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अपनी और अपनों की अस्मिता के लिए लड़ता रहूंगा मैं जिंदा रहने तक..

काव्य गोष्ठी में जीवन के विविध चरित्रों का शब्द चित्रण

जोधपुर,शहर की प्रतिनिधि साहित्यिक संस्था साहित्य संगम एवं जर्नलिस्ट एसोसिएशन ऑफ राजस्थान (जार) की जोधपुर इकाई के संयुक्त तत्वावधान में नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे एम्पलॉइज यूनियन के सभागार में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में शहर के रचनाकारों ने कविताओं के माध्यम से मनुष्य की जीवटता के साथ ही जीवन के विविध चरित्रों का शब्द चित्रण किया।

गोष्ठी में नामवर शाइर व कहानीकार हबीब कैफी ने गजल ‘मिलने जब जाना उससे रास्ता सुनसान रखना,यूं भी बाजी मार जाना चाहिए,दोस्ती में मर जाना चाहिए’ सुनाकर जिन्दादिली के लिए प्रेरित किया।

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वरिष्ठ साहित्यकार डॉ.सत्यनारायण ने जैसलमेर जिले के अभिशप्त इलाके कुलधरा की व्यथा कथा को रेखांकित करते कविता ‘चिडिय़ा नहीं चहकती यहां, हवा भी डोलती है सहमी-सहमी,हम भी हो जाते हैं खण्डहर,इस खण्डहर में आकर’, विख्यात कवि मिठेश निर्मोही ने मनुष्य की अस्मिता और अन्याय व अत्याचार को चुनौती देते हुए कविता ‘प्रार्थना है यही कि बचा रहे मनुष्य में पानी, मनुष्य व मनुष्य के बीच बची रहे बोली-बानी,अपनी व अपनों की अस्मिता के लिए गांधी की राह पकड़े, लड़ता रहूंगा मैं तुमसे जिन्दा रहने तक’, कवयित्री पद्मा शर्मा ने ‘जिस घर में बच्चे खिलखिला हंसते हैं, उस घर में प्रार्थना की जरूरत नहीं’ की प्रस्तुति देकर बालपन को कुदरती निश्चल व निस्वार्थ चरित्र का चित्रण किया।

कवि सैयद मुनव्वर अली ने गजल ‘हो जहां साजिश की खेती और फरेबों के निशां,आदमी अब हो गया है उस शहर सा आजकल’, नवीन पंछी ने ‘ऐसे उछालो हंसी अपनी कि उन्हें भी मिल जाए,नहीं है जिनके पास हंसी’, अशफाक अहमद फौजदार ने गजल ‘इक लम्हें के लिए जहां रोशन हो जाए, इसलिए हम अपना घर जलाए जाते हैं’ तथा प्रमोद वैष्णव ने ‘या तो सांपों की खुराक बढ़ गई है’ इत्यादि रचनाएं पेश कर खूब दाद बटोरी।

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