लोकनुरंजन मेला अशोक उद्यान में ही होना चाहिए था-बिनाका

17 माह से निष्क्रिय पड़ी अकादमी का फिर हुआ बजट लेप्स

जोधपुर(डीडीन्यूज),लोकनुरंजन मेला अशोक उद्यान में ही होना चाहिए था-बिनाका।आज से जोधपुर में आयोजित होने वाले राज्य के सबसे बड़ा कला कुंभ लोकानुरंजन मेले को संकुचित करने व इसे अशोक उधान में आयोजित नहीं करने पर निराशा प्रकट करते हुए राजस्थान संगीत नाटक अकादमी की निवर्तमान अध्यक्ष

बिनाका जेश मालू ने कहा कि जिस कार्यक्रम को राष्ट्रीय स्वरूप देते हुए हमने अशोक उद्यान के विशाल प्रांगण और खुले रंगमंच पर भव्यता से आयोजित किया गया था और जिसका एक लाख से अधिक दर्शकों ने आनंद उठाया था उसे इस बार पुन: टाउनहॉल की परिधि में समेट देना अकादमी की निष्क्रियता को ही दर्शाता है।

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उन्होंने कहा कि हमने 18 माह में लोकानुरंजन सहित संगीत नृत्य नाटकों के छ सौ से अधिक राज्य, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के आयोजन तथा विविध योजनाओं के माध्यम से प्रदेश के 30 हज़ार से अधिक कलाकारों को लाभान्वित किया था। वर्तमान में सारी योजनाएं ठप्प पड़ी हैं,नाम मात्र के दो आयोजन वो भी क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्रों की मदद से ही किए जा सके हैं।

राज्य की कला संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन का दायित्व निर्वहन करने वाली राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के 17 माह की निष्क्रियता से प्रदेश भर के कला प्रोत्साहन का बजट दूसरे वर्ष भी लैप्स हो गया है। कला संस्कृति मंत्री के ही वित्तमंत्री होने के बावजूद इस वर्ष राज्य के बजट में संस्कृति प्रोत्साहन के कोई विशेष प्रावधान नहीं किए गए हैं।बिनाका ने कहा कि जबसे प्रदेश में भाजपा सरकार बनी है तब से अकादमी बेहाल और लाचार हो गयी है,यहां न कोई नियमित सचिव है और न ही स्टाफ।

प्रदेश के कलाकारों व संस्कृतिक कर्मियों की कोई सुनने वाला नहीं है। सभी कार्यकम व योजनाओं को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है। विशेष रूप से पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा 100 करोड़ रुपयों के प्रावधान से प्रारंभ की गयी कलाकारों को वर्ष में 100 दिन रोजगार देने की देश की पहली गारंटी व वाद्ययंत्र खरीद सहायता जैसी महत्वाकांक्षी योजना भी बंद कर कर दी गई हैं। जरुरतमंद कलाकारों को आर्थिक सहायता प्रदान करने वाला कल्याण कोष से सहायता भी बंद है।

बिनाका ने कहा कि जोधपुर का एक मात्र प्रदर्शन योग्य प्रेक्षागृह जयनारायण व्यास टाउनहाल जिसे पूर्व मुख्यमंत्री गहलोत ने साढ़े ग्यारह करोड़ रुपयों की राशी स्वीकृत कर इसका विस्तार व आधुनिकीकरण करवाया था लेकिन सरकार बदलते ही इसके शेष कार्य अधूरे छोड़ दिए गए हैं जिससे आयोजकों व कलाकारों को अनेक असुविधाओं का सामना करना पड़ रहा है। यहाँ एक इलेट्रिशियन भी नहीं है जिससे करोड़ो रुपयों से लगाये गये साउंड लाइट के उपकरण उपयोग में नहीं आ रहे हैं साथ ही दुर्घटना की आशंका बनी रहती है।

उन्होंने कहा कि किसी भी सरकार को कला साहित्य संस्कृति जैसे विषयों को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखना चाहिए,क्योंकि ये जीवन व अभिव्यक्ति के आवश्यक सरोकार हैं जिसे प्रोत्साहित करना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है।