जल संरक्षण समय की आवश्यकता- शेखावत

जल संरक्षण व संवर्धन की परम्पराएं: लूणी नदी के विशेष संदर्भ में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला शुरू

जोधपुर,जल संरक्षण समय की आवश्यकता-शेखावत। दीनदयाल शोध संस्थान,मेहरानगढ़ म्यूजिय़म ट्रस्ट एवं इण्टैक जोधपुर चैप्टर ओर से इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के संयुक्त तत्वावधान में जल संरक्षण व संवर्धन की परम्पराएं:लूणी नदी के विशेष संदर्भ में दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारंभ आज मेहरानगढ़ के चौकेलाव महल में किया गया। कार्यशाला का उद्घाटन मुख्य अतिथि केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने किया। उन्होंने कहा कि जल संरक्षण समय की आवश्यकता है। जल संरक्षण व संवर्धन के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी है। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व सांसद गजसिंह ने की। विशिष्ट अतिथि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र के सदस्य सचिव सच्चिदानन्द जोशी तथा मुख्य वक्ता दीनदयाल शोध केन्द्र के महासचिव अतुल जैन एवं बाड़मेर इण्टैक के संयोजक रावल किशनसिंह थे। इण्टैक जोधपुर चैप्टर के संयोजक डॉ.महेन्द्रसिंह तंवर ने बताया कि इस दो दिवसीय कार्यशाला में पांच तकनीकी सत्रों का आयोजन किया जा रहा है तथा पांच अक्टूबर को शाम सवा चार बजे समापन समारोह आयोजित होगा। समापन समारोह के मुख्य अतिथि पद्मश्री लक्ष्मणसिंह लापोडिय़ा होंगे एवं अध्यक्षता जस्टिम रघुवेन्द्रसिंह राठौड़ करेंगे। अमनसिंह व ठाकुर उम्मेदसिंह अराबा विशिष्ट अतिथि के रूप में सम्मिलित होंगे। दो दिवसीय कार्यशाला में दिल्ली, गुजरात,अलवर,उदयपुर,जोधपुर, बाड़मेर,पाली,नागौर इत्यादि के विषय विशेषज्ञ भाग ले रहे हैं और इसके संरक्षण,संवर्धन के साथ ही लूणी प्राचीन इतिहास और इसकी महत्ता से रूबरू करवाएंगे।

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लंबे समय से हो रहा नदी के संरक्षण का प्रयास
प्राचीन एवं ऐतिहासिक लूणी नदी के संरक्षण और संवर्धन के लिए पिछले कई वर्षों से आमजन और विशिष्ट लोगों द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं। लूणी नदी का उद्गम राजस्थान के अजमेर जिले में 772 मीटर की ऊंचाई पर स्थित नाग की पहाडिय़ों से होता है। ये नदी अजमेर से निकलकर दक्षिण-पश्चिम राजस्थान नागौर, जोधपुर,पाली,बाड़मेर,जालोर जिलों से होकर बहती हुई गुजरात के कच्छ जिले में प्रवेश करती है और कच्छ के रण में विलुप्त हो जाती है। करीब 495 किलोमीटर लम्बाई समेटे इस नदी की राजस्थान में कुल लम्बाई 330 किलोमीटर है। इस नदी की विशेषता यह है कि इस नदी का पानी बाड़मेर के बालोतरा गांव के बाद खारा हो जाता है। प्रारम्भिक 100 किलोमीटर तक इसका पानी मीठा रहता है। इसके पानी से कई जिलों में सिंचाई की जाती है। स्थानीय लोगों द्वारा इस नदी की पूजा-अर्चना की जाती है। प्राकृतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी इस नदी का विशेष महत्व रहा है। गत एक दशक से अधिक समय से उपेक्षा और आमजन की अवहेलना के कारण इस नदी के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। इस नदी के संरक्षण की मांग लम्बे समय से की जा रही है।

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