रक्षाबंधन : सांस्कृतिक कथाओं से बाज़ारवाद तक

लेखक:- पार्थसारथि थपलियाल

“भारत में सात वार नौ त्योहार” की कहावत खूब प्रचलित है। इसी परंपरा में रक्षाबंधन का त्योहार है। इसे श्रावणी भी कहते हैं। श्रावण महीने में लोग शिवजी का जलाभिषेक पूरे महीने में करते हैं। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन कांवड़ यात्री शिवालयों में शिवलिंग पर गंगाजल से और अन्य श्रद्धालु जलाभिषेक और दुग्ध अभिषेक करते हैं। श्रावण पूर्णिमा को हमारे देश मे संस्कृत दिवस और रक्षाबंधन पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। पर्व ग्रह नक्षत्रों का विशेष योग को कहते हैं जबकि उत्सव शब्द उत्साह को प्रकट करता है। रक्षाबंधन के समय भद्रा काल उचित नही माना जाता है। उत्सव को समूह के साथ मनाया जाना ही त्यौहार है। रक्षाबंधन, दशहरा, दीपावली, मकरसंक्रांति, होली, और वैशाखी पर्व, उत्सव और त्यौहार के सम्पुट का अच्छा रूप प्रकट करते हैं।

रक्षाबंधन के पौराणिक संदर्भ लोक प्रसिद्ध हैं। दानी राजा बलि की परीक्षा लेने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि से तीन पग ज़मीन मांगने की कथा में बलि द्वारा भगवान को पहचान लिए जाने पर बलि ने उन्हें अपने द्वार पर रहने का वर प्राप्त कर लिया था। स्थिति को भांपते हुए लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथ में रक्षा सूत्र बांधा था। लक्ष्मी ने दक्षिणा में अपने पति वामन रूपी भगवान विष्णु को मांग कर मुक्त करवाया था। इसी प्रकार शिशुपाल वध के समय किये गए संघर्ष के दौरान भगवान श्रीकृष्ण की कटी उंगली से बहते हुए खून को रोकने के लिए द्रोपदी ने अपनी साड़ी में से कपड़ा चीरकर दिया जिसको उन्होंने द्यूत क्रीड़ा में दुस्साशन द्वारा द्रोपदी के चीर हरण के समय द्रोपदी की लाज बचाई, यह एक भाई द्वारा बहन की रक्षा का अच्छा उदाहरण हैं। ये प्रसंग श्रावण पूर्णिमा के दिन ही हुए हैं। यह रक्षाबंधन का पौराणिक संदर्भ है। ऐसे ही कुछ और संदर्भ भी हैं।

सांस्कृतिक स्तर पर श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन सनातन धर्मी लोग, विशेष रूप से यज्ञोपवीत (जनेऊ) धारण करने वाले लोग नया जनेऊ धारण करते हैं। गंगा जल से स्नान कर एक ओर से पुराने यज्ञोपवीत को छोड़ते हैं और ऊपर से नया यज्ञोपवीत धारण करते हैं। इस अवसर पर मुख्यरूप से यह श्लोक बोला जाता है।

यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः ।।
ॐ यज्ञो पवीतमसि यज्ञस्य त्वोपवीतेनोपनह्यामि।।

यज्ञोपवीत सूत से निर्मित होता है। हाथ से बना यज्ञोपवीत 96 लपेटों से बनाया जाता है। यज्ञोपवीत के तीन सूत्र ब्रह्मा विष्णु और महेश के प्रति, देव ऋण, ऋषि ऋण और पितृ ऋण के प्रतीक माने जाते हैं। जिसमे शिखर में 7 ग्रंथियां लगाई जाती है। ब्राह्मणों के यज्ञोपवीत में ब्रह्मग्रंथि लगाई जाती है। यज्ञोपवीत बाएं कंधे के ऊपर और दांयें बाजू के नीचे पहना जाता है। इसके बाद पर्वकाल में रक्षासूत्र (राखी)पहना जाता है।
गुरु लोग अपने यजमानों के रक्षासूत्र (राखी) पहनाते रहे हैं। ऐसी परंपरा रही है। इस अवसर पर प्रमुख रूप से यह श्लोक बोला जाता है।

येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।

इसी प्रकार की परंपरा प्राचीन समय में युद्ध के मैदान में जाते हुए योद्धा की पत्नी अपने पति की विजय की कामना और युद्ध से अपने सुहाग के सकुशल लौटने की दृढ़ इच्छा शक्ति के रूप में पति की कलाई पर रक्षासूत्र बांधती आई हैं। परंपरा का रूप बदला बाज़ारवादियों ने इसे केवल भाई बहन का त्यौहार बना दिया है। एक बहन इस पर्व पर अपने भाई की कलाई पर कुशलता की कामना के साथ राखी बांधती है, साथ ही भाई अपनी बहन को उसकी रक्षा का वचन देता है। यद्यपि बहनों द्वारा भाई की दीर्घायु की कामना के लिए स्थापित दिन दीपावली के बाद यम द्वितीया या भाई दूज निर्धारित है। गॉवों में आज भी यह एक सामान्य त्यौहार है।

रक्षाबंधन के अवसर पर थाल में धूप, दीप, नैवेद्य, रौली, मौली या आधुनिक राखी रखकर नीराजन (दीप दर्शन) कर तिलक अक्षत (साबुत चावल) कर राखी बांधी जाती है, व मुंह मीठा किया/कराया जाता है। भाई शुभकामना के लिए अपनी ओर से दक्षिणा स्वरूप कुछ भेंट करता है, और बहन की रक्षा का वचन देता है।

आज के समय में हमारी सात्विक भावना का हरण मल्टी नेशनल कंपनियों ने कर लिया है। वे अपना बाज़ारवाद का फंडा रक्षाबंधन पर भी लाद दिए हैं। महंगी राखियों से बाजार सजे हैं। यह भी जानकारी में आया है कि एक राखी पांच लाख की भी है। न भाई को कोई लाभ न बहिन को। कंपनियों ने बहन भाइयों की भावना को भी बाजार बना दिया है। मध्यम अर्थव्यवस्था के भाई बहनों के लिए ये दिखावा दूरियां भी बढ़ा रहा है, बाजार ने लोकलुभावन पैकेजिंग कर अनेक प्रकार के उपहार होड़ बढ़ाने के लिए सजाए हैं। इस अवसर पर राखी महंगी, मिठाई (मिलावटी) महंगी, फल महंगे। क्या इस बाज़ारवाद ने हमारे संबंधों में दरार पैदा नही कर दी? इसे सामान्य जनजीवन जीने वालों की नज़र से भी देखने की आवश्यकता है।

सभी को रक्षाबंधन के अवसर पर शुभकामनाएं।।

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