शब्द का बढ़ाएं ज्ञान,जिज्ञासा का करें समाधान

लेखक:- पार्थसारथि थपलियाल

जिज्ञासा

ऋषिकेश उत्तराखंड से दीपक थपलियाल ने जानना चाहा है कि अभिवादन के लिए नमस्ते, नमस्कार, प्रणाम, चरणस्पर्श, दंडवत प्रणाम, साष्टांग प्रणाम आदि उपयोग में लाए जाते हैं, इनमे अंतर क्या है?

समाधान

भारतीय सभ्य होते समाज में पालनकर्ताओं, शुभेच्छा रखनेवालों, दीक्षित करनेवालों और रक्षा- सुरक्षा करनेवालों का बहुत बड़ा महत्व रहा है। साधु, सन्यासी, तपस्वी, गुरु, आचार्य, आयु में बड़े, ज्ञान में बड़े, उदार चरित वाले, रिश्ते-नाते में बड़े आदि कई वर्ग हैं जिनका अभिवादन व्यक्तिगत या सामुहिक तौर पर किया जाता है। अभिवादन एक प्रकार का स्वागत भी है, सम्मान भी है। परंपराओं ने समाज को सिखाया कि अभिवादन कैसे किया जाना चाहिए।

नमस्ते और नमस्कार में ज्यादा भेद नही है। नमः और ते की संधि से बना नमस्ते। नम का अर्थ है झुकना और ते का अर्थ है आपको। स्पष्टत: भाव है मैं आपको सम्मान स्वरूप नमन करता हूँ। दूसरा अभिवादन है-नमस्कार। इसका भी अर्थ नमन करने से है लेकिन कर सहित। दोनों ही स्थितियों में हाथ छाती के मध्य भाग में हाथ खड़े कर, फिर हल्की सी आंख बंदकर झुकना एक क्रिया है। साथ ही मुंह से बोलना। नमस्कार। इसकी अनुक्रिया में जिसे नमस्कार किया जा रहा है वह बड़ा है तो कुछ न कुछ शुभाशीष कहेगा। जैसे आयुष्मान भवः। दीर्घायु रहो। खुश रहो। सुखी रहो। तरक्की करो। ऐश्वर्यवान बनो आदि आदि।

समान उम्र के हैं तो नमस्कार या नमस्ते का उत्तर नमस्कार या नमस्ते ही होगा। अति आदर के पात्र व्यक्तियों को प्रणाम करना उपयुक्त रहता है। प्रणाम हाथ जोड़कर नमस्ते की तरह भी किया जा सकता है और चरण स्पर्श करके भी। चरणस्पर्श जब भी किये जाएं चरणस्पर्श करने वाले को बैठना नही है झुकना है। दोनों पांवों के अंगूठे के अग्र भाग को छूकर प्रणाम बोलना होता है, जिस बड़े व्यक्ति को यह सम्मान दिया जा रहा है वह (पुरुष है तो) चरणस्पर्श करनेवाले की पीठ पर थपकी देकर आशीर्वाद देगा और महिला है तो सिर के ऊपर हाथ रखकर आशीर्वचन कहेगा, स्पर्श नही करेगा।

इस वर्ग में अपने कुटुम्ब के उम्र में बड़े, रिश्ते में बड़े, कुलपुरोहित, गुरु आदि आते हैं। चरणस्पर्श यजमान लोग अपने गुरुओं का करते हैं अथवा उम्र, नाते में छोटे लोग अपने से बड़ों के पांव छूते हुए कहते हैं “पाय लागूं”। मंदिर में भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने, किसी सिद्ध पुरुष का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लोग दंडवत प्रणाम करते हैं। दंडवत से आशय है सीधी लकड़ी की तरह गुरु के पांव छूते हुए ज़मीन पर लेट जाना। इसी प्रकार साष्टांग प्रणाम भी किया जाता है। प्रणाम करनेवाले के शरीर के आठ अंग भूमि को स्पर्श करते हों।

भारत मे विभिन्न स्थितियों में अथवा विभिन्न अंचलों या समूहों में अभिवादन के भावाभिव्यक्ति के रूपों को जानिये-
शैव सम्प्रदाय में ॐ नम: शिवाय। जै भोलेनाथ की। बम्मबोले।
वैष्णव सम्प्रदाय में नमो नारायण। जै श्रीकृष्ण:। राधेकृष्णा। राधे-राधे। जै सिया राम। शाक्त लोग (शक्ति के उपासक) जै माता की। जै माँ भवानी। माता रानी की जै। मिथिलांचल में जय सीता राम, बिहार में कष्टों में जय सियाराम। कहीं कहीं आदर सत्कार के लिए हरी ॐ भी कहा जाता है। बनारस में जय भोले नाथ की और हरिद्वार में हरि हर गंगे आमतौर पर सुनाई देता है।

सेना और पुलिस में अभिवादन के लिए “जय हिंद” शब्द के साथ सेल्यूट किया जाता है। सिंधी समाज मे जय झूले लाल कहा जाता है। आर्य समान और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में नमस्ते शब्द से ही अभिवादन किया जाता है। पश्चमी उत्तरप्रदेश, हरियाणा, राजस्थान में किसान वर्ग राम राम शब्दों से अभिवादन करते हैं। नाथद्वारा में पुष्टि मार्गी भी जै श्रीकृष्णा कहते हैं।

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पश्चमी राजस्थान में खम्मा घणी, मेवाड़ में बड़ो हुकुम। छत्तीसगढ़ और झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में जुहार कहते हैं। सिख लोग सत श्री अकाल कहते हैं। केरल के लोग नमस्कारम, कर्नाटक के लोग नमस्कारा, आंध्र/तेलंगाना में नमस्कारलू, तमिलनाडु में वणक्कम कहते हैं। ओडिशा में नमस्कार अधिक उपयोग में होता है। जैन समाज मे “जय जिनेन्द्र” कहा जाता है। भारत में नमस्ते, नमस्कार और प्रणाम सामान्य रूप से अभिवादन के लिए उपयोग में लाये जाते हैं। आप खोज करेंगे तो आपको अभिवादन के अद्भुत प्रकार समाज में मिल जाएंगे।

जीवन में अभिवादन की आदत छोड़नी नही चाहिये। अहंकार किस बात का? न साथ कुछ लाये थे न ले जाएंगे। सम्मान पात्र का ही किया जाता है। कहते हैं-

अभिवादनशीलस्य नित्यंवृद्धोपसेविन:
चत्वारि तस्य वर्द्धंते, आयुर्विद्या यशोबलम।

(जो लोग अभिवादनशील हैं नित्य वृद्ध लोगों की सेवा करते हैं उनकी आयु, विद्या, यश और बल इन चार वृतियों में वृद्धि होती है।) अभिवादन के जो भी स्वरूप हैं भारतीय संस्कृति में यह माना जाता है यह सम्मान आत्मा के प्रति है जो दोनों में है। आत्मा ईश्वर का सूक्ष्म रूप है जैसे ईशावास्योपनिषद में लिखा है ईश्वर सब जगह विद्यमान है। इसका भाव यह भी है यत पिंडे तद ब्रह्माण्डे।

आकाशात पतितं तोयँ यथा सागर गच्छति।
सर्वदेव नमस्कारम केशवं प्रति गच्छति।।

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