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डॉ.व्यास के बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए-प्रो.सारंगदेवोत

डॉ.व्यास के बताए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए-प्रो.सारंगदेवोत

संगीत के सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक पक्ष के जानकार थे डॉ.व्यास-पद्मश्री उमाकान्त

उदयपुर,जनार्दनराय नागर राजस्थान विद्यापीठ (डीम्ड टूबी विश्वविद्यालय), उदयपुर के संघटक साहित्य संस्थान की ओर से आयोजित समारोह में बहुमुखी,बहुआयामी व्यक्तित्व डॉ. राजशेखर व्यास स्मृति ग्रन्थ का विमोचन शनिवार को कुलपति सचिवालय सभागार में हुआ।

प्रारम्भ में अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ शुरू हुए कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत उपरणे से किया गया। प्रारम्भ में स्वागत उद्बोधन राजेन्द्रशेखर व्यास ने दिया। साहित्य संस्थान के निदेशक प्रो. जीवनसिंह खरकवाल ने डॉ.राजशेखर व्यास के जीवन वृत्त पर प्रकाश डाला।

मुख्यअतिथि पद्मश्री उमाकान्त गुन्देचा ने गुरु तुल्य डॉ.राजशेखर व्यास की बहुमुखी प्रतिभा के सांगितिक पक्ष का बखान करते हुए कहा कि डॉ.व्यास ऐसे व्यक्ति थे जिनके पास हर प्रश्न का सशक्त तर्क के साथ जवाब होता था। गुरुजी का संगीत के सैद्धान्तिक एवं प्रायोगिक पक्ष पर पूरा अधिकार था।
अमूमन होता यह है कि संगितज्ञों की एक ही पक्ष पर मजबूत पकड़ होती है। डा.व्यास वर्तमान समय के एक मात्र जानकार थे।

अध्यक्षता करते हुए विद्यापीठ के कुलपति कर्नल प्रो.एसएस सारंगदेवात ने कहा कि डॉ.राजशेखर व्यास मेरे मार्गदर्शक रहे हैं। दिन हो चाहे रात मैं जब भी अपनी समस्या या जिज्ञासा के शमन के लिए उनसे सम्पर्क करता तो वे तत्काल इनका समाधान कर मुझे सन्तुष्ट कर कर देते थे। ऐसे ज्ञान के भण्डार बिरले ही होते हैं, उनका इस तरह चले जाना मेरे लिए अपूरणीय क्षति है। डॉ. व्यास का विश्विद्यालय की विभिन्न विधाओं में नवाचार को लेकर विशिष्ट योगदान रहा।

अतिविशिष्ट अतिथि एमपीयूएटी के पूर्व कुलपति प्रो.उमाशंकर शर्मा ने डॉ. व्यास द्वारा शिक्षा जगत को दिए गए योगदान एवं उनके साथ जुड़ाव का संस्मरण सुनते हुए कहा कि डा.व्यास मूलतः इतिहासकार थे किन्तु उनकी विभिन्न विषयों पर गहरी पकड़ थी। उदयपुर के प्रसिद्ध जगदीश मन्दिर में व्यास पीठ पर बैठकर श्रीमद्भागवत कथा का प्रवचन भी करते थे। उनके द्वारा रचित पुस्तकें कई वर्षों तक माध्यमिक शिक्षा बोर्ड,अजमेर के पाठ्यक्रम में सम्मिलित रही। डॉ व्यास मेरे प्रेरणा पुंज थे।

विशिष्ट अतिथि प्रो.प्रेम भण्डारी ने एक शेर से शुरू करते हुए कहा कि “कुछ लोग आए वक्त के सांचे में ढल गए, कुछ लोग आए वक्त का ढांचा बदल गया.. से अपनी बात शुरू करते हुए कहा कि डॉ. राजशेखर व्यास ऐसी शख्सियत थे जो अपने ज्ञान के बल पर जर्रे को आफताब और आफताब को जर्रा बनाने की क्षमता रखते थे। ऐसे बिरले व्यक्ति से मैं बचपन से सम्पर्क में रहा और उनसे मैंने बहुत कुछ सीखा। उनका आत्म विश्वास और निर्णय क्षमता अपार थी। मेरे जीवन पर उनका बहुत बड़ा प्रभाव है। मेरे दिलो दिमाग में हर वक्त वे ही छाए रहते हैं। डॉ.भण्डारी अपनी गज़ल “कौन ये मुझमें बोल रहा है खामोशी के बाद,जहन के पर्दे खोल रहा है खामोशी के बाद।’ डॉ.व्यास को समर्पित कर अपनी बात को विराम दिया।

इस अवसर पर डॉ. व्यास के व्यक्तित्व पर डॉ.इकबाल सागर ने सिर्फ एक शेर “ऐ दिलेजार हौसला रखना,आज का दौर तुम पर भारी है। हमसे ये कह के सो गया सूरज,अब सितारों की जिम्मेदारी है’ पेश कर डॉ.व्यास के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन साहित्य संस्थान के शोध अधिकारी डॉ. कुलशेखर व्यास ने किया जब कि धन्यवाद सोम शेखर व्यास ने दिया।

इस अवसर पर प्रो.प्रतिभा,डॉ.मनीष श्रीमाली,डॉ.उग्रसेन राव,कृष्णकान्त कुमावत,जितेन्द्र चौहान,डॉ. प्रकाश शर्मा,संगीता जैन,नारायण पालीवाल, शोयब कुरेशी,कमला शर्मा, कन्हैया लाल मेहता,वैद्य निर्भयंकर दीक्षित, डा.शम्भुशंकर पण्डया,जगतशिरोमणि दीक्षित,नारायण चरण पण्ड्या, पुनीत जोशी,प्रदीप द्विवेदी, चिन्मय दीक्षित, प्रद्युम्न कुमार मेहता,दिलीप दीक्षित, दीपक दीक्षित,गोपालकृष्ण व्यास, नरोत्तमकृष्ण व्यास, शरदेन्दु शेखर व्यास, इन्दुशेखर व्यास, तारा दीक्षित, मंगला दीक्षित,अरविन्द जोशी, राज्यश्री मेहता, शकुन व्यास,चित्रा व्यास,रश्मि व्यास, लतिका पण्डया, नेत्री व्यास,भव्यशेखर व्यास, प्रणम्य शेखर व्यास, भौम्य शेखर व्यास के साथ शहर के गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।

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