बहरों को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है-भगत सिंह

बहरों को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है-भगत सिंह

-(1907-1931 लायलपुर,पंजाब)

वह भारत के युवाओं की वीरता के प्रतीक थे। एक क्रांतिकारी जिसने ब्रिटिश सरकार को चेतावनी देने के लिए विधानमंडल में सत्र के दौरान बम फेंक दिया। उन्हें मार दिया गया पर वह देशवासियों के दिलों में हमेशा जीवित रहेंगे”।

“हम मरेंगे भी तो दुनिया में जिंदगी के लिए
सबको जीना सिखा जायेंगे मरते मरते”

23 मार्च 2022 को पूरा देश अमर शहीद भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु का 91 वां बलिदान दिवस मना रहा है। यह दिन न केवल देश के प्रति सम्मान और हिंदुस्तानी होने के गौरव का अनुभव कराता है, बल्कि वीर सपूतों के बलिदान को भीगे मन से श्रद्धांजलि देता है। उन अमर क्रांतिकारियों के बारे में इस साधारण मानव राम जाखड़ की वैचारिक टिप्पणी का कोई अर्थ नहीं। उनके उज्जवल चरित्रों को बस याद किया जा सकता है कि ऐसे मानव भी इस दुनिया में हुए हैं जिनके आचरण किवंदती हैं। भगत सिंह ने अपने संक्षिप्त जीवन में वैचारिक क्रांति की जो मशाल जलाई उनके बाद अब किसी के लिए संभव न होगी।

भगत सिंह का जन्म स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार में हुआ था। भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने का जुनून उनके खून में दौड़ रहा था।देश भक्ति भगत सिंह को विरासत में मिली थी। जब पिता खेती किया करते थे तो भगत सिंह ने पूछा आम की गुठली क्यों बोई पिता बोले आम का पेड़ लगेगा, इस पर बहुत आम आएंगे। भगत सिंह ने तपाक से कहा तो ठीक है जी,मैं बंदूक बो दूंगा। बंदूकों का पेड़ लगेगा बहुत सारी बंदूकें चाहिए अंग्रेजों को भारत से भगाना है। ऐसा था आजादी के दीवाने भगत सिंह का बचपन।

भगत में एकाकीपन की भावना थी वे हर जगह उठते बैठते नहीं थे चयनात्मक श्रोता थे जहां आजादी की बात होती बस वही नजर आते।
जलियांवाला बाग हत्याकांड ने इन्हें व्यथित कर दिया। ये वहां गए मिट्टी एक बर्तन में भर लाए घर आकर बिल्कुल सुन्न हो गए। बहन के पूछने पर बताया ये खून मेरे शहीद देशवासियों का है,मैं अंग्रेजों से इसका बदला लूंगा,भगा दूंगा अंग्रेजों को इस देश से। इतना छोटा सा बच्चा और आजादी के लिए इतना पागलपन, दीवानगी, जुनून।

भगत सिंह अपनी 23 वर्ष की आयु में ही वह सब कर गए कि आज 90 साल बाद भी हर भारतवासी उन्हें याद करता है। इस क्रांतिकारी युवा के नाम से भारत की हर पीढ़ी अवगत है।उनके विचार रोंगटे खड़े करने वाले हैं। भगतसिंह सदा ही शेर की तरह जिए।
भगत सिंह को जब माफीनामा लिखने के लिए कहा गया तो उन्होंने लिखा “मैं ब्रिटिश सरकार से अपील करता हूं मुझे फांसी ना दी जाए क्योंकि फांसी अपराधियों को दी जाती है, मैं क्रांतिकारी हूं, भारत मां का सिपाही हूं मुझे भरे चौराहे पर गोली मार दी जाए। यह युद्ध का विधान है कि गोली से मरने में ही सिपाही की शान है”

भगत सिंह को अपने प्राणों से ज्यादा देश की स्वतंत्रता और सम्मान प्यारा था। उनके क्रांतिकारी विचारों से ओतप्रोत यह शायरी आज भी युवाओं में जोश भारती है:-

सीने में जुनून,आंखों में देशभक्ति की चमक रखता हूं।
दुश्मन की सांसे थम जाए
आवाज में वो धमक रखता हूं।
लिख रहा हूं मैं अंजाम, जिसका कल आगाज आएगा,
मेरे लहू का हर एक कतरा, इंकलाब लाएगा।
मैं रहूं या ना रहूं , पर ये वादा है मेरा तुझसे,
मेरे बाद वतन पर मरने वालों का सैलाब आयेगा।।

कहा जाता है,जीवन बड़ा होना चाहिए लंबा नहीं। भगत सिंह बहुत बड़ा जीवन जी गए उस अद्भुत व्यक्तित्व को शब्दों में साकार करना भवसागर से कोई अमृत जुटाने सा कठिन है। अतः उनके प्रति मेरे मन में उमड़ते भावों को यहीं विराम देते हुए उस शेर को हृदय से अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

इंकलाब जिंदाबाद

बहरों को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है-भगत सिंह

लेखक:-रामुराम जाखड़
प्रदेश सभाध्यक्ष रेसला राजस्थान
व्याख्याता इतिहास

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