आदर्श कोऑपरेटिव बैंक को 1.52 करोड़ अदा करने के आदेश

राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग

जोधपुर,आदर्श कोऑपरेटिव बैंक को 1.52 करोड़ अदा करने के आदेश।राजस्थान राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में प्रतिपादित किया है कि व्यवसायिक गतिविधियों के बावजूद बीमा प्रीमियम दिए जाने पर बैंक बीमा कंपनी का उपभोक्ता होने से परिवाद दायर करने वास्ते सक्षम है और इसी के साथ बीमा कंपनी को ब्याज सहित पौने तीन करोड़ रुपए बैंक को चुकाने होंगे। आयोग अध्यक्ष देवेंद्र कच्छवाहा और न्यायिक सदस्य निर्मल सिंह मेडतवाल ने ओरिएंटल इंश्योरेंस कंपनी पर दो लाख रुपए हरजाना लगाते हुए आदर्श को- ऑपरेटिव बैंक को दो माह में दावा राशि एक करोड़ 52 लाख 28 हजार 100 रुपए मय 4 मार्च 2015 से 9 फीसदी ब्याज और 84 हजार रुपए परिवाद व्यय अदा करें।

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आदर्श कोऑपरेटिव बैंक ने अधिवक्ता अनिल भंडारी के माध्यम से चार परिवाद पेश करते हुए कहा कि  उन्होंने 10 लाख रुपए से अधिक का प्रीमियम देकर बीमा कंपनी से 20 करोड़ रुपए की बैंकर्स ब्लैंकेट इंश्योरेंस नवीकरण करवाया था। उन्होंने कहा कि 25 अक्टूबर 2011 को बीमा कंपनी में दावे दर्ज कराएं कि उनकी जयपुर शाखा में आभूषणों को रहन रखकर जो ऋण दिया गया था,वे आभूषण ऋणी से सबंधित नहीं होकर नकली थे,जिससे बैंक को एक करोड़ 52 लाख 28 हजार 100 रुपए का धोखाधड़ी की वजह से नुकसान हुआ और इसकी जानकारी होते ही प्रथम सूचना रपट दर्ज करवा दी।

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अधिवक्ता भंडारी ने कहा कि बीमा कंपनी की ओर से दावे पर कार्रवाई नहीं किए जाने पर बैंक की ओर से 29 अगस्त 2014 को विधिक नोटिस दिया गया,लेकिन बीमा कंपनी फिर भी खामोश रही,जबकि इरडा के वैधानिक नियमानुसार दावे का निपटान दो माह में करना होता है लेकिन ऐसा नहीं किए जाने पर उन्होंने 4 मार्च 2015 को परिवाद दायर किए सो उन्हें दावा राशि दिलाई जाए। बीमा कंपनी की ओर से कहा गया कि बैंक एक व्यवसायिक संस्था है जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत उपभोक्ता नहीं है और बीमा कंपनी के दावे पर निर्णय से पहले ही परिवाद दाखिल होने से प्री मैच्योर है सो परिवाद खारिज किए जाएं। परिवाद मंजूर करते हुए राज्य उपभोक्ता आयोग ने अपने विस्तृत निर्णय में कहा कि परिवादी बैंक ने लाखों रुपए बीमा प्रीमियम देकर बीमा पॉलिसी बीमा कंपनी से करवाई है सो व्यावसायिक गतिविधियों के बावजूद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत बैंक उपभोक्ता की परिभाषा से बाधित नहीं होने से बैंक बीमा कंपनी की उपभोक्ता की परिधि में आती है। उन्होंने कहा कि दावेदार लंबे समय तक अपने दावे का इंतजार नहीं कर सकता है और बावजूद विधिक नोटिस के भी बीमा कंपनी ने दावे पर कोई निर्णय नहीं लिया है तो परिवाद को समय पूर्व अवधि का दायर किया होना नहीं माना जा सकता है सो परिवाद पोषणीय है।

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उन्होंने बीमा कंपनी की आपत्ति को नकारते हुए कहा कि बैंक को जब धोखाधड़ी की जानकारी हुई, उस समय बीमा ओरिएंटल इंश्योरेंस से प्रभावी था और पॉलिसी रिट्रोएक्टिव होने से पूर्व की बीमा कंपनी युनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस  को पक्षकार बनाया जाना आवश्यक नहीं है। उन्होंने कहा कि यह निर्विवाद है कि  बैंक के साथ धोखाधड़ी होने से यह नुकसान हुआ है। उन्होंने बीमा कंपनी पर दो लाख रुपए हरजाना लगाते हुए बीमा कंपनी को निर्देश दिए कि दो माह में परिवादी बैंक को दावा राशि एक करोड़ 52 लाख 28 हजार 100 रुपए मय 4 मार्च 2015 से 9 फीसदी ब्याज और 84 हजार रुपए परिवाद व्यय अदा करें।

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