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शब्द संदर्भ:-(96) श्रम और परिश्रम
लेखक – पार्थसारथि थपलियाल
जिज्ञासा
एक चैनल पर इंटरव्यू देते हुए अभिनेत्री कंगना बता रही थी लक्ष्मीबाई के किरदार के लिए मुझे बहुत परिश्रम करना पड़ा। उसने अपनी मेहनत के लिए श्रम क्यों नही कहा?
समाधान
श्रम शब्द के रूप अनेक हैं जब वह शारीरिक मेहनत से जुड़ता है तो श्रम। जब बौद्धिक मेहनत से जुड़ता है तो परिश्रम जब वह एक दायरे में काम करता है तो आश्रम। संस्कृत भाषा का शब्द उद्यम ही कुछ अंतर से श्रम है। वाक्य में देखिए प्रत्येक व्यक्ति को कुछ न कुछ उद्यम करते रहना चाहिए। एक नीति वचन भी बचपन में सुना था
उद्यमेन हि सिद्धयन्ति कार्याणि न मनोरथे:
न: हि सुप्तस्य सिंहस्य: प्रविशन्ति मुखे मृग:।।
अर्थात उद्यम करने से ही कार्य सिद्ध (सफल) होते हैं, न कि कल्पनाओं में डूबे रहने से। शेर को भी हिरण का शिकार करने के लिए उद्यम करना पड़ता है। सोते हुए शेर के मुंह के सामने हिरण अपना शिकार करवाने नही पहुंचता।
अपना काम तब तक श्रम नही जब तक हम उस काम को नौकर की तरह या श्रमिक की तरह अनुभव नही करते। श्रम की जब कीमत तय होने पर व्यक्ति काम करता है तो वह काम करने वाला श्रमिक होता है।
रेलवे प्लेटफार्म पर कुली ने किसी यात्री का सामान सिर पर रखा और चलने ही वाला था कि उसकी नज़र एक महिला पर पड़ी। महिला की गोद में एक बच्चा है। साथ मे दो बैग भी हैं, उसे संतुलन बनाने में आ रही परेशानी को देखते हुए वह कुली बोला मैडम एक बैग मुझे दे दो, गेट तक ऐसे ही पहुंचा दूंगा। यह कुली एक यात्री के लिए श्रमिक है और दूसरे के लिए सहयोग कर्ता। महिला अपने बच्चे और बैग को लेकर आई वह श्रम नही अपना काम है जिसे उद्यम कहते हैं।
श्रम की कीमत श्रम समय में ही है। श्रम में मुख्यतः शारीरिक श्रम (मेहनत) ही होता है।
दूसरा शब्द है परिश्रम। यद्यपि श्रम की कीमत इसमें भी शामिल है लेकिन श्रम करने का तरीका बदल जाता है शारीरिक मेहनत की बजाय मानसिक मेहनत बढ़ जाती है। मजदूरी या पारिश्रमिक के स्थान पर वेतन, मानदेय, तनख्वाह, शुल्क आदि शब्द उपयोग में आने लग जाते हैं।
नाटक कलाकारों या फिल्मी कलाकारों को किसी कहानी के पात्र को जब आत्मसात करना होता है, तो उस पात्र की तमाम बारीकियों को अपने मे ढालना होता है। कई बार उस चरित्र के तौर तरीकों को अपनाने में 6 महीने भी लग जाते हैं। इसलिए बौद्धिक कार्य परिश्रम है। श्रम शब्द पर आ उपसर्ग से बना शब्द है आश्रम। यह शब्द भारतीय संस्कृति का है। इसके दो आशय हैं। पहला है-जीवन की चार अवस्थाएं। चार आश्रम- ब्रह्मश्चर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम। दूसरा भाव है आश्रय स्थल। जहां पर आदमी आकर ठहर सकता था, अपनी थकावट मिटा सकता था। उससे पूर्व काल में ऋषि लोग आश्रमों में रहते थे। आश्रम ही गुरुकुल हुआ करते थे। जहाँ विद्यार्थी ज्ञान प्राप्ति के लिए आते थे।
“यदि आप भी जानना चाहते है किसी हिंदी शब्द का अर्थ व व्याख्या तो अपना प्रश्न यहां पूछ सकते हैं।”
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