसी प्रकार बल,बुद्धि और वैभव के प्रतीक तीन देवियां भी हैं। जिन्हें महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के नाम से जाना जाता है।
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महाकाली बल के प्रतीक, महालक्ष्मी वैभव के प्रतीक और महासरस्वती बुध्दि विद्या के प्रतीक हैं। त्रिदेवी शब्द तीन दैवीय गुणों के प्रतीक हैं। सनातन संस्कृति में विष्णु के उपासकों को वैष्णव,शिव के उपासकों को शैव और शक्ति (देवी) के उपासकों को शाक्त कहते हैं। देवी के भक्त भी दो प्रकार के हैं। एक मंत्र साधना वाले है और दूसरे तंत्र साधना वाले। मूलतः जिन्हें हम दुर्गादेवी कहते हैं इस शृंखला में जितने भी नाम हैं वे शिव-पत्नी पार्वतीदेवी के ही विभिन्न रूप हैं। दुर्गा सप्तशती के तंत्रोक्त रात्रिसूक्त के अंतर्गत ब्रह्माजी द्वारा देवी की स्तुति में कहा गया है-
त्वयेद्धार्यते विश्वम त्वयेतत सृज्यते जगत…. देवी को सृष्टि को धारण करनेवाली सृजन करनेवाली, जगत्जननी,जगत पालक,सृष्टिरूप, स्थित रूप और संहारक रूप में वर्णित किया गया है।
देवी भगवती की सौम्य स्वरूप की स्तुति में कहा गया है-
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य ।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ॥
अर्थात
हे देवी! तुम अपनी शरण में आये प्रत्येक प्राणी की पीड़ा दूर करती हो। हे देवि! हम पर प्रसन्न हो होओ । सम्पूर्ण जगत की माता ! प्रसन्न होओ। विश्व की ईश्वरीय शक्ति! विश्व की रक्षा करो। देवी ! तुम्हीं चराचर जगत की अधीश्वरी हो।
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चार नवरात्रियाँ शरद ऋतु में अश्वनी मास में शुक्लपक्ष प्रतिपदा (एकम/ पड़वा) से नवमी तक,शिशिर ऋतु में पौष माह के शुक्लपक्ष में,बसंत ऋतु में चैत्र माह शुक्लपक्ष में और ग्रीष्म ऋतु में आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष मनाए जाते हैं। पौष माह और आषाढ़ मास के नवरात्रों को गुप्त नवरात्र माना जाता है। दैविक शक्ति अर्जन का पौराणिक महत्व शारदीय नवरात्र और बासंती नवरात्र के दिनों में विशेष होता है। नवरात्र के नौ दिनों में प्रमुख रूप से दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है। सप्तशती का अर्थ है-सात सौ। दुर्गा सप्तशती में उवाच, श्लोक/मंत्र मिलाकर कुल संख्या 700 बनती है इसलिए इस पुस्तक को दुर्गा सप्तशती कहा जाता है। दुर्गा सप्तशती मार्कण्डेय पुराण के अंतर्गत वर्णित है। इसे यूं समझें जैसे भगवदगीता महाभारत का एक अंश है।
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दुर्गासप्तशती पुस्तक में कवच, अर्गला, कीलक, वेदोक्त रात्रिसूक्त, तंत्रोक्त रात्रिसूक्त,श्रीदेव्यथर्वशीर्षम और देवी महिमा के 13 अध्याय के साथ-साथ क्षमा प्रार्थना व आरती जैसे मुख्य चरण हैं। सप्तशती के 13 अध्यायों में पहला अध्याय प्रथम चरित्र,द्वितीय अध्याय को मध्यम चरित्र और पंचम अध्याय को उत्तम चरित्र के नाम से जाना जाता है। दुर्गा सप्तशती के विभिन्न अध्यायों में मधु कैटव वध,महिषासुर सैन्य वध, महिषासुर वध,धूम्रलोचन वध, चण्डमुण्ड वध,रक्तबीज वध,निशुम्भ वध,शुम्भ वध की कथाएँ देवी महिमा के रूप में हैं। दूसरे अध्याय में “सर्वदेव शरीरजम” का वृतांत बहुत महत्वपूर्ण है। इन 13 अध्यायों में कुल 700 श्लोक हैं। इनमें 57 उवाच मंत्र, अर्धशलोक 42 श्लोक 535, अन्य 66 मंत्र हैं। कवच,अर्गला और कीलक ये स्तुति भाग हैं। इनके अलावा तीन रहस्य भाग भी हैं। इनमें आत्मरक्षा, मनोकांक्षा व कीलक में प्राप्ति को स्थिर करने की प्रार्थना है। कवच का अर्थ है सुरक्षित करने का आवरण।
दुर्गा सप्तशती के मंत्र बहुत शक्तिशाली हैं और फलदायी हैं। ब्रह्माजी को जब इनका महत्व पता चला तो उन्होंने शिवजी से प्रार्थना की कि आने वाले समय में लोग इन मंत्रों का दुरुपयोग कर सकते हैं इसलिए इनके प्रभाव को रोकिए। शिवजी ने दुर्गासप्तशती के मंत्रों को शापित कर दिया लेकिन शापविमोचन के माध्यम से उन्हें प्रभावी बनाने का मार्ग दिया। इसलिए दुर्गासप्तशती का पथ आरंभ करने से पहले शाप को विमोचित/ उत्कीलित किया जाता है। पाठ करनेवाले विद्वान पंडित यह सब जानते हैं इसलिए वे शापविमोचन/उत्कीलन की पौराणिक परम्परा का आरंभ और समापन में अवश्य ही निर्वहन करते हैं।
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दुर्गासप्तशती के पाठ की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पाठ करने वाले का उच्चारण शुद्ध और स्पष्ट होना चाहिए। हमारे उच्चारण एक ब्रह्मांडीय ऊर्जा पैदा करते हैं यह ऊर्जा ही ध्वनि तरंगों के माध्यम से उस शक्ति तक पहुंचती हैं जिसकी हम स्तुति कर रहे होते हैं। अगर उच्चारण अशुद्ध हुए तो अर्थ बदल भी सकता है। जैसे यह दृष्टांत दिया जाता है कि पाठ करने वाले पंडित जी की दृष्टि कमजोर होने के कारण पंडित जी अपने यजमान के घर पर पाठ करते हुए कवच का एक श्लोक “भार्याम रक्षतु भैरवी” (अर्थात भैरवी मेरी पत्नी की रक्षा करे।) को पढ़ रहे थे-“भार्याम भक्षतु भैरवी” (भैरवी मेरी पत्नी को खा जाय)। यजमान जी की मनोकामना के विपरीत असर हो गया। वैदिक मंत्र बहुत ही वैज्ञानिक हैं। इसमें बीज मंत्रों का पाठ भी किया जाता है। बीज मंत्र हर कोई वैसे नही पढ़ पाता जैसा पढ़ा जाना चाहिए। ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे..या अन्य मंत्र उनके उच्चारण के घर्षण से जो ऊर्जा सृजित करते हैं वही फलदायी होती है। दुर्गा पाठ करना वैज्ञानिक कार्य है यह श्रमिक कार्य नही है कि किसी को आपने रुपये दे दिए और वह आपके लिए पूजा कर लेगा। यजमान का भक्ति,श्रद्धा और निष्ठा के साथ साथ ब्रह्मश्चर्य और नैतिकता के साथ रहना, पूजा स्थल पर ईश्वर के ध्यान में बैठना,आचार्यों की सेवा करना एक सात्विक वातावरण तैयार करता है।
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आज के दौर में नवरात्रि का हरण व्यावसायिकों ने कर दिया है। लोग नवरात्रि में नौ दिन उपवास घोषित करते हैं,उपवास शब्द का अर्थ है प्रभु के निकट वास करना। संकल्प के साथ निराहार रहना और ईश्वर में मन लगाना। शरीर को शक्ति देने के लिए आवश्यकता के अनुसार 2-3 बार दूध पी लेना। आधुनिक परिभाषा में घोषित रूप में भूखे रहने को उपवास माना जाने लगा है। सहगार के लड्डू, सहगार के नमकीन,सहगार की कचोरी,सहगार का हलवा,सहगार का पोहा,सहगार के आलू…काजू, किसमिस,बादाम…केले,सेब और न जाने क्या क्या खाते रहते हैं। व्रत/उपवास के नाम पर इतना खा लेते हैं, जितना सामान्य दिनों में नही खाते। क्या यही है नवरात्रि? मल्टी नेशनल कंपनियों और चार्वाक परम्परा के व्यवसायियों ने सनातन पथ को भी अपनी चपेट में ले लिया है।
नवरात्रि में शक्ति उपासना की परंपरा प्राचीन है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक इन नौ दिनों में दुर्गा के नौ रूपों का स्मरण पाठ के माध्यम से किया जाता है। ये नौ स्वरूप हैं-प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी…..
शैलपुत्री,ब्रह्मचारिणी,चंद्रघंटा, कूष्मांडा,स्कन्धमाता,कात्यायनी, कालरात्रि,महागौरी और सिद्धिदात्री।
इन दिनों को शक्ति अर्जन के लिए बहुत महत्व दिया गया है और शुभ माना गया है। इसीलिए प्रतापी सम्राट विक्रमादित्य ने चैत्र नवरात्रि में राज्यारोहण किया था। इस दिन को 2080 वर्ष पहले विक्रम संवत नाम से अपनी दैनिक क्रियावों के साथ जोड़ दिया और नया वर्ष चैत्र वर्ष प्रतिपदा से मनाया जाने लगा। इस वर्ष 22 मार्च से नवरात्रि शुरू हो रही हैं,यही दिन विक्रम नव संवत्सर का है। भारतीय नव वर्ष की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
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