शब्द का बढ़ाएं ज्ञान,जिज्ञासा का करें समाधान
शब्द संदर्भ:- (90) दान
लेखक:-पार्थसारथि थपलियाल
जिज्ञासा
पूर्व दिवस की जिज्ञासा का दूसरा शब्द “दान”
समाधान
“दान” शब्द भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। देने की क्रिया ही दान है। कुछ और व्याख्यायित किया जाय तो “वह संपत्ति, भूमि, वस्तु या धन जिस पर देनेवाले का पूर्ण अधिकार हो वह जब अपना अधिकार समाप्त कर किसी दूसरे उस वस्तु का स्वामित्व का अधिकार देता है, उसे दान कहा जाता है।” दान देने के बदले कुछ लेन-देन नही किया जाता है। वह तो वस्तु विनिमय हो जाएगा। एक कहावत है “गाय मारकर जूता दान” अन्यायपूर्ण कृत्य नही किया जाना चाहिए।
दान तीन प्रकार का होता है किसी देवता/ भगवान के प्रति किया गया दान या किसी परमार्थ के लिए किया गया दान सात्विक कहा जाता है। किसी ऐसे व्यक्ति, जिससे हमारा कार्य सिद्ध होता है, ऐसे व्यक्ति को दिया गया दान राजस श्रेणी में आता है। किसी गलत काम करने वाले को, दारू पीनेवाले, जुआ खेलनेवाले, व्यभिचारी अथवा नीच इंसान को दिया गया दान तामसी श्रेणी में आता है।,
श्रीमद भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है
दातव्यम इतियददानं दीयते अनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तददानं सात्विकम स्मृतम।।
जो भी दान दिया जाय वह ऐसे व्यक्ति को दिया जाय जिससे हमारे स्वार्थपूर्ण संबंध नही हों। दान देते समय इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि जहां पर दान दिया जा रहा है वह उपयुक्त स्थान है या नही, समय कैसा है, जिसे दान दिया जा रहा है वह उपयुक्त पात्र भी है या नही।।
दान 16 प्रकार के बताए गए हैं-तुला दान,अन्न दान, धन दान, गाय दान, जल दान, नेत्र दान, रक्त दान, वाक दान (वचन दान) कन्या दान, अभय दान, विद्या दान, श्रम दान, आहारदान, भू-दान, औषधि दान,और ग्रहदान। हर किसी को दान नही लेना चाहिए। सात्विक दान दाता में 7 गुण होने चाहिए- विनम्रता, श्रद्धा, भक्ति, क्षमा, तुष्टि, निरहंकार, और पवित्र भाव। ऐसे दान देने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
किसी भी व्यक्ति को धन संचय करने की बजाय धन दान करना चाहिए। धन हम न साथ में लाये थे न ले जाएंगे। आपने पुरुषार्थ कर धन कमाया, यहां से जाने से पहले ईश्वर का धन्यवाद करें। किसी जरूरतमंद के काम आएं। किसी गरीब की बेटी के विवाह या किसी सदस्य की बीमारी या इसी तरह की अवस्थाओं में दान करना चाहिए।
धन की तीन गतियां होती हैं– उपभोग, दान और चोरी या विवाद में खर्च। भारत में अनेक महादानी हुए हैं जैसे- दधीचि ऋषि, राजा शिवि, राजा हरिश्चन्द्र, युवराज कर्ण, आदि। दान करते हुए व्यक्ति में गुरुर न हो कि मैं दान कर रहा हूँ। इस करने से दान की भावना समाप्त हो जाती है। दान करने के बाद पश्चाताप हो, दान बिना श्रद्धा के दिया जाय या किसी को अपमानित कर दान दिया जाय, ये तीनों दान क्रमशः असुर, राक्षस और पिशाच श्रेणी में आते हैं। इस प्रकार का दान निष्फल होता है।
दान का एक किस्सा- अब्दुल रहीम खान खाना जिन्हें रहीम नाम से जाना जाता है। बहुत दानी थे। ये तुलसी दास जी के समकालीन कवि थे। इन्हे दान देने की प्रवृत्ति पर एक बार तुलसी दास जी ने उन्हें एक दोहा भेजा-
ऐसी देनी दें जू किट सीखे हो सेन
ज्यों ज्यों कर ऊंचो करो त्यों त्यों नीचे नैन।।
रहीम दास जी ने भी तुरंत उत्तर लिख भेजा-
देनहार कोई और है भेजत सो दिन रैन
लोग भरम हम पर करें, याते नीचे नैन।।
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