वयं राष्ट्रे जागृयाम-हम राष्ट्र को जीवंत रखेंगे

लेखक:- पार्थसारथि थपलियाल

भारत विश्व का सबसे पुराना और सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। सबसे पुराना इसलिए कि जब दुनिया में डेमोक्रेसी का नाम भी नही था तब भारत में लोकतंत्र था। इतिहास में जाएंगे तो गण की अवधारणा ऋग्वेद में है और साहित्य में पढ़ेंगे तो कालिदास रचित अभिज्ञान शाकुंतलम को पढ़ लें जिसमें शकुंतला की माता गौतमी गर्भवती शकुंतला को कण्वाश्रम से लेकर मध्यरात्रि में राजा दुष्यंत के प्रासाद हस्तिनापुर पहुंचती है और द्वारपाल से राजा दुष्यंत तक अपना संदेश देने की बात कहती है। तब द्वारपाल उन्हें कहता है- “अविश्रमोयम लोकतंत्रस्य सर्वाधिकारः” अर्थात यह आपका नियमित लोकतान्त्रिक अधिकार है कि आप अपने राजा से किसी भी समय मिल सकते हैं।” किसी देश का समग्र जीवन शैली उसकी राष्ट्रीय संस्कृति के अनुरूप होता है। संविधान नागरिकों के करणीय और अकरणीय आचरण और व्यवहार के दिशा निर्देश देने के दायित्व को संसदीय शासन प्रणाली में सरकार (कार्यकारिणी), राज्यसभा, लोकसभा और राष्ट्रपति के माध्यम से परिलक्षित होती है। यह विधायी व्यवस्था भी है। लोकसभा आम नागरिकों का प्रतिनिधित्व करती है और राज्यसभा राज्यों का।

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सभा वहीं होती है जहाँ सभ्य लोग बैठकर राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर विमर्श करें। लोकसभा में प्रतिनिधि आम जनता जिन्हें नागरिक कहा जाता है, चुनकर भेजती है। जब संविधान लिखा गया था तब केवल सभ्य लोगों का ही ध्यान रखा गया होगा यह नही सोचा गया होगा कि भविष्य में शासन पर कब्जा करने के लिए लोग क्या क्या हथकंडे नही अपनाएंगे। संविधान के नाम पर सत्यनिष्ठा की शपथ लेने वाले ऐसे कितने सदस्य संसद में बैठते हैं जो पद और गोपनीयता तथा सत्य निष्ठा की शपथ का पालन करते हैं। शायद 20 प्रतिशत भी संविधान की इच्छा के अनुरूप नही होंगे। सच बात पर दूसरी ओर से गोली की तरह प्रश्न दाग दिया जाएगा कि यह निर्वाचन करने वाले मतदाताओं का अपमान है। तो साहब अगर भय का वातावरण पैदा न किया हो तो अंडर वर्ल्ड से जुड़े लोग कैसे चुने जाते हैं,ऐसे अपराधी पृष्ठभूमि के लोगों से संबंधित मामलों में गवाह पक्षद्रोही क्यों बन जाते हैं,जज स्वयं को ऐसे मामलों से अलग क्यों कर देते हैं।

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भारत के नए संसद भवन का 28 मई को उद्घाटन किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस नए भवन का उद्घाटन करेंगे। नए संसद भवन की आवश्यकता 1991 से 96 के मध्य लोकसभा अध्यक्ष शिवराज पाटिल ने और 2012 में तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने भी बताई थी। बल्कि उस समय परियोजना की रूपरेखा तैयार की जा रही थी। 1952 में लोकसभा में सदस्य संख्या 489 थी। द्वितीय परिसीमन में 520 सदस्य और 1973 में 545 कर दी थी, इनमें 2 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नामित होते हैं। संसदीय क्षेत्रों का परिसीमन 2002 में किया जाना था लेकिन राजनीतिक विरोध के बाद 2003 में बाजपेयी सरकार ने इसे 2026 तक टाल दिया। यह सम्भव है जनसंख्या प्रतिनिधित्व के आधार पर लोकसभा में यह संख्या बढ़कर 800-900 हो जाए। इतने सदस्यों के लिए स्थान की कमी होना स्वाभाविक है। राज्यसभा सदस्यों की संख्या 300 के करीब होने का अनुमान है। यह तो है आवश्यकता का आधार।

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कांग्रेस सहित 20 विपक्षी दल प्रधानमंत्री द्वारा नए संसद भवन के उद्घाटन का विरोध और समारोह का बहिष्कार कर रहे हैं। उनका कहना कि उद्घाटन राष्ट्रपति को करना चाहिए। वास्तव में यह महज राजनीति है। यह कोई संवैधानिक दायित्व नही है जैसे संसद का संयुक्त अधिवेशन, केबिनेट का शपथ ग्रहण आदि। अगर नए संसद भवन का उद्घाटन संवैधानिक प्रमुख को करना आवश्यक है तो छत्तीसगढ़ विधानसभा भवन और मणिपुर विधानसभा भवन का उद्घाटन जिन लोगों ने किया तब उन्होंने संवैधानिक परम्परा क्यों नही निभाई? यही है दोहरा चरित्र।

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इस अवसर पर 1947 में स्वाधीनता प्राप्ति के समय दक्षिण के चोल राजपरम्परा के राजदंड सेंगोल को भी लोकसभा अध्यक्ष के आसन के निकट स्थापित किया जाना भारतीय संस्कृति के उस पक्ष को व्यक्त करता है कि शासन के नियम बनाने वाला निरंकुश नही होना चाहिए। उसको सेंगोल (राजदंड) सदैव याद रखना चाहिए कि उसके ऊपर धर्म और नैतिकता का सेंगोल है।

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संसद,भारत की सर्वोच्च विधायी संस्था है इसमें झूठ,कपट,छल, बल और अनैतिक वक्तव्य देने वालों का कोई स्थान न हो। इस बात की संवैधानिक व्यवस्था किये बिना भारत की बर्बादी देखने वाले छली लोग भविष्य में 50 प्रतिशत से अधिक होते ही राष्ट्र की अस्मिता पर प्रहार करेंगे। इस दौर में देशभर में अर्बन नक्सली सक्रिय हो रहे हैं वे सेकुलरवाद का छद्म रूप धारण किये भारत की मूल संस्कृति को नष्ट करने के लिए विदेशी ताकतों से हाथ मिला रहे हैं। नीति शास्त्र में कहा गया है-
न सा सभा यत्र न संति वृद्ध: न ते वृद्ध ये न वदन्ति धर्म।।

भारत के नए संसद भवन में गुणवान लोग आकर भारत को उसकी संस्कृति के अनुरूप उच्च शिखर पर ले जाएं,
ऐसी शुभ कामना है। शुभमस्तु।।

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