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मुग्ध कर गया ‘पीछा करती परछाइयां’ का मंचन

अंतर्राष्ट्रीय थियेटर फेस्टिवल

जोधपुर,अंतर्राष्ट्रीय थियेटर फेस्टिवल के तीसरे दिन सोमवार शाम को भारत के वरिष्ठ रंगकर्मी केके रैना के निर्देशन में नाटक ‘पीछा करती परछाइयां’ का प्रभावी मंचन रसिकों को मुंत्रमुग्ध कर गया। इस नाटक में भारतीय फिल्म एवं रंगमंच जगत की मशहूर अदाकारा इला अरुण ने अभिनय किया।

राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर के तत्वावधान में आयोजित जोधपुर इंटरनेशनल थियेटर फेस्टिवल के तीसरे दिन सोमवार को पूर्वाह्न में घूमर सभागार में ‘रंग मंथन’ टॉक शो में बदलते सामाजिक परिवेश के नाट्य लेखन विषय पर संवाद आयोजित हुआ।

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पीछा करती परछाइयों से आधे आसमां के यथार्थ को बखूबी दर्शाया।

शाम को मंचित नाटक ’’पीछा करती परछाइयां“ के माध्यम से पारिवारिक परम्पराओं के नाम पर दबाई गई महिलाओं की पीड़ा और उनसे जुड़े विभिन्न आयामों के बिम्ब प्रस्तुत कर स्पष्ट किया गया कि ये आज भी प्रासंगिक हैं। नाटक के कथानक और सारांश के अनुसार यह नाटक हेनरिक इबसेन के अत्यधिक प्रशंसित नाटक “घोस्ट्स“ पर आधारित है,जिसका पहली बार 1881 में मंचन किया गया था और इसने काफी हलचल मचाई थी। इला अरुण द्वारा समान रूप से शक्तिशाली अनुकूलन सम्मान या पारिवारिक परंपराओं के नाम पर दबाई गई महिलाओं की गहरी पीड़ा को ये नाटक दर्शाता है।

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नाटक में एक पूर्व शासक की पूर्व रानी,उनमें से कई अभी भी अपने पिछले सामंती गौरव पर जी रही हैं, पुरानी परंपराओं और जीर्ण जीवन शैली को जकड़े हुए हैं। यह नाटक इस बात पर केंद्रित है कि कैसे ये पुरानी परंपराएं और उनके नतीजे भविष्य की पीढ़ियों को अतीत के भूतों के रूप में परेशान करने के लिए वापस आते हैं। उन्हें अपने पूर्वजों द्वारा बनाए गए इन बेड़ियों से टूटने से रोकते हैं।

यह दिवंगत महाराजा कुंवर विराज भानु प्रताप सिंह के परिवार की कहानी है,जिनकी मृत्यु रहस्य में डूबी हुई है,फुसफुसाहट में बात की जाती है और उनकी विधवा यशोधरा बाईसाहेब की रहस्यमय आंखों में छिपी हुई है।

दृश्य यशोधरा और परिवार के पुजारी पुरोहितजी के साथ शुरू होता है,जो परिवार के लिए एक संपत्ति का सौदा लेकर आए हैं। परिवार अगले दिन से व्यस्त है क्योंकि वे दिवंगत वंशज के नाम पर एक स्कूल समर्पित कर रहे हैं। युवा पुत्र व वारिस,कुंवर युवराज, विशेष रूप से पेरिस से आए हैं,जहां उन्होंने अपने सामंती अतीत से नाता तोड़ते हुए एक पेंटर और डिजाइनर के रूप में अपना नाम बनाया है। उसे सात साल की उम्र में उसकी मां ने उसे सामंती माहौल की साजिशों से दूर रखने के लिए पेरिस भेजा था।

जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है,हम परिवारों के टूटने के कारणों को देखते हैं,जो उन हवेलियों के विनाश का प्रतीक है,जिनमें वे निवास करते हैं। लेकिन फिर भी अतीत के भूतों को नष्ट नहीं किया जा सकता। यह नाटक इस मायने में प्रासंगिक है कि यह घरेलू हिंसा और महिलाओं के दमन के मुद्दे से संबंधित है,जिनकी आवाज़ को उन पारंपरिक समाजों द्वारा खामोश कर दिया जाता है, जिनमें वे रहते हैं, केवल उनकी परम्परा के भूतों के साथ रहते हैं।

इबसेन की महिलाओं की आवाज को दुनिया भर की महिलाओं की आवाज के रूप में सुनने की जरूरत है। नाटक में इला अरुण,केके रैना,विजय कश्यप,परम सिंह और प्रियंवदा कांत आदि कलाकारों ने अभिनय किया। इसमें अनुकूलन और लेखक इला अरुण,निर्देशन केके रैना, संगीत रचित और संचालित संजय डैज़,सेट लाइट डिजाइन और संचालन सलीम अख्तर,वेशभूषा इला अरुण, मेक अप फ़िरोज़ मंसूरी,हेयर ड्रेसर तुलसा हैरी पीटर,फ्रंट हाउस अंजुला बेदी और अरुण वाजपेयी तथा प्रचार अरुण बाजपेयी का था।

निर्देशक व इला अरुण का सम्मान

राजस्थान संगीत नाटक अकादमी अकादमी की अध्यक्ष बिनाका जेश मालू ने निर्देशक व इला अरुण को शॉल एवं स्मृति चिह्न प्रदान कर सम्मानित किया।

मंगलवार को दिन में रंग संवाद,शाम को नाटक मंचन

समारोह में मंगलवार 21 मार्च को होटल घूमर में प्रातः 11 बजे रमेश बोराणा,दौलत वैद एवं अभिषेक मुद्गल रंगमंच की प्रतिबद्धता विषय पर संवाद करेंगे। शाम 7 बजे वीणा मलिक (मुम्बई) निर्देशित नाटक ‘हमारी नीता की शादी’ का मंचन होगा।

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