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पंचपर्व दीपोत्सव- शुभम मंगलम

पार्थसारथि थपलियाल की कलम से

भारत उत्सवों और पर्वों का देश है। यहां “सात वार नौ त्यौहार” की उक्ति सभी जगह कही सुनी जाती है। सर्वाधिक उत्साह से मनाए जाने वाले उत्सवों और पर्वों में पंच पर्व- दीपोत्सव है। कार्तिक माह की कृष्णपक्ष की त्रयोदशी से शुक्लपक्ष की द्वितीया तक, लगातार पांच दिन उत्सवमय भारत और उसकी संस्कृति को जीने का आनंद केवल वही जानते हैं जो इसे जीते हैं। जीने की इसी कला ने मनुष्य को समाज के साथ जोड़ रखा है, अन्यथा समाज निर्जीव है।

हमारे पर्व और त्यौहार ऋतु, तिथि नक्षत्रों के अनुसार तो निर्धारित हैं ही अधिकतर त्यौहार कृषि से जुड़े हुए हैं। दीपावली खरीफ की फसल के बाद, मकर संक्रांति शीत काल के खाद्य खिचड़ी, तिल, मूंगफली, गुड़, घी, दाल के लड्डू आदि की प्रधानता, बसंत पंचमी लहलहाते जौ और सरसों के खेतों से जुड़ी है,पीला चावल,पीले वस्त्र इस पर्व के साथ जुड़ा है, होली का पर्व रबी की फसल के साथ जुड़ा हुआ है।

मई-जून से फसलों को उपजने पनपने में लगा किसान अश्वनि (आसोज/आग्रहण्य) मास तक फसलों की कटाई पूरी कर चुका होता है। चौमासे में बारिश के कारण घरों के इर्दगिर्द जो गंदगी हो चुकी होती है उसे साफ करने का अनुकूल समय है। इसीलिए भारत में दीपावली पर घर की सफाई संस्कारयुक्त भाव से की जाती है।

पंचपर्व दीपोत्सव-शुभम मंगलम

दीपोत्सव पंचपर्वों का समुच्चय है। कार्तिक कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को धन तेरस, चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी या रूप चौदस, अमावस्या के दिन दीपावली, कार्तिक शुक्लपक्ष प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा और द्वितीया के दिन यम द्वितीया या भाई दूज मनाई जाती है।।धनतेरस के दिन एक विशेष मुहूर्त में लोग धन के रूप में कुछ न कुछ खरीद करते हैं ऐसी परंपरा बन गई। मूल रूप से यह त्यौहार वैद्य धनवन्तरि के प्रकट दिवस से जुड़ा पर्व है। देवताओं और राक्षसों के मध्य समुद्र मंथन में से निकले 14 रत्नों में से एक है आयुर्वेद के जनक, देवताओं के वैद्य धन्वंतरि। लोग इस दिन को आरोग्य प्रदाता वैद्य के प्रकटोत्सव के रूप में धन तेरस मनाते हैं। घरों की सफाई, सजावट के बाद शाम को धन्वंतरि पूजन, लक्ष्मी और कुबेर का पूजन भी इस अवस्सर पर किया जाता है।

नरक चतुर्दशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने आततायी नरकासुर का वध किया था। नरकासुर ने 16100 कन्याओं को बंदी बनाया हुआ था। श्रीकृष्ण के नाम के साथ यही 16100 कन्याएं जुड़ी हुई हैं जिन्होंने कृष्ण को अपना स्वामी मान लिया था। लोगों ने इस खुशी में दीपक जलाकर अपने मनोभाव व्यक्त किये। जब दीपावली के लिए घर की सजावट की जा रही हो, दीपक जलाये जा रहे हों तो अपने रूप को क्यों न निखारें। एक ऋतु के कृषि कार्य सम्पन्न होने के बाद अपना सौंदर्य भी बढ़ाना आवश्यक है। चतुर्दशी के दिन लोग अच्छी तरह नहा धोकर नए वस्त्र धारण करते हैं। महिलाएं 16 श्रृंगार करती हैं।

कार्तिक अमावस्या के दिन समुद्र मंथन में एक और रत्न लक्ष्मी के रूप में मिला। लक्ष्मी जो विष्णु पत्नी हैं। धन की देवी हैं। दरिद्रता दूर करनेवाली देवी है। उसका जन्मदिन दीपोत्सव, दीपावली या दिवाली नाम से प्रसिद्ध है। अंधकार को प्रकाश से दूर करना यह संकेत भी इस पर्व का उद्देश्य है। भगवान राम का लंका विजय कर 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटना भी इसी पर्व को मनाने का आधार बताया जाता है। भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार धारण कर आततायी हिरण्यकश्यप का वध इसी दिन किया था।

भगवान महावीर इस दिन मोक्ष को प्राप्त हुए थे। अमृतसर में स्वर्णमंदिर का शिलान्यास का संबंध और बंदा वीर बहादुर का बलिदान भी इसी दिन की महत्ता को बढ़ाता है। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती का देह अवसान भी कार्तिक अमावस्या को ही हुआ।
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन गोवर्धन पूजा दिवस के रूप में मनाया जाता है। जब ब्रजभूमि में इंद्र ने असंतुष्ट होकर लगातार बारिश करना शुरू किया तो भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका पर उठा लिया। 7 दिन तक भारी बारिश हुई। ब्रज के लोगों ने यहीं शरण ली। जब इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ तब वर्षा रोक दी। इस दिन किसान अपने बैलों की साज सजावट करते हैं। गोवंश की पूजा की जाती है। उन्हें अच्छे अच्छे पकवान खिलाये जाते हैं। सनातन संस्कृति में गौ माता में 33 कोटि देवताओं का वास मानाजाता है।

कार्तिक शुक्लपक्ष द्वितीया के दिन यम द्वितीया या भाई दूज मनाई जाती है। कथा है कि एक वृद्धा के एक बेटा और बेटी थे। बेटी का विवाह हो गया था। एक दिन बेटे ने अपनी मां से आग्रह किया कि वह अपनी बहन से मिलने जाना चाहता है। इस पर उसकी मां ने उसे अनुमति दे दी। बहन के घर पहुंचने के बीच उसे कई संकटों से गुजरना पड़ा परन्तु हर बार वह वापिस लौटने का आश्वासन देकर सकुशल अपनी बहन के घर पहुंच गया। वहां पर बहन ने उसे दुखी देख उससे कारण पूछा। भाई ने उसे सब कुछ बता दिया। इस पर बहन ने भाई को सकुशल उसके घर छोड़ कर आने का वचन दिया और उसके साथ राह में निकल पड़ी। रास्ते में आने वाले सभी संकटों का सामना करते हुए उसने अपने भाई की जान बचाई। भाई दूज के अवसर पर सभी बहनें इस कहानी को सुन कर और अपने भाई का तिलक कर अपना व्रत खोलती हैं। भाई इस दिन अपनी बहिन के घर जाकर भोजन करता है। बहन अपने भाई की दीर्घायु की कामना करती है। इन पांचों दिन घरों में दीपक जलाने की एक परंपरा है। इन पांच पर्वों का उत्सवी रूप समाज में एक रूपता को भी तोड़ता है। आप सभी को पंच पर्व-दीपोत्सव की अनेक शुभकामनाएं।

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