प्रशिक्षण प्राप्त कलाकारों ने मंच पर दिखाया अपनी कला का जोहर
जोधपुर,राजस्थान संगीत नाटक अकादमी व उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के संयुक्त तत्वावधान में जोधपुर में आयोजित 30 दिवसीय प्रस्तुति परक नाट्य प्रक्षिक्षण कार्यशाला के समापन पर मंगलवार को टाउन हॉल में कार्यशाला निर्देशक- रणधीर कुमार (एनएसडी) व विनोद राई (एनएसडी) के कुशल निर्देशन में तीन कहानियों को मंच पर प्रभावी तरीके से रुपायित किया गया।
पहली कहानी के रूप में रघुनंदन त्रिवेदी की कहानी ‘वो लड़की अभी जिंदा है’ के कथ्य-हर बड़ा होता लड़का अपनी कल्पनाओं में विभिन्न कहानियों,चित्रों, कविताओं से प्रेरित होकर एक लड़की की छवि गढ़ता है, ये छवि उसको रुलाती है,और हंसाती भी है और वो कहीं न कहीं एक संकल्प कर बैठता है कि वो वास्तिविक जीवन में उस छवि का रूपांतरण ढूंढ निकालेगा वास्तविकता और कल्पनाओं में भिन्नता की सच्चाई दर्शाती कहानी जो हर दौर के हर आदमी के जीवन में आती है और अपने को दोहराती है, को मंच पर मूर्त रूप दिया डॉ नीतू परिहार,मनोहर सिंह,निहार खान, प्रदीप कृपलानी, पार्थ गुप्ता,मधुसुदन विश्नोई तथा कोरस-तेजस्व त्रिवेदी, राहुल सिंह तंवर, यशफीन कुरैशी,रघुवंश,कशिश, पंकज, पूजा, रोहित, काननाथ, श्रेया व हार्दिक ने।
दूसरी कहानी ‘रतन बाबू और वो आदमी’ के कथानक-हमने सुना है कि पूरे संसार में तकरीबन सात लोग एक जैसे दिखने वाले होते हैं, सत्यजीत रे द्वारा लिखित ये कहानी ऐसा ही कुछ कहने का प्रयास कर रही है, जब व्यक्ति खुद का प्रतिबिम्ब दर्पण में देखता है, तब ये सोचता है कि मैं इस दुनिया में सबसे अनोखा हूँ, और जब उसे अचानक ही उसी के समान दिखने वाला, स्वभाव का, व्यवहार का व्यक्ति मिल जाता है, तो उसकी स्थिति उस शेर की तरह हो जाती है, जो
तालाब में अपना ही प्रतिबिम्ब देखकर ये सोचता है, कि जंगल में दूसरा राजा कहाँ से आ गया और इस तरह वो उसके विनाश के साथ-साथ, स्वयं को भी नष्ट कर देता हैं, ये कहानी व्यक्ति की असुरक्षा की भावना को दर्शाती हैं, जिसे मंच पर साकार रूप दिया रघुवंश सिंह,पूजा जोशी, श्रेया अरोड़ा,हार्दिक वर्मा,काननाथ गोदारा,हर्षवर्धन सिंह व कमल ने।
तीसरी कहानी चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की ‘उसने कहा था ‘एक अमर रचना है, जो हिंदी की प्रथम मौलिक कहानी मानी जाती हैं जिसकी शुरुआत अमृतसर के भीड़ भरे बाजार से शुरू होती है जहां 12 वर्ष का लड़का एक 8 वर्ष की लड़की से पूछता है कि क्या तेरी कुड़माई (मंगनी) हो गई है इस पर लड़की धत कह कर भाग जाती है दोनो बाजार में अक्सर कभी सब्जी वाले तो कभी दूध वाले के यहां मिलते है और लड़का बार-बार उससे यही प्रश्न पूछता हैं, कुछ समय बाद जो लड़का पुनः उस लड़की से पूछता है तो वह कहती है कि हां मेरी कुड़माई हो गई इस बात पर लड़का उदास हो
जाता हैं 12 साल के बच्चे की मनःस्थिति के बाद कहानी बीच के अंतराल को खाली छोड़ते हुए सीधे 25 साल आगे आती है,
यह बताए कि फिर क्या हुआ था, वहां से यह कहानी युद्ध के मैदान तक एक लंबी छलांग लगाती है, युद्ध और प्रेम इस कहानी के दो कोण है या दो सिरे यहां कहानी अमृतसर की गलियों की उस घटना के बाद सीधे प्रथम विश्वयुद्ध के मोर्चे पर पहुंचती है, वहां के भारतीय सैनिकों एवं उनकी चुहलबाजियों अपने वतन की याद और स्मृतियों के बीच यह कहानी त्याग, प्रेम, देशभक्ति इत्यादि की भावनाएं प्रकट करती हैं , जिसे मंच पर-रोहित इमरान खान, पंकज, कशिश भाटिया व कोरस में – मनोहर, निहार, नीतू, मधुसुदन,पार्थ, प्रदीप, तेजस, राहुल, यशफीन, रघुवंश, पूजा, काननाथ, श्रेया, हार्दिक, कमल, हर्ष तथा प्रवीण ने अभिनीत किया। उमंच प्रबंधक- जीतेन्द्र सिंह वाघेला, महेश चौधरी, संगीत निर्देशक-विनोद राई (एनकिL99.एसडी) हारमोनियम-दिव्यांश त्रिवेदी, ढोलक- दौलत,ध्वनि प्रभाव-जीतेन्द्र सिंह वाघेला, महेश चौधरी, डॉ नीतू परिहार प्रकाश परिकल्पना-मोहम्मद इमरान की बहुत ही शानदार बन पड़ी । नाट्य प्रस्तुतियों के बाद अकादमी के पूर्व अध्यक्ष रमेश बोराणा ने अतिथि निर्देशकों को बुके व स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया साथ ही सभी प्रतिभागी कलाकारों को भी प्रमाण पत्र वितरित किये ।
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