शरद पूर्णिमा पर आयुर्वेदिक खीर से रोगों का निदान
जोधपुर,शरद पूर्णिमा भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पर्व है,जो आश्विन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा का महत्व इसलिए भी अधिक है,क्योंकि पूरे वर्ष भर में सिर्फ यही एक दिन होता है, जब चंद्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है।
वैदिक मान्यताएं
शरद पूर्णिमा का एक नाम ‘कोजागरी पूजा’ भी है। यह संस्कृत उक्ति ‘को जागृति’ का अपभ्रंश है,जिसका अर्थ हुआ ‘कौन जाग रहा है?’ भारतीय पुराणों के अनुसार पूनम की इस रात्रि को जो भी साधक ब्रह्मज्ञान की ध्यान- साधना करते हुए जागृत रहते हैं, उनको माँ लक्ष्मी आध्यात्मिक एवं भौतिक श्री का वरदान देती हैं। सभी ने अपने जीवन में खीर खाने का आनंद तो अवश्य ही उठाया होगा। और साल में एक ऐसा दिन भी आया होगा, जब पकाई गई खीर को रात भर चंद्रमा की रोशनी में रखने के बाद ही खाया होगा। यह पावन दिवस प्रति वर्ष आश्विन मास की पूर्णिमा को आता है। इस दिन को हम सभी ‘शरद पूर्णिमा’ या ‘कोजागरी व्रत’ के नाम से जानते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस पूनम की चाँदनी से स्निग्ध हुई खीर के औषधीय गुण बहुत बढ़ जाते हैं। इसलिए उसके सेवन से सिर्फ जिह्वा को स्वाद नहीं,अपितु हमारे पूरे शरीर को फायदा पहुंचता है। वैदिक ऋषियों व आचार्यों ने शरद ऋतु की इस पूर्णिमा के अनेक पक्षों को उजागर किया है। ऋषि-मुनियों ने इसी तथ्य को ध्यान में रखकर शरद पूर्णिमा को खीर खाने की प्रथा बनाई ताकि शरीर में इन तीनों ऊर्जाओं की मात्रा संतुलित रहे और हम पूर्ण रूप से स्वस्थ रहें।
इन रोगों के लिए लाभदायक
इससे पुरानी खाँसी,दमा,जुकाम के रोगियों को काफी राहत मिलती है। शरद ऋतु में अक्सर ‘पित्त’ का स्तर ‘वात’ और ‘कफ’ की तुलना में बढ़ जाता है। पित्त की इस असंतुलित बढ़ी मात्रा को एलोपैथी में ‘स्ट्रांग मेटाबॉलिज़्म’ से जाना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार इसको शांत करने का उपाय ठंडी तासीर के खाद्य पदार्थों का सेवन होता है। ऋषि-मुनियों ने इसी तथ्य को ध्यान में रखकर शरद पूर्णिमा के दिन खीर खाने की प्रथा बनाई ताकि शरीर में इन तीनों ऊर्जाओं की मात्रा संतुलित रहे और हम पूर्ण रूप से स्वस्थ रहें।
शरद पूर्णिमा का विज्ञान
खगोल-भौतिकी(ऐस्ट्रोफिज़िक्स) के अनुसार पूर्णमासी के दिन धरती पर चाँद की ऊर्जा का प्रवाह तीव्र और औसत से अधिक होता है। वैज्ञानिकों द्वारा किए गए कई शोध बताते हैं कि हमारे मस्तिष्क में जो ‘पीनियल ग्लैंड’ है, वह इस विद्युत-चुंबकीय ऊर्जा के प्रति संवेदनशील होता है। विद्युत- चुंबकीय ऊर्जा के प्रभाव से पीनियल ग्लैंड से होने वाले मेलाटोनिन के स्राव में कमी आ जाती है जिस कारण नींद कम और कच्ची आती है। अध्ययन यह भी बताते हैं कि दूध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व की मौजूदगी होती है। जब चंद्रमा की किरणों के नीचे दूध को रखा जाता है, तो उससे यह ज्यादा मात्रा में ताकत को अवशोषित कर लेता है। चावल में स्टार्च भरा हुआ होता है। इसकी वजह से यह प्रक्रिया और भी आसान तरीके से होती है।
दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा शिविर
यही कारण है कि इस पर्व को सिर्फ पारिवारिक स्तर पर ही नहीं बल्कि जन-कल्याण हेतु कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ विशेष शिविरों का आयोजन करती हैं। इन शिविरों में प्रतिभागियों को चाँदनी में भीगी खीर के साथ आयुर्वेदिक दवाइयों का सेवन कराया जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन चाँद अन्य दिनों की तुलना में धरती के ज़्यादा नजदीक होता है। इस दिन चाँद की किरणों का प्रभाव भी खाद्य पदार्थों पर ज़्यादा और गहरा होता है। ऐसे में खीर को चाँद की रोशनी में मिट्टी के पात्रों में पकाने पर खीर की औषधीय गुणवत्ता का अधिक हो जाना स्वाभाविक ही है।साधारण खीर से ‘बहुमूल्य औषधि’ में परिवर्तित हुई यह खीर हमारे शरीर के लिए अत्यंत लाभदायक सिद्ध होती है। माँ लक्ष्मी के वरदान से श्री अर्थात आध्यात्मिक एवं भौतिक सम्पन्नता की प्राप्ति भी कर सकते हैं। आप भी इसका लाभ उठा सकते है रविवार, 9 अक्टूबर को चौपासनी गार्डन,डाली बाई चौराहा, जोधपुर में सांय 8 बजे से प्रात: 5 बजे तक शिविर में भाग लेने के लिए पंजीकरण जरूरी है।
पंजीकरण हेतु संपर्क सूत्र:- 6376929452,02912755066 इसमें ध्यान रखने योग्य कुछ बातें है जैसे शरीर पर कोई भी धातु स्पर्श नही होना चाहिए जैसे धातु कि अंगुठी, रोगी को उस दिन दूध,फल या फिर चाय इत्यादि ही लेनी होती है एवं अनाज नही ग्रहण करना होता है।
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