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दो दिवसीय कालबेलिया संगीत और नृत्य उत्सव शुरू

दो दिवसीय कालबेलिया संगीत और नृत्य उत्सव शुरू

  • चौपासनी एवं जसवन्तथड़ा में लोक लहरियों ने किया मंत्र मुग्ध
  • अभिभूत हो उठे देशी-विदेशी पर्यटक और कलाप्रेमी

जोधपुर,राजस्थान पर्यटन विभाग एवं यूनेस्कों के संयुक्त तत्वावधान में कालबेलिया संगीत और नृत्य का दो दिवसीय उत्सव शनिवार को शुरू हुआ। इसके अन्तर्गत पूर्वाह्न में चौंपासनी गांव में तथा अपराह्न बाद जसवंतथड़ा में कालबेलिया नृत्य की परंपरागत लोक सांस्कृतिक विरासत का जीवंत प्रदर्शन हुआ।

इन कार्यक्रमों में सुप्रसिद्ध कालबेलिया गुरु लोक कलाकार कालूनाथ कालबेलिया,सुवा देवी,सुरमनाथ, समदा,आशा सपेरा,चंदना आदि मशहूर लोक कलाकारों ने अपने आकर्षक कार्यक्रमों ने समा बांध दिया। इस दौरान ब्रिटिश कांउसिल के निदेशक जोनाथन के. रेड्डी,यूनेस्को टीम से अमिताभ भट्टाचार्य,मेहरानगढ़ के खरमांश बोहरा,देशी-विदेशी पर्यटकों,कॉलेज विद्यार्थियों, कला प्रेमियों, कलाकारों आदि ने इन लोक कलाओं और मनोरम नृत्य प्रस्तुतियों का आनंद लिया।

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इन सभी ने कालबेलिया गीत,नृत्यों की कार्यशाला में हिस्सा लेते हुए लोक कलाकारों और नृत्यांगनाओं के साथ संवाद करते हुए कला जगत के उनके अब तक के अनुभवों की यात्रा और लोक नृत्य के निरंतर अभ्यास आदि के बारे में जाना तथा इनके कलाकौशल तथा कालबेलिया कला के संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार आदि की मुक्त कण्ठ से सराहना की। उल्लेखनीय है कि यह आयोजन अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण एवं संवर्धन तथा सुदृढ़ करने के उद्देश्य से राजस्थान पर्यटन विभाग द्वारा यूनेस्को के सहयोग से आयोजित विभिन्न प्रवृत्तियों का अहम हिस्सा है।

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उत्सव के माध्यम से राजस्थानी विरासत से रूबरू होने के अवसर का पूरा-पूरा लाभ लिया जा रहा है। यहां की अनमोल एवं लोक लुभावी विरासत की शिक्षा और परंपराओं में दिलचस्पी रखने वालों के लिए अनुभवी लोक कलाकारों के बीच पारंपरिक संस्कृति व कला को देखने-समझने का यह यादगार मौका सिद्ध हो रहा है। उत्सव के दौरान पश्चिमी राजस्थान के लोक संगीत और नृत्य की प्रस्तुति के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम की श्रृंखला शनिवार को शुरू हुई।

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यूनेस्को की सूची में समाहित है

कालबेलिया गीत और नृत्य 2010 में मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की यूनेस्को की प्रतिनिधि सूची में शामिल है। स्थानीय भाषा में ‘काल’ का अर्थ सांप और ‘बेलिया’ का अर्थ दोस्ती है। कालबेलिया सपेरे के रूप में जीवनयापन करने वाला एक खानाबदोश समुदाय था,जो विशेषकर जोधपुर जिले के चौपासनी प्रतापनगर और धोला क्षेत्र में रहता है।

इस समुदाय द्वारा किये जाने वाले नृत्य सांप की गतिविधियों पर आधारित हैं। कालबेलिया नर्तकियों द्वारा अपने हाथों से की गई कशीदाकारी वाले परिधानों के साथ ही आंचलिक पहचान रखने वाले आभूषण धारण किए जाते हैं तथा पारम्परिक वाद्य यंत्र पूंगी के साथ किये जाने वाले इनकी विभिन्न प्रकार की नृत्यकलाओं ने इन्हें देश-दुनिया में विशेष पहचान व ख्याति दी है।

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