विचारवाद का वैचारिक मंथन

-राष्ट्र प्रथम

लेखक:- पार्थसारथि थपलियाल

25 मई 2023 को प्रकाशित मेरी विचारवाद संबंधी पोस्ट पर अनेक पाठकों सहित वैचारिक शिखरस्थ 4 प्रज्ञा पुरुषों/महान गुरुओं ने अपने आशीर्वचन दिए। मन में यह भाव भी आया, क्या मैं अपने ही बुने जाल में उलझ तो नही गया?
सत्यम वद:, प्रियम वद: धर्मम चर:….आदि शब्द स्वयं बोलते गए… सत्य बोलो, प्रिय बोलो…. वद बोलने की क्रिया का शब्द है। उक्ति, कथन, संवाद,आदि अपने भावों की अभिव्यक्ति के उपकरण हैं। यह शब्द वाद के रूप में कोर्ट कचहरी की भाषा बन जाता है। इसके साथ विवाद जुड़कर वाद-विवाद बन जाता है, वाद विवाद तभी तक समाजोपयोगी है जब तक वे संवाद की भूमि में बने रहते हैं। एक आध हल्के शब्द की परछाईं वादी विवादी के साथ संवादी तक तर्क और वितर्क तक खींच कर ले आते हैं। यहाँ उनका संघर्ष एक नई संतान को जन्म देता है, उसका नाम है कुतर्क। यह कुछ ही शब्दों में अंधे यौवन को प्राप्त होता है वह जो मंतव्य (नरेटिव) स्थापित करता है,उसे स्वीकार करने में ही एक आम समझदार की बुद्धिमत्ता होती है। इससे नया अर्थ प्रतिध्वनित होता है। यह नया अर्थ ही वह विचारवाद है जो अहमन्यता को सर्वोपरि बनाये रखता है।

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विचारवाद की अनेक शाखाएं है और उतने ही उदाहरण भी। आपने बहुत पहले विविधभारती से विज्ञापन सुने हों-लाइफ बॉय है जहां तंदुरस्ती है वहाँ। बार बार सुनने से विचार आया। हर घर मे लाइफ बॉय साबुन आया। बीच-बीच में सुगंधित साबुनों के माध्यम से हमने सुंदर सुगढ़ मनमोहक श्रृंगार रूपवतियों को भी देखा। विचार ने एक युग की छलांग एक साथ लांघ दी। लाइफ बॉय मेहनतकश लोगों का साथी बना रहा। उसे निबटाने के लिए एक विज्ञापन आया-क्या भाई साहब अभी तक उसी लाल साबुन में अटके हो? (लाइफ बॉय लाल रंग का साबुन) यह व्यापार का वह नुस्खा है जो बिना लड़ाई झगड़े के समाज को अपने पीछे चलने को मजबूर कर देता है (स्टेटस सिंबल)। उस दौर में हेमा मालिनी या श्रीदेवी के नहाने के ब्रांडिड साबुन से नहाने से चेहरा उन हेरोइन की तरह दमकता तो कादर खान और ओम पुरी कभी तो उन साबुनों से नहाए होंगे। फेयर एंड लवली क्रीम यदि काले को गोरा बना देती तो सभी भैंसे भी गोरी मेम की तरह दर्शनीय होती। यह विचार नही, विचारवाद है। कपड़े धोने के सन लाइट साबुन को सर्फ़ ने धो दिया, निरमा ने सर्फ को निचोड़ दिया।….

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पिछले दो माह से आईपीएल क्रिकेट मैच से संबंधित विज्ञापन खूब प्रसारित हो रहे हैं-“आपने अपनी टीम बना ली?’ यह विज्ञापन एक जुआ है। लोग बर्बाद हो रहे हैं। सिगरेट के डिब्बे पर लिखी वैधानिक चेतावनी क्या कैंसर को रोक लेगी ? मीडिया में चल रहे अनैतिक कार्यक्रमों से पहले अत्यंत बारीक अक्षरों में लिखे अस्वीकरण (Disclaimer) क्या अनैतिकता को रोकने के लिए (क्षणिक प्रदर्शित) पर्याप्त हैं? यह किराए की कोख (surrogacy) क्यों है? (दुबारा पढें)। सरकार की मंशा क्या है? कभी सोचा आबकारी मंत्री और मद्यनिषेध मंत्री एक ही क्यों होता है? कट्टर ईमानदार सरकार ने तो रात 3 बजे तक दारू बाज़ार की अनुमति दी थी। दारू पीने की कानूनी उम्र भी कम कर दी। यह है उद्देश्य प्राप्ति का विचारवाद। जिसे कट्टर ईमानदार,कट्टर धंधेबाज़,कट्टर धार्मिक लोग…संतान की तरह पालते हैं।

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हमारे देश की न्यायपालिका को न्याय पाने की उम्मीद में (पिछले 30 वर्षों की अवधि में) 5 करोड़ पेंडिंग केसों पर फैसले देने की बजाय सेम सेक्स मैरिज (सम लैंगिक विवाह) को कानूनी मान्यता न मिलने को अधिक अन्यायपूर्ण मानती है।तब ऐसा लगता है यह विचार कह रहा हो भाई साहब कब तक पुराणपंथी विचारों से जीवन का आनंद लेते रहोगे? कुछ तो innovation होना चाहिए। यह कान्वेंटी खेतों से उपजी फसल का विचारवाद है। जब प्रेम और शांति का पैगाम देने वाले लोग घृणा और अशांति के सबसे बड़े कारक बने हों और समाज ऐसे लोगों का प्रतिरोध भी न कर सके उसे क्या कहेंगे। जब अपराधी लोग चुनाव जीत कर माननीय बन जाते हैं तब उसे क्या कहेंगे। जब नौंवी फेल आईएएस को ज्ञान पेल रहे हों,कुलपतियों,प्रोफेसरों के सामने अपना ज्ञान दर्शन दीक्षांत समारोहों में व्याख्यायित कर रहे हों, इसे किस वाद में रखेंगे?

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भारत में साकार और निराकार दोनों प्रकार के दर्शन रहे हैं।(ईश्वर को मानने वाले और ईश्वर को न माननेवाले), लेकिन किसी ने अपना विचार नही थोपा। यहां तक कि अनेक विधर्मियों को यहां पनाह दी,उनके दिमाग में अपना विचार परमाणु के रूप में जीवित रहा। उपनिषदों में ज्ञान का मंथन हुआ। उपनिषदों में ही लिखा मिलता है नेति नेति…चरैवेति चरैवेति यह भी पूर्ण सत्य नही आगे अनुसंधान करते रहिए। यह भी पढ़ने को मिलता है वादे वादे जायते तत्व बोध:।जब स्वार्थ की पूर्ति के लिए एक विचार को अनेक प्रकार से स्वीकार्यता तक पहुंचाकर अपना उद्देश्य पूरा करने का ध्येय के साथ कुछ लोग अपने कलुषित एजेंडे को चलाते हों जिससे राष्ट्र की मानवीय सभ्यता को अंदर ही अंदर कमजोर कर दे उसे क्या कहेंगे। भारत में यह विचारवाद वामपंथी बुद्धिजीवियों, असहिष्णुता रखने वाले समुदायों,अर्बन नक्सलियों, और विधर्मी ताकतों द्वारा सतत रूप से फैलाया जा रहा है। इनमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर धंधा करने वाला मीडिया,भोंडापन बेचने वाले बॉलीवुड के धूर्त धंधेबाज़, नग्नता बेचते बेशर्म लोग भी शामिल हैं। इनका विचारवाद वैचारिक विभ्रम से शुरू होता है राष्ट्र की अस्मिता खत्म करना इनका उद्देश्य होता है।
किसी शायर ने ठीक ही कहा है-
कुछ न दिखता था अंधेरे में मगर आंखे तो थी
ये कैसी रोशनी आयी कि लोग अंधे हो गए।।

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