लेखक:-पार्थसारथि थपलियाल
जिज्ञासा
पौड़ी गढ़वाल से देवेंद्र कुकरेती की जिज्ञासा है कि आदरणीय, पूजनीय, और माननीय शब्दों में क्या अंतर है?
समाधान
पुराने ज़माने में युद्ध भूमि के लिए जानेवाले राजा या योद्धा की पत्नी पूजा का थाल लेकर रण की ओर जाने से पहले तिलक करती, रक्षा सूत्र बांधती, आरती उतारती और युद्ध में सफल होने की कामना करती। विजयी होकर लौटने पर भी ऐसी ही पूजा की जाती थी।
भारतीय संस्कृति में पूजा आमतौर पर देवताओं का अशीर्वाद प्राप्त करने के लिए की जाती है इसलिए वे सभी जड़-चेतन, प्रकृति और पुरुष सभी पूजनीय हैं। सम्मान जब भी और जिस भी रूप में किया जाय मन से, वचन से और कर्म से सामान भाव से किया जाना चाहिए।
भारतीय संस्कृति में ‘मातृदेवो भवः’, ‘पितृदेवो भवः’, ‘आचार्य देवो भवः’ ‘अतिथि देवो भवः’ का संस्कार रहा है। अतिथि के आगमन पर वचनों से स्वागत करना, बैठने की जगह देना, पानी, चाय और नाश्ता देना, भोजन करवाना, इज़्ज़त से बात करना व्यवहार का भाग रहा है।
आवत ही हर्षे नही, नैनन में नही स्नेह
ता घर कभी न जाइये, कंचन वर्षे मेह।।
किसी आयोजन में ऐसे महानुभाव पधार गए जिन्हें औपचारिक सम्मान की ज़रूरत है तो हमारे व्यवहार में अंतर आ जाता है। बड़े बुजुर्गों, विद्वानों, गणमान्य व्यक्तियों या अन्य सम्माननीय लोगों का आदर, सत्कार करने से व्यक्ति की कीर्ति/ यश गाथा बढ़ती है। मान प्रतिष्ठा बढ़ती है। कहते हैं न “जिसमें लचक है उसी में जान है, अक्कड़ खास मुर्दे की पहचान है।
जिज्ञासा के तीनों शब्द इन्ही भावों के अंतर्गत आते हैं।
संस्कृत भाषा के पुज धातु पर नीय प्रत्यय लगाकर शब्द बना पूजनीय। पूजनीय का अर्थ है पूजा करने योग्य। इस श्रेणी में हम जिनकी पूजा कर सकते हैं उनमें माता, पिता, गुरु और देवता हैं। हम अपने परिवार की परंपराओं के अनुसार दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई, मामा-मामी जिन्हें भी पूजा के योग्य मानते हैं उन संबोधन में पूजनीय लगा सकते हैं। इसी प्रकार आदर शब्द पर “णीय” प्रत्यय लगने से नया शब्द बना आदरणीय।
इसका अर्थ हुआ आदर के योग्य। हम आदर अपने से बड़ों को देते है जैसे-दीदी-जीजा,भैया-भाभी आदि जो उम्र में बड़े हैं और उनका प्यार, स्नेह हमें मिलता है। समाज के वे व्यक्ति जो प्रतिष्ठित हैं और अतिथि आदणीय होते हैं, इसी प्रकार वे गुरुजन जिन्होंने हमें शिक्षित-दीक्षित किया वे भी इसी श्रेणी में आते हैं। हमारे घरों मे पूजा,अनुष्ठान आदि कार्य के माध्यम से वैदिक परंपराओं का निर्वहन करने वाले पंडित जी, गुरुजी या व्यास जी भी आदरणीय हैं। समाज के अन्य व्यक्ति जिन्हें आप सम्मान देना चाहते हैं वे “आदरणीय” श्रेणी में आते हैं।
इसी प्रकार मान शब्द पर “नीय” प्रत्यय लगाने से शब्द बना माननीय। माननीय शब्द का अर्थ हुआ मान पाने के योग्य। न्यायिक उच्च पदाधिकारियों, न्यायाधीशों, विधायकों, सांसदों, मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, विधायिकाओं और संसद के पीठासीन अधिकारियों, राज्यपालों, प्रधानमंत्री, उपराष्ट्रपति, राष्ट्रपति, मुख्यंयाधीश, राजनयिक पदाधिकारियों, विदेशी मेहमानों आदि के लिए “माननीय” संबोधन शिष्टाचार के तौर पर किया जाता है।
भारत में राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए संबोधन में महामहिम (Excellency) शब्द का प्रयोग किया जाता रहा है। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के कार्यकाल में उन्होंने इस शब्द पर विराम लग दिया। यद्यपि विदेशी राष्ट्राध्यक्षों, शासनाध्यक्षों और राजनयिकों के लिए संबोधन में महामहिम (Excellency) शब्द का प्रयोग अब भी होता है।
एक और शब्द भी विभिन्न आयोजनों में सुना जाता है। वह है “सम्माननीय”। भाव है समान के योग्य। बड़े पदाधिकारी, बड़े विद्वान, प्रतिष्ठित व्यक्ति, ख्याति के कारण जो चर्चा में हैं, उन्हें “सम्माननीय” संबोधित किया जाता है। इसमें वे लोग भी शामिल हैं जिन्होंने समाज सेवा के क्षेत्र में अनुकरणीय योगदान दिया है।
इसमें बहुत कठोर परंपरा नही है, लेकिन बड़े औपचारिक कार्यक्रमों में छोटी-छोटी बातें बड़े-बड़े विवाद पैदा कर देते हैं। प्रशासनिक,न्यायिक और राजनयिक मामलों में शिष्टाचार सोच समझकर निभाना चाहिए।
यदि आपको भी हिंदी शब्दों की व्यख्या व शब्दार्थ की जानकारी चाहिए तो अपना प्रश्न “शब्द संदर्भ” में पूछ सकते हैं।