ऋतुराज बसंत के स्वागत का अलग अंदाज है मरुधरा का

[वरिष्ठ पत्रकार अनिल कुमार सिंह की कलम से]

जोधपुर, माघ पंचमी के साथ ही जब ठंड की विदाई होती है और फगुनहट की दस्तक के बीच ऋतुराज बसंत का आगमन होता है, तब आंखों के सामने सरसों के पीले फूलों की चादर बिछ जाती है। बासंती रंग के फूलों से ऋतुराज बसंत का स्वागत करने का मरुधरा का अपना अलग ही अंदाज है। खेतों में सरसों के पीले फूल तो होते ही हैं, राजस्थान का राज्य पुष्प रोहेड़ा भी बासंती फूलों और सुख-समृद्धि का प्रतीक कल्पवृक्ष खेजड़ी/शमी मींझर से लकदक फिजां में आनंद रस बिखेरता है।
रोहिड़ा
रोहेड़ा राजस्थान का राजकीय पुष्प है। रोहेड़ा का वृक्ष राजस्थान के शेखावटी व मारवाड़ अंचल में इमारती लकड़ी का मुख्य स्रोत है। यह मारवाड़ टीक के नाम से भी जाना जाता है। रेत के धोरों के स्थिरीकरण के लिए यह वृक्ष बहुत उपयोगी है।
खेजड़ी
खेजड़ी या शमी एक वृक्ष है जो थार के मरुस्थल एवं अन्य स्थानों में पाया जाता है। कल्पवृक्ष के रूप खेजड़ी या शमी के पेड़ की पूजा भी की जाती है। हिंदू धार्मिक मान्यता के अनुसार इसे सुख-संवृद्धि का प्रतीक माना जाता है । खेजड़ी राजस्थान के लोगों के लिए बहुत उपयोगी है। यह जेठ के महीने में भी हरा रहता है। रेगिस्तान में जानवरों के लिए धूप से बचने का कोई सहारा नहीं होता तब यह पेड़ छाया देता है। जब खाने को कुछ नहीं होता है तब यह चारा देता है,जो लूंग कहलाता है। इसका फूल मींझर कहलाता है। इसका फल सांगरी कहलाता है, जिसकी सब्जी बनाई जाती है। यह फल सूखने पर खोखा कहलाता है जो सूखा मेवा है। इसकी लकड़ी मजबूत होती है जो किसान के लिए जलाने और फर्नीचर बनाने के काम आती है। इसकी जड़ से हल बनता है।

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