दूसरे दिन दुबई और उज़्बेकिस्तान के नाटकों का मंचन
- जोधपुर इंटरनेशनल थियेटर फेस्टिवल
- तकनीक और रंगमंच पर हुआ रंग मंथन
- दूसरे दिन दुबई और उज़्बेकिस्तान के नाटकों का मंचन
जोधपुर,राजस्थान संगीत नाटक अकादमी जोधपुर द्वारा आयोजित जोधपुर इंटरनेशनल थियेटर फेस्टिवल के दूसरे दिन रविवार को दुबई में बसे भारतीय कलाकारों द्वारा नाटक ’धी’ व
दूसरा नाटक उज्बेकिस्तान का ‘टू किल ऑर नॉट टू किल’ का प्रभावी मंचन किया गया।
नाटक ‘धी’ का प्रभावी मंचन
रविवार को फेस्ट के दूसरे दिन डॉ.एसएन मेडिकल कॉलेज के सभागार में सायंकाल महुआ कृष्णदेव के निर्देशन में पहला नाटक ’धी’ दुबई में बसे भारतीय कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किया गया। ‘धी’ नाटक का कथानक स्त्री-पुरुष और युद्ध, समाज निर्माण,महिला संसार आदि के इर्द-गिर्द है।
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महाभारत के परिप्रेक्ष्य पर आधारित इस कहानी ने उन अनछुए पहलुओं से महुआ ने अवगत कराया जिसे आज तक किसी ने नहीं उठाया। पुरुष युद्ध करते हैं,महिलाएं परिणाम के साथ जीती हैं। अति प्राचीन काल से,समाज ने युद्धों और आतंक को देखा है जिससे मानव परिवार तनावग्रस्त हो गया है और सामाजिक ताना-बाना टूट गया है। विश्व स्तर पर सशस्त्र संघर्षों में मानवीय पीड़ा का पैमाना और गंभीरता खतरनाक गति से बढ़ रही है। इन संघर्षों ने अनगिनत लोगों को उनके घरों से निकाल दिया है।
महिलाएं इन परिणामों पर जीती हैं और प्रतिक्रिया करती हैं,फिर भी वे बमुश्किल निष्क्रिय होती हैं। वे शोक मनाती हैं,दर्द से लड़ती हैं और खुद को नया रूप देती हैं,अपनी पहचान का पुनर्निर्माण करती हैं और युद्ध द्वारा आकार दिया गया एक नया भविष्य बनाती हैं। महिलाएं राजनीतिक हिंसा की शिकार नहीं हैं। ‘धी’ के माध्यम से उजागर किया गया है कि वास्तव में सत्य इसके विपरीत है।
महिलाएं राजनीतिक उत्पीड़न का विरोध करने, संघर्षों को निपटाने और अपने समाज के पुनर्निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ऐसी दुनिया में जहां संघर्ष समाधान को आम तौर पर पुरुष राजनेताओं और विशेषज्ञों के क्षेत्र के रूप में चित्रित किया जाता है,वहां महिलाओं के लिए बहुत कम मान्यता है राजनीतिक हिंसा के केंद्र में और संघर्ष समाधान में उनका योगदान ख़ास भूमिका में रहा है।
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‘टू किल ऑर नॉट टू किल’ का भावपूर्ण मंचन
समांरोह में दूसरा नाटक ‘टू किल ऑर नॉट टू किल’ उज़्बेकिस्तान के निर्देशक ओवल्याकूली खोड़जाकुड़ी द्वारा निर्देशित एवं राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की स्नातक झिलमिल हजारिका द्वारा एकल प्रस्तुति के रूप में अभिनीत किया गया। इस नाटक का कथानक भी स्त्री-पुरुष और समाज के सम सामयिक मनोविज्ञान के कई रहस्यों औ मिथकों पर केन्द्रित है। इसमें स्पष्ट किया गया है कि यह कैसी दुनिया है? यह महिलाओं के खिलाफ बलात्कार और हिंसा का युग है। हमारे प्रिंट और टीवी मीडिया ऐसी नृशंस घटनाओं और अमानवीय कहानियों से भरे पड़े हैं। हम क्या कर सकते हैं? यहाँ इस छोटे से काम में हम शास्त्रीय युग के एक पुरुष चरित्र और एक महिला चरित्र को देखने की कोशिश करते हैं जो अपने लिंग के सभी शक्ति संघर्ष से गुज़रे थे और अत्यधिक हिंसा के शिकार भी थे।
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मेडिया के बारे में यूरिपिड्स का चरित्र-चित्रण प्रेम,अत्यधिक भावनाओं और आवेशपूर्ण प्रतिशोध के आंतरिक संघर्षों को प्रदर्शित करता है। मीडिया को व्यापक रूप से एक प्रोटो-नारीवादी पाठ के रूप में इस हद तक पढ़ा जाता है कि यह एक पितृसत्तात्मक समाज में एक महिला होने के नुकसान की सहानुभूतिपूर्वक पड़ताल करता है,हालाँकि इसे स्त्री- द्वेषी दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति के रूप में पढ़ा गया है। हालांकि इन पितृ सत्ताओं के लिए सबसे आम जगह साहित्य में है जैसे उपन्यास,नाटक, नॉनफिक्शन आदि। ये महिलाओं के आर्थिक,राजनीतिक,सामाजिक और मनोवैज्ञानिक उत्पीड़न को या तो मजबूत करते हैं या कम करते हैं, अक्सर विवाद पैदा करते हैं और आलोचना का कारण बनते हैं।
नारीवादी और अन्य पाठक,लेखक विलियम शेक्सपियर का दुःखद नाटक हैमलेट एक ऐसी कहानी है जो एक पितृसत्तात्मक समाज की विशेषताओं को प्रदर्शित करती है और एक महिला परिप्रेक्ष्य को स्वीकार करने में विफल रहती है। नारीवादी आलोचना के प्रयोग से पता चलता है कि शेक्सपियर हेमलेट में पात्रों के अपने चित्रण में सेक्सिस्ट है, और पाठक को नाटक के दौरान पात्रों और उनकी बातचीत की और समझ विकसित करने की अनुमति देता है।
पूरे नाटक के दौरान हैमलेट के गुस्से की अभिव्यक्ति संभव है क्योंकि वह अपने पूरे प्लस और माइनस पॉइंट्स के साथ एक इंसान है। उसका गुस्सा, आंशिक रूप से, उसकी माँ के साथ एक शक्ति संघर्ष है। हैमलेट क्लॉडियस को मारने के लिए एक मास्टर प्लान बनाता है जब उसे पता चलता है कि क्लॉडियस ने अपने पिता के कान में जहर डालकर उसकी हत्या कर दी थी। वह अपने उतावले व्यवहार को प्रदर्शित करता है जो इस भावना पर उसके क्रोध की अभिव्यक्तियाँ हैं जैसे कि वह एक कमजोर स्थिति में है।
हैमलेट ओफेलिया की हीनता की शोषित स्थिति का उपयोग उसे हेरफेर करने और उसे नुकसान पहुंचाने के अवसर के रूप में करता है। वह जानबूझकर आहत करने वाले अपने बयानों में लापरवाही से ईर्ष्या और असुरक्षा को दूर करता है। इसका तात्पर्य यह है कि उसके पास महिला आकृतियों के प्रति एक आंतरिक कमजोरी है, जिसके कारण वह भयभीत और घृणास्पद महसूस करता है। चूँकि क्रोध भय का परिणाम है,हेमलेट को सबसे अधिक डर अपनी कमज़ोरी से लगता है, शायद वासना या अपनी माँ के प्रति शक्तिहीनता से। हालांकि हम हैमलेट के गुस्से के कारण के बारे में अनुमान लगा सकते हैं, लेकिन मेडिया की भावनाओं के बारे में अनुमान लगाना मुश्किल है।
निर्देशकों का सम्मान
राजस्थान संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष बिनाका जेश मालू ने दोनों निर्देशकों का स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया।
इससे पूर्व दोपहर में रंग मंथन टॉक शो में रंगमंच एवं रंग तकनीक विषय पर उपयोगी संवाद कार्यक्रम आयोजित हुआ। इसमें राजस्थान विश्वविद्यालय नाट्य विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर शिवा प्रसाद टुमू ने राज्य मेला प्राधिकरण के उपाध्यक्ष एवं प्रदेश के वरिष्ठ रंगधर्मी रमेश बोराणा,नाट्य विभाग त्रिशूर केरल से आए डॉ. अभिलाश पिल्लई,असम की झिलमिल हजारिका आदि से रंगमंचीय विषयों पर विस्तार से चर्चा की।
संवाद मंथन में यह निष्कर्ष निकल कर सामने आया कि रंगमंच तकनीक के लिये नहीं,अपितु तकनीक रंगमंच के लिए है,अतः इसका संतुलन ही प्रदर्शन की जीवंतता को क़ायम रख पाएगा।
नाट्य लेखन पर दिन में संवाद,शाम को नाटक मंचन
समारोह में सोमवार 20 मार्च को प्रातः 11 बजे होटल घूमर में बीएम व्यास एवं राघवेन्द्र रावत से ‘बदलते सामाजिक परिवेश का नाट्य लेखन’ विषय पर संवाद करेंगे आशीष पाठक एवं शाम 7 बजे इला अरुण अभिनित नाटक ‘पीछा करती परछाइयां’ का मंचन होगा।
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