पूजा विधान से जुड़े विभिन्न शब्द

-नवरात्रि विशेष

लेखक:-पार्थसारथि थपलियाल

प्रसन्नता है कि नवरात्रि की विशेष स्टोरी पर पाठकों ने अपनी जिज्ञासाएं भेजी हैं,नामों का उल्लेख किये बिना उनके विषय को आज के इस ‘नवरात्रि विशेष’ लेख में सार रूप में लेखक- पार्थसारथि थपलियाल द्वारा समाहित किया जा रहा है। नवरात्रि में रात्रि क्यों,पूजा/व्रत तो दिवस काल में होता है…. इस जिज्ञासा का समाधान एक शब्द में तो नही है लेकिन कुछ प्रसंगों से इसका महत्व पता चल जाएगा।

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महिषासुर वध से पूर्व व्यथित देवताओं में बड़ी मंत्रणाएं हुई (दुर्गा सप्तशती का दूसरा अध्याय) उन मंत्रणाओं के मध्य एक शक्ति ध्वनि रूप में प्रकट होती है। सभी देवता उसे अपने-अपने अंग और अस्त्र शस्त्र देते हैं। वह शक्ति देवी रूप में प्रकट हुई और नौ दिन तक देवी ने महिषासुर के साथ युद्ध किया और दसवें (दशहरा) दिन देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध किया। यह बात दुर्गा सप्तशती में तो नही है लेकिन मुझे लगता है इन नौ रात्रियों में देवता देवी को सशक्त करने के लिए स्तुति/साधना अवश्य की होगी। शक्ति अर्जन के लिए रात्रि पूजाएँ करने की परम्पराएं आज भी व्याप्त हैं।

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यह भी जनश्रुति है कि भगवान राम द्वारा रावण वध से पहले शारदीय नवरात्रि में माता सीता ने नौ दिनों तक देवी दुर्गा के निमित व्रत रखा था, ताकि उनके पति राम को ऊर्जा मिलती रहे। दसवें दिन दशहरे को भगवान राम ने रावण वध किया था। शाक्त परम्परा में दो तरह की पूजा होती है। पहली है मंत्र पूजा और दूसरी है तंत्र पूजा। तंत्र पूजा विशेष रूप से रात्रि को की जाती है। इसे तंत्र साधना भी कहते हैं। तंत्र साधना विशेष सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए की जाती है। इसमें अष्टबली का विधान भी होता है। बंगाल में देवी के काली स्वरूप की पूजा का कालरात्रि को विशेष रूप से मनाने की परंपरा है…कालरात्रि महारात्रि मोहरात्रिश्च दारुणा….

एक जिज्ञासा घट स्थापना के संबंध में है। यह क्यों किया जाता है, क्या होता है घट…..?
घट शब्द का अर्थ है घड़ा। मांगलिक पूजाओं में घट/कलश पूजा का विधान है। कलश ब्रह्मांड का प्रतीक है। आपने एक श्लोक सुना होगा–
कलशस्य मुखे विष्णु: कंठे रुद्र: समाश्रित:।
मूले तत्र स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता:।।
कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्तद्वीपा वसुंधरा।
ऋग्वेदोअथ यजुर्वेद: सामवेदो ह्यथवर्ण:।।
कलश में सभी देवता,सप्तद्वीप वसुंधरा,सप्त सागर और सभी वेद समय हुए हैं। जिनसे कार्य सिद्धि की प्रार्थना की जाती है।

नवरात्रि पूजा में घट स्थापना का विशेष महत्व है। घट मिट्टी से निर्मित होता है इस घट में जल भरा जाता है। गंगाजल हो तो उत्तम, इसमें दूर्वा (दूब),सुपारी,अक्षत (चावल), हल्दी, पैसा आदि डालने का विधान है ऊपर आम या अशोक के पत्ते उसके ऊपर लाल कपड़े से लपेटा श्रीफल खड़े रूप में ईशान कोण पर रखने से पूर्व शुद्ध मिट्टी से घट को रखने का स्थान बनाया जाता है। इसमें जौ बोए जाए हैं, इस स्थान पर घट स्थापना की जाती है। कलश मंगल का प्रतीक है। मंदिरों के ऊपर कलश सकारात्मक ऊर्जा के संवाहक हैं। मांगलिक अवसरों पर पवित्र सरोवरों,नदियों से कन्याएं कलश में जल भरकर लाती हैं और शोभा यात्रा निकालती हैं।

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देवी के मंदिर की प्ररिक्रमा संबंधी जिज्ञासा के क्रम में यह परम्परा है कि देवी के विग्रह का दर्शन करने के बाद मंदिर की दाहिनी परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा का उद्देश्य घूमना न हो। उस समय ईश्वर का ध्यान किया जा सकता है, मनोकामना की जा सकती है। यह अवस्था सकारात्मक ऊर्जा ग्रहण करने के लिए भी उत्तम मानी जाती है।

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