मारवाड़ के अमर शहीद बाल मुकुंद बिस्सा को भावपूर्ण श्रद्धांजलि

मारवाड़ के अमर शहीद बाल मुकुंद बिस्सा को भावपूर्ण श्रद्धांजलि

मारवाड़ के अमर शहीद बाल मुकुंद बिस्सा को भावपूर्ण श्रद्धांजलि

शहादत का दिवस विशेष

जोधपुर,देश के अमर सेनानी बाल मुकुन्द बिस्सा का निधन 1942 की 19 जून को पुलिस पहरे में जोधपुर के विंडम अस्पताल जिसे आज महात्मा गांधी अस्पताल कहते हैं, में एक नजर बंद राजनैतिक कैदी की स्थिति में हुआ था। जोधपुर में लोक नायक जयनारायण व्यास के नेतृत्व में उत्तरदायी शासन के लिए जो लोक आंदोलन चल रहा था उसी आन्दोलन के सिलसिले में राज्य भर में दमन और गिरफ्तारियों का तांता लगा हुआ था। बालमुकुन्द बिस्सा भी उसी आंदोलन के सिलसिले में भारत रक्षा कानून के अन्तर्गत 9 जून 1942 को जोधपुर में गिरफ्तार कर लिए गए थे।

जोधपुर में भारत रक्षा कानून के अन्तर्गत सेंट्रल जेल जोधपुर में नजरबन्दी में जाते ही बालमुकुन्द बिस्सा ने राजबंदियों के प्रति राज्य के दुर्व्यवहार के विरोध में अनेक अन्य साथियों के साथ भूख हड़ताल शुरू करदी थी। नजरबंद राजबंदियों की यह हड़ताल संभवतः 15 जून तक चली थी। भूख हड़ताल में बालमुकुन्द बिस्सा बहुत कमजोर हो गए थे उनका रक्तचाप गिर गया था और उनकी नाड़ी की गति भी धीमी पड़ गई थी। भूख हड़ताल तोड़ने के तत्काल बाद उनके शरीर पर प्रकृति का दूसरा आघात हुआ वे सनस्ट्रोक से आहत हो गए। रोग के इस नए आक्रमण की ओर जेल अधिकारियों ने ध्यान नहीं दिया। चिकित्सा के लिए बार-बार अनुरोध करने पर भी चिकित्सा की कोई व्यवस्था जेल के नजरबंदी वार्ड में नहीं की गयी।

19 जून को बालमुकुन्द बिस्सा जी की हालत अत्यंत शोचनीय हो गई तब उन्हें पहले नजरबंदी वार्ड से जेल अस्पताल पहुंचाया गया बाद में बड़े विंडम अस्पताल में चिकित्सा के लिए भिजवा दिया, जहां19 जून को पुलिस के पहरे में बालमुकुन्द बिस्सा ने दम तोड़ दिया।

सारे शहर में बालमुकुन्द बिस्सा के मृत्यु का समाचार बिजली की तरह फैल गया तथा उनके अन्तिम दर्शन करने के लिए सारा शहर उमड़ पड़ा। अस्पताल के बाहर लगभग 50- 60 हजार लोग एकत्रित हो गए। उपस्थित जनता ने यह निश्चय किया कि महान सेनानी बालमुकुन्द बिस्सा की शव यात्रा जोधपुर भीतरी बाजारों में से निकाली जाय लेकिन जोधपुर राज्य की परम्परा थी कि शहर परकोटे के बाहर का शव शहर में नहीं जा सकता था, विंडम अस्पताल शहर पनाह के बाहर स्थित है। राज्याधिकारियों ने यह निषेधाज्ञा प्रसारित कर दी कि शव यात्रा शहर में से होकर शमशान नहीं जा सकती। राज्याधिकारियों ने शहर का जालौरी दरवाजा बंद करवा दिया साथ ही शहर में प्रविष्ठ होने के सभी मार्गों पर पुलिस और सेना तैनात करदी गई।

नव मेदिनी बालमुकुन्द बिस्सा का शव उठाए हुए सोजती दरवाजे पर पहुंचते उसके पहले-पहले वह दरवाजा भी बन्द कर दिया गया। सोजती गेट पर लगभग 1 लाख स्त्री पुरुष एकत्रित हो गए। भीड़ आगे पास नहीं हो रही थी।
राज्याधिकारियों ने भीड़ को तीतर- बीतर करने के लिए संगीन लाठी चार्ज किया और जनता पर रसाले के घोड़े दौड़ाए गए जिससे सैकड़ों लोग घायल हो गए। सोजती गेट पर युद्ध के मैदान जैसा दृश्य उपस्थित हो गया। जनता को शहर से बाहर 5 मील लम्बे पहाड़ी इलाकों को पार करके श्मसान पहुंचना पड़ा।

राजस्थान के इतिहास में यह एक ऐसी ऐतिहासिक शव यात्रा थी जिसका दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। बाल मुकुन्द बिस्सा का दाह संस्कार भले ही राजकीय सम्मान के साथ न किया गया हो परन्तु जोधपुर की जनता ने जो प्यार श्रद्धेय बिस्सा को दिया वह किसी परम भाग्यशाली व्यक्ति को ही प्राप्त हो सकता है।

शहादत के समय उनकी उम्र केवल 34 वर्ष की थी उनका जन्म सन 1908 में जोधपुर राज्य की डीडवाना तहसील के पीलवा ग्राम में एक सामान्य पुष्करणा ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का व्यवसाय कलकत्ता में था और उनकी प्रारम्भिक शिक्षा कलकत्ता में ही हुआ। ततपश्चात उन्होंने जोधपुर को ही अपनी कर्म और धर्म स्थली बना लिया था।

आजादी के बाद उनकी अमर स्मृति हेतु जालोरी गेट के बाहर नगर पालिका ने उनके नाम से पार्क और जोधपुर जिला कांग्रेस कमेटी ने संगमरमर पत्थर की प्रतिमा निर्माण करवा स्थापित की थी। जंगे आजादी के अमर शहीद श्रद्धेय बालमुकुंद बिस्सा जी की आज 80 वीं पुण्यतिथि पर उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि।

-रमेश बोराणा

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