जोधपुर, ध्यान की विधा भारत में बहुत प्राचीन काल से चली आ रही है प्राचीन काल में जो मंदिर हुआ करते थे वहां पर ध्यान कक्ष बने हुए होते थे पर धीरे-धीरे यह परम्परा लुप्त होती गई लेकिन वर्तमान में हम मंदिर की सीढ़ियों पर जो 2 मिनट बैठकर विश्राम लेते हैं वह उसी ध्यान की परंपरा का स्मरण कराता है। हार्टफुल नेस मेडिटेशन सेंटर की अभ्यासी अरुणारावल ने अपने उद्बोधन में यह बात आरोग्य भारती द्वारा मातृशक्ति निरामया कार्यक्रम के अंतर्गत योगाभ्यास की परिचर्चा के चार दिवसीय श्रंखला के दूसरे दिन की चर्चा में कही।

उन्होंने कहा कि ध्यान किस प्रकार से किया जाए इसका अक्षरशः अभ्यास करवाया। उन्होने बताया कि जिस प्रकार शरीर के लिये भोजन,स्नान आदि आवश्यक है, उसी प्रकार ध्यान आत्मा के लिये आवश्यक है। इससे पूर्व आरोग्य भारती महानगर प्रमुख माधवी श्रीवास्तव ने सोमवार को आयोजित कार्यक्रम में बताया कि आगामी 2 दिन यह सत्र जारी रहेगा। अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य प्रियंका झाबक ने अरुणा रावल का परिचय करवाते हुए कहा किस प्रकार के अभ्यास सत्रों में अभ्यास करना एक अद्भुत अनुभव है। कार्यक्रम के प्रारंभ में आरोग्य भारती महानगर सह महिला प्रमुख डॉ.मोनिका वर्मा द्वारा धन्वंतरिस्तवन एवं सत्रांत में शांति पाठ किया।

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