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शब्द संदर्भ:- (98) धर्म

लेखक – पार्थसारथि थपलियाल

जिज्ञासा

पंचकुला (हरियाणा) से एके आर्य ने लिखा धर्म पर बड़ी बड़ी बातें होती हैं, लेकिन बिरले लोग ही सही जानते हैं। धर्म और सनातन धर्म शब्दों का वास्तविक अर्थ क्या है?

समाधान

धर्म किसी भी पदार्थ, जीव-जंतु, वनस्पति प्राणी या मानव का वह गुण होता है,जो उसने धारण किया होता है। आग का धर्म है जलना, हवा का बहना धर्म है जल का धर्म है ठंडा करना। सूर्य का धर्म है प्रकशित होना और तपिश देना। प्रत्येक पदार्थ, जीव-जंतु, प्राणी वनस्पति या मानव की दो दो वृतियां या गुण होते हैं। एक है आचार (स्वयं अपनाये जानेवाले गुण) और दूसरा है- व्यवहार (दूसरों के प्रति किये जाने योग्य गुण)। मानवीय चिंतन में यह पाया गया कि कम से कम तीन गुण मानव धर्म के लिए आवश्यक हैं- सदाचार, न्याय और समानता। इन स्थितियों में धर्म का अर्थ कर्तव्य है। यथा-पति धर्म, पिता धर्म, पुत्र धर्म, लोक धर्म, राजधर्म, मानव धर्म, इहलोक धर्म, परलोक धर्म इत्यादि। धर्म की परिभाषा एक शब्द में करना कठिन है। मुख्यतः यही कहा जाता है धारयते इति धर्म:। जो धारण किये जाने योग्य है वही धर्म है।

मनु ऋषि ने धर्म के दस लक्षण बताये हैं

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम् ॥

अर्थात

धैर्यवान होना, क्षमाशील होना, वासनाओं पर नियंत्रण रखना, चोरी न करना, मन, वचन और कर्म से बाह्य और आंतरिक शुचिता रखना, इंद्रियों को वश में रखना, बुद्धिमत्ता का उपयोग, ज्ञान प्राप्ति, मन से, वचन से कर्म से सत्य व्यक्त करना, और क्रोध न करना धर्म के ये दस लक्षण हैं।

कणाद ऋषि ने कहा

यतोअभयुदय निश्रेयस सिद्धि: स धर्म:
जो इस लोक में उन्नति कारक हो और वह परलोक में मोक्षदायक हो वह धर्म है। इसलिए वे कर्म या व्यवहार जो लोक कल्याण की भावना से किये) जाय वही धर्म है। अतः अच्छे कर्म (पुण्य कर्म) और बुरे कर्म (पाप कर्म) का ध्यान रखना सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए आवश्यक है।

“यदि आप भी जानना चाहते हैं किसी हिन्दी शब्द व्याख्या व अर्थ तो अपना प्रश्न शब्द संदर्भ में पूछ सकते हैं”