कथक को विश्व पटल की ऊंचाइयों तक ले जाने वाले पद्म विभूषण,बिरजू महाराज अनंत में विलीन

कथक को विश्व पटल की ऊंचाइयों तक ले जाने वाले पद्म विभूषण,बिरजू महाराज अनंत में विलीन

कथा कहे शो कत्थक कहलावे

संकलनकर्ता:- सतीश चंद्र बोहरा

जोधपुर,विश्व विख्यात कथक नृतक पंडित बृजमोहन मिश्र,बिरजू महाराज का रविवार को निधन हो गया। उनके निधन से संगीत व नृत्य जगत में शोक की लहर छा गई। विरजु महाराज (4 फ़रवरी1938-16 जनवरी 2022) प्रसिद्ध भारतीय कथक नृतक थे। वे शास्त्रीय नृत्य कथक के लखनऊ  कालिका-बिन्दादिन घराने के अग्रणी नृतक थे। पंडित जी कथक नृतकों के महाराज परिवार के वंशज थे, जिसमें अन्य प्रमुख विभूतियों में इनके दो चाचा व ताऊ,शंभु महाराज एवं लच्छू महाराज; तथा इनके पिता एवं गुरु अच्छन महाराज भी आते हैं। हालांकि इनका प्रथम जुड़ाव नृत्य से ही है, फिर भी गायकी पर भी अच्छी पकड़ थी, तथा ये एक अच्छे शास्त्रीय गायक भी थे। उन्होंने कथक नृत्य में नये आयाम नृत्य-नाटिकाओं को जोड़कर उसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। कत्थक हेतु ”’कलाश्रम”’ की स्थापना भी की है। इसके अलावा विश्व भ्रमण कर सहस्रों नृत्य कार्यक्रम करने के साथ-साथ कथक शिक्षार्थियों हेतु सैंकड़ों कार्यशालाएं भी आयोजित की।

कथक को विश्व पटल की ऊंचाइयों तक ले जाने वाले पद्म विभूषण,बिरजू महाराज अनंत में विलीन

बिरजू महाराज अपने चाचा, शम्भू महाराज के साथ नई दिल्ली स्थित  भारतीय कला केन्द्र, जिसे बाद में कथक केन्द्र कहा जाने लगा; उसमें काम करने के बाद इस केन्द्र के अध्यक्ष पद पर भी कई वर्षों तक आसीन रहे। वहां से सेवानिवृत्त होने पर अपना नृत्य विद्यालय कलाश्रम भी दिल्ली में ही खोला।

आरम्भिक जीवन

बिरजू महाराज का जन्म कथक नृत्य के लिये प्रसिद्ध जगन्नाथ महाराज के घर हुआ था, जिन्हें लखनऊ घराने के अच्छन महाराज कहा जाता था। ये रायगढ़ रजवाड़े में दरबारी नर्तक हुआ करते थे। इनका नाम पहले दुखहरण रखा गया था, क्योंकि ये जिस अस्पताल पैदा हुए थे, उस दिन वहाँ उनके अलावा बाकी सब कन्याओं का ही जन्म हुआ था, जिस कारण उनका नाम बृजमोहन रख दिया गया। यही नाम आगे चलकर ‘बिरजू’ और उससे ‘बिरजू महाराज’ हो गया। उन्हें उनके चाचा लच्छू महाराज एवं शंभु महाराज से प्रशिक्षण मिला। विरजु महाराज ने अपने जीवन का प्रथम गायन सात वर्ष की आयु में दिया। 20 मई, 1947 को जब ये मात्र 9 वर्ष के थे पिता का स्वर्गवास हो गया। परिश्रम के कुछ वर्षोपरान्त इनका परिवार दिल्ली में रहने लगा।

कथक को विश्व पटल की ऊंचाइयों तक ले जाने वाले पद्म विभूषण,बिरजू महाराज अनंत में विलीन

बिरजू महाराज ने मात्र 13 वर्ष की आयु में ही नई दिल्ली के संगीत भारती में नृत्य की शिक्षा देना आरम्भ कर दिया था। उसके बाद उन्होंने दिल्ली में ही भारतीय कला केन्द्र में सिखाना आरम्भ किया। कुछ समय बाद उन्होंने कथक केन्द्र (संगीत नाटक अकादमी की एक इकाई) में शिक्षण कार्य आरम्भ किया। यहां ये संकाय के अध्यक्ष थे तथा निदेशक भी रहे। तत्पश्चात वहीं से सेवानिवृत्ति हुए। इसके बाद कलाश्रम नाम से दिल्ली में ही एक नाट्य विद्यालय खोला।
उन्होंने सत्यजीत राय की फिल्म  शतरंज के खिलाड़ी की संगीत रचना की, तथा उसके दो गानों पर नृत्य के लिये गायन भी किया। इसके अलावा वर्ष 2002 में बनी हिन्दी फ़िल्म देव दास में एक गाने काहे छेड़ छेड़ मोहे.. का नृत्य संयोजन भी किया। इसके अलावा अन्य कई हिन्दी फ़िल्मों जैसे डेढ़ इश्किया, उमराव जान तथा संजय लीला भन्साली  निर्देशित बाजी राव मस्तानी में भी कथक नृत्य का संयोजन किया।

पुरस्कार

बिरजू महाराज को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन हेतु राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार
बिरजू महाराज को दिया। इस क्षेत्र में उन्हें आरम्भ से ही काफ़ी प्रशंसा एवं सम्मान मिले, जिनमें 1986 में पद्म विभूषण,संगीत नाटक अकादमी  पुरस्कार तथा कालिदास सम्मान  प्रमुख हैं। साथ ही इन्हें काशी हिन्दू विश्वविद्यालय एवं खैरागढ़ विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि मिली। 2016 में हिन्दी फ़िल्म बाजीराव मस्तानी में “मोहे रंग दो लाल.. गाने पर नृत्य-निर्देशन के लिये फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला। 2002 में लता मंगेश्कर पुरस्कार।
भरत मुनि सम्मान 2012 में सर्वश्रेष्ठ नृत्य निर्देशन हेतु राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार फिल्म विश्वरूपम के लिये मिला।

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