संत साहित्य लोक मार्गी साहित्य है- मालचंद तिवाड़ी

जोधपुर, जेएनवीयू के राजस्थानी विभाग द्वारा ऑनलाईन फेसबुक लाइव पेज पर गुमेज व्याख्यानमाला अंतर्गत राजस्थानी संत साहित्य और वाणियां विषय पर बोलते हुए राजस्थानी भाषा के ख्यातनाम रचनाकार, साहित्यवेता मालचंद तिवाड़ी ने कहा कि राजस्थानी भाषा का सम्पूर्ण संत साहित्य बुनियादी रूप से लोकमार्गी साहित्य है।

राजस्थानी विभागाध्यक्ष एवं गुमेज व्याख्यान माला की संयोजक डॉ. मीनाक्षी बोराणा ने बताया कि मालचंद तिवाड़ी ने संत-असंत की चर्चा करते हुए कहा कि तुलसीदास ने रामचरित मानस में एक साधु के चरित्र को कपास की भांति बताया है और कहा की आज के युग में संत असंत दोनों ही मौजूद हैं। उन्होंने राजस्थानी संत साहित्य की पृष्ठ भूमि के बारे में बताते हुए कहा कि प्रदेश की संत परम्परा बहुत ही गौरवशाली रही है।

माया से परे झांक कर आत्म स्वरूप का जो दर्शन कर लेता है वही संत कहलाता है। उन्होने दो तरह के संतो का उल्लेख करते हुए बताया कि एक तो वह संत जो कोई न कोई सम्प्रदाय स्थापित कर लेते हैं, दूसरे प्रकार के संत जिनका कोई सम्प्रदाय नही है। जैसे मीरा बाई,भूरी बाई उनका कोई सम्प्रदाय नही है। मीरा बाई अपने साहित्य के सृजन के लिए ही जानी जाती है। राजस्थान में लगभग 22 संतों सम्प्रदायों का उल्लेख मिलता है।

तिवाड़ी ने कहा कि संत साहित्य सभी के लिए हितकारी साहित्य है। प्रत्येक संत सम्प्रदाय का अपना अपना उद्बोधन, अभिवादन पद्धति होती है, अभिवादन उस सम्प्रदाय के साहित्य का भी प्रतिपादन करता है। उन्होंने जाम्भोजी और जसनाथी सम्प्रदाय के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा संतों के लिए साहित्य लेखन जरूरी था इस सम्बन्ध में कहा कि राजस्थान के सभी संत मुख्यत: कवि थे और वह पद्य में रचनाएं करते थे। लोग उनकी वाणियों को याद रख सके इसीलिए वह अपने सम्प्रदाय की शिक्षाओं को वाणियों के माध्यम से फैलाते थे, इसलिए उनके द्वारा कहे गये छंद लोक कंठों में अपना स्थान बना सके। उन्होंने जीव रक्षा के लिए सन्त पीपा के दोहों का उदाहरण भी दिया। उन्होंने शास्त्र और लोक के भेद का उदाहरण सहित बताते हुए कहा कि शास्त्र हमेशा में लिखित तथा लोक हमेशा मौखिक रूप में मिलता है।

मालचंद तिवाड़ी ने राजस्थानी संतों की वाणियों के छंदों में हैली, हरजस, पद, वाणी आदि के बारे में विस्तार से बताया और कहा कि संत काव्य में जो छंद है वह शास्त्रीयता से मुक्ति लिये नजर आते हैं। उन्होंने कहा कि वाणियां विशेष रूप से यह शिक्षा देती है और मनुष्य को इस प्रश्न से रूबरू करवाती है कि सृष्टि में व्यवहार, आचरण केसा होना चाहिए। यह वाणियां सम्पूर्ण जीवन चरित्र के पक्ष को सामने लाती हैं। वाणियां कबीर, दादू, रैदास, रज्जब सहित राजस्थान के सभी संतों के सम्प्रदाय का निरूपण करती है। उन्होंने कहा कि संत समाज का समाज शास्त्रीय पहलू तो है ही साथ ही उसका अर्थशास्त्रीय पहलू भी है।

इस ऑनलाईन व्याख्यानमाला में देश भर से बड़ी संख्या में साहित्यकार,विद्वान, शोधार्थी और विद्यार्थी जुडे रहे। प्रमुख रूप से नीरज दैया, रमेश बोराणा, डॉ गजेसिंह राजपुरोहित, डॉ. धनंजया अमरावत, डॉ. सुरेन्द्र स्वामी, डॉ लक्ष्मीकांत व्यास, तरूण दाधीच, भंवरलाल सुथार, राकेश सारण, डॉ श्याम सुन्दर, डॉ जितेन्द्र सिंह आदि थे।

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