देशभर में दौड़ रहे हैं जोधपुर रेलवे वर्कशॉप में बने एनएमजीएचएस डिब्बे
- अब तक 101 विशेष डिब्बे राष्ट्र को समर्पित
- रेलवे के रिटायर डिब्बे भी होते है बहुत काम के
जोधपुर,(डीडीन्यूज)। देशभर में दौड़ रहे हैं जोधपुर रेलवे वर्कशॉप में बने एनएमजीएचएस डिब्बे।उत्तर पश्चिम रेलवे के जोधपुर रेलवे वर्कशॉप में खासतौर से निर्मित एनएमजीएचएस ट्रेन के डिब्बे देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
इसे भी पढ़ें – जोधपुर-हावड़ा सुपरफास्ट 28 को रद्द और 3 को रीशेड्यूल
बिना खिड़की और और बंद दरवाजों वाली एनएमजीएचएस ट्रेन में माल लदान के प्रयोग में लाए जाने वाले एनएमजीएचएस डिब्बे दरअसल ट्रेनों के वो कोच होते हैं जिनका 25 वर्षों तक उपयोग लेने के बाद रेलवे यात्री सेवा की दृष्टि से रिटायर कर चुका होता है,लेकिन रिटायर हो चुके कोच को भी मॉडिफाई कर रेलवे उसकी उपयोग अवधि 10 वर्ष और बढ़ा देता है जिसे रेल की भाषा में एनएमजीएचएस(न्यूली मॉडिफाईड गुड्स साइड) कहा जाता है।
भारतीय रेलवे के प्रमुख जोधपुर रेलवे वर्कशाप में रेलवे के रिटायर हो चुके डिब्बों को बहुद्देश्यीय एनएमजी एचएस कोचों में तब्दील करने का काम पिछले चार वर्षों से चल रहा है तथा वर्कशॉप द्वारा अब तक इस तरह के 101 डिब्बे तैयार करके राष्ट्र को समर्पित किया जा चुका है तथा रेलवे बोर्ड से प्राप्त लक्ष्यों के अनुरूप यह महत्वपूर्ण कार्य निरंतर जारी है।
जोधपुर डीआरएम पंकज कुमार सिंह का इस संबंध में कहना है कि रेलवे में माल लदान की दृष्टि से एनएमजीएचएस डिब्बों की महत्वपूर्ण भूमिका है तथा निजी कंपनियों की ओर से सुरक्षित माल लदान के लिए इनकी डिमांड भी लगातार बढ़ती जा रही है।
उन्होंने बताया कि रेल पटरियों पर 25 वर्षों तक दौड़ने के बाद आईसी एफ कोच को पैसेंजर ट्रेन से रिटायर कर दिया जाता है और ऐसे डिब्बों को एनएमजीएचएस रैक के नाम से ऑटो कैरियर के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है,तो उसकी सभी खिड़कियां और दरवाजे सील कर दिए जाते हैं।
सिंह बताते हैं कि इस वैगन को इस तरह से तैयार किया जाता है ताकि इसमें कार,ट्रैक्टर,मिनी ट्रक और दुपहिया वाहनों को आसानी से लोड-अनलोड किया जा सके। इसके अतिरिक्त इस तरह के डिब्बे में रेफ्रिजरेटर की तरह रैक्स सिस्टम भी विकसित किया गया है जिससे इसमें सब्जियों का लदान भी किया जाता है।
डिब्बे को मॉडिफाई करने के दौरान उसके भीतर से सभी सीटों,लाइट और पंखों को हटा कर लंबा हॉल नुमा आकार दे दिया जाता है और रोशनी के लिए सिर्फ डिब्बे की छत पर होल रखे जाते है ताकि शॉर्ट सर्किट की आशंका न हो। कोच के पिछले हिस्से में एक बड़ा दरवाजा बनाया जाता है ताकि आसानी से सामान लोड या अनलोड किया जा सके।
एमएमजी डिब्बे और जोधपुर रेलवे वर्कशॉप
मुख्य कारखाना प्रबंधक मनोज जैन बताया कि जोधपुर रेलवे वर्कशॉप से पहला एनएमजी कोच 23 नवंबर 2020 को तैयार होकर निकला जिसकी सफलता को देखते हुए उसे 2020-21 में 35, 2021-22 में 10 और 2023-24 में 29 तथा चालू वित्त वर्ष में 120 रिटायर आईसीएफ डिब्बों को एनएमजीएच एस डिब्बों में तब्दील करने का लक्ष्य दिया गया है,जिसमें से 14 जनवरी तक 27 एनएमजीएचएस डिब्बे तैयार कर मंडलों को उपयोग के लिए दे दिए गए हैं। उनका कहना है कि लक्ष्यों की पूर्ति कारखाना को मिलने वाले कंडम डिब्बों की आपूर्ति पर निर्भर करती है।
एक एनएमजीएचएस बनाने पर आता है इतना खर्च
सीनियर डीसीएम विकास खेड़ा ने जानकारी दी कि एक रिटायर हो चुके आईसीएफ डिब्बे को वर्कशॉप में एनएमजीएचएस डिब्बे में तब्दील करने में करीब साढ़े ग्यारह लाख रुपए की लागत आती है और इसे सामान्य तौर पर 16 दिनों में तैयार कर दिया जाता है। बड़ी बात यह है कि इसके लिए गार्ड एसएलआर, जनरल और स्लीपर डिब्बे ही काम में लिए जाते हैं तथा भारतीय रेलवे में इन डिब्बों का वाणिज्यिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण उपयोग है।