गड्ढे निकाल कर करते हैं पूजन
माता शीतला की एक मूर्ति ऐसी भी..
जोधपुर,जिले के बिलाड़ा तहसील के कापरड़ा गांव में शीतला अष्टमी पर पूजा के लिए गड्ढा खोदकर मूर्ति निकाल कर पूजा होती है। पूजा के बाद फिर से मिट्टी से गड्ढा भर दिया जाता है। यहां करीब 6 से 7 फीट गहरा गड्ढा खोद कर माता की मूर्ति की पूजा करते हैं। गांव वालों का कहना है कि मेघवाल समाज के मौहल्ले में 30 साल पुराना शीतला माता का थान है। इसे अन्य स्थान पर प्रतिष्ठित करने के लिए मुहूर्त नहीं निकला इसलिए इसे कहीं ओर प्रतिष्ठित नहीं किया गया है।
घरों के बीच सड़क के 5 फिट नीचे जमींदोज है शीतला माता का थान, गांव वाले हर साल गड्ढा खोदकर पूजा करते फिर पाट देते अब यही परम्परा बन गई है। गांव वालों का कहना है कि कभी यह मंदिर गांव मे रास्ते पर था फिर सड़क बनती गयी, हर बार लेवल बढऩे से थान नीचे होता गया।
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सड़क के नीचे 30 साल पुराना शीतला माता का थान
सड़क से करीब 6-7 फीट नीचे भले ही जमीदौज हो गया लेकिन यहां रहने वाले लोगों के मन में आस्था आज भी बरकरार है। प्रतिवर्ष होली के बाद 7 दिन तक शीतला माता को ठंडा करने के लिए इस सडक़ पर जल छिडक़ाव किया जाता है। समाज सेवी नथमल खीची ने बताया कि शीतला अष्टमी के लिए सीसी ब्लॉक लगी इस सडक़ की खुदाई कर यहां स्थापित प्रतिमाओं को बाहर निकालकर साफ सफाई की जाती है। इसके बाद महिलाएं घरों से व्यंजन की थाली लेकर माता की पूजा कर मंगल गीत गाती हैं।
चैत्र कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को होती है शीतला माता की पूजा
होली के एक हफ्ते बाद और चैत्र कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को शीतला माता की पूजा की जाती है। इसे शीतला अष्टमी या बसोड़ा कहा जाता है। इस दिन माता को बासी खाने का भोग लगाया जाता है। इस बार शीतला अष्टमी 15 मार्च को है। इसके चलते गांव वालों ने पूरी तैयारी कर ली है। 14 मार्च को शीतला माता के पूजन के लिए कई पकवान बनाए जाएंगे और 15 को माता को भोग लगाकर बासी खाना खाएंगे। गरम खाना इस दिन वर्जित रहता है।
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मां आरोग्य की देवी,चेचक से बचाती
माता शीतला को स्वस्छता और अरोग्य की देवा कहा जाता है। मान्यता है कि शीतला अष्टमी या बसोड़ा के दिन माता शीतला की विधि-विधान से पूजा और व्रत करने से घर पर रोग-दोष,बीमारी,महामारी का खतरा नहीं रहता। साथ ही घर पर सुख-शांति भी बनी रहती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार माता शीतला को चेचक रोग से मुक्ति की देवी भी माना गया है। बासी पकवानों का भोग लगाए जाने के कारण इस दिन को बसोड़ा कहा जाता है।
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