एमडीएमएच में 9 वर्षीय बच्ची के फेफड़े में धंसी सुई को निकाला

जोधपुर, शहर के मथुरा दास माथुर अस्पताल के कार्डियोथोरेसिक विभाग में 9 वर्षीय एक बच्ची की फेफड़े में धंसी सुई को सफल ऑपरेशन कर निकाला गया। ऑपरेशन मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत निःशुल्क किया गया।

एमडीएमएच के अधीक्षक डॉ विकास राजपुरोहित ने बताया कि प्राचार्य एवं नियंत्रक डॉ दिलीप कछवाहा के मार्गदर्शन में कार्डियो- थोरेसिक विभाग में 9 वर्षीय एक बच्ची की फेफड़े में धंसी सुई को अस्पताल के डॉक्टरों की टीम ने सफल ऑपरेशन कर निकाल दिया। यह ऑपरेशन मुख्यमंत्री चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत निःशुल्क किया गया।

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उन्होंने बताया कि 9 वर्षीय बच्ची गत डेढ़ माह से दाहिने छाती के दर्द से परेशान थी। बच्ची तथा उसके परिजनों ने बताया कि डेढ़ माह पूर्व सोते समय बच्ची के छाती में यह बड़ी सुई घुस गई थी इस समस्या को लेकर मरीज के परिजनो ने अपने क्षेत्र में परामर्श लिया परंतु लाभ न होने के कारण वे मथुरादास माथुर अस्पताल के कार्डियोथोरेसिक विभाग में भर्ती हुई। जहां एक्स-रे तथा सीटी स्कैन में मरीज के दाहिने फेफड़ों में सुई की पुष्टि हुई।

बच्ची का सफल ऑपरेशन ऑपरेशन डॉ सुभाष बलारा (सहा अचार्य तथा विभागयक्ष)के साथ मिलकर डॉ अभिनव सिंह (सहायक आचार्य) ने किया। इस ऑपरेशन में एनेस्थीसिया विभाग की डॉ गीता सिंगारिया,डॉ देवेंद्र बोहरा,डॉ कश्मीरा शर्मा,स्टाफ रेखा राम और मोनिका शामिल थे।

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उन्होंने बताया कि इस सुई की लंबाई लगभग 5 सेंटीमीटर थी और बच्ची के दाहिने फेफड़े के पोस्टीरियर बेसल सेगमेंट के पैरेंकाइमा में धंसी हुई थी जिसका आगे का सिरा सेगमेंटल bronchus, artery और वेन से सिर्फ एक सेंटीमीटर की दूरी पर था इसलिए ऑपरेशन को करते समय अत्यंत सावधानी की आवश्यकता थी अन्यथा मरीज का फेफड़ा डैमेज हो प सकता था। ऐसे ऑपरेशन को करने के लिए अनुभवी डॉक्टर्स की टीम की आवश्यकता होती है। सुई को निकालने के बाद फेफड़े को रिपेयर कर दिया गया। यह ऑपरेशन लगभग 1 घंटे चला,ऑपरेशन के पश्चात बच्ची का इलाज सीटीवीएस विभाग में चल रहा है। जहां डॉ अंशुमन और डॉ सुखदेव इलाज में मदद कर रहे हैं।

डॉ एसएन मेडिकल कॉलेज के प्रवक्ता डॉ जयराम रावतानी ने बताया कि बच्ची अब पूर्णता स्वस्थ है और परिजन खुश हैं। ऐसे केसेस काफी रेयर हैं और अगर सुई को समय रहते न निकाला जाए तो फेफड़ों में मवाद ( Abscess कैविटी )तथा एंपाईमा बनने का खतरा रहता है।

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