आर्ट से नहीं मिलता आटा-राजेश तिवारी
जोधपुर,थियेटर और नाटक सिमित प्रेक्षकों के मध्य जीवंत प्रदर्शित होता है इसलिए इसमें पैसा नहीं है, जबकि अन्य चल मीडिया बहुआयामी तरीके से साधन की तरह प्रदर्शित होता है इसलिए उसमें आय की निश्चित सम्भावना होती है। डायरेक्टर और अभिनेता की पाठकीय तैयारी कितनी है यह महत्वपूर्ण है। हज़ारी प्रसाद द्विवेदी,मोहन राकेश, कालिदास, शेक्सपियर और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में नाटक की दशा एवं दिशा पर चर्चा करते हुए देश के वरिष्ठ नाट्य निदेशक, रंगकर्मी और लेखक राजेश तिवारी ने आज जोधपुर में कहा कि आर्ट से आटा नहीं कमाया जा सकता, जब तक कि आप उसको कमर्शियल ना करें लेकिन यदि आर्ट को आर्ट की तरह ही देखें तो वह आत्मिक सन्तुष्टि हो सकती है।
आज जोधपुर के वरिष्ठ रंगकर्मीयों एवं रंग प्रेमियों के बीच चर्चा के दौरान दिल्ली से आये राजेश तिवारी ने अपने अनुभव के साथ-साथ नाट्य निर्देशन एवं नाटक के विभिन्न आयामों पर विस्तृत चर्चा की। वरिष्ठ नाट्य निर्देशक एवं कला मर्मज्ञ राज्य मेला प्राधिकरण के उपाध्यक्ष रमेश बोराणा के अनुरोध पर जोधपुर आये राजेश तिवारी का सर्वप्रथम बोराणा ने ही जोधपुरी साफा पहनाकर स्वागत किया और उनका परिचय देते हुए बताया कि अनेक नाटकों के रचयिता और माचिस व लम्हे जैसी फिल्मों के परिकल्पनाकार आज हमारे बीच मे हैं।
रमेश भाटी ने माल्यार्पण कर स्वागत किया। रंग चर्चा में अरु व्यास, डॉ हितेंद्र गोयल,शब्बीर हुसैन,इमरान खान के साथ-साथ कई रंग प्रेमी एवं अभिनेता मौजूद थे। तिवारी का कहना था कि लोकल को फोकस करने पर ग्लोबल बना जा सकता है और फिर पैसा मिल सकता है। लोकल थीम पर गहनता से बात हो तो ग्लोबल तक पहुँचा जा सकता है लेकिन आज का थियेटर जल्दी-जल्दी में है और ग्लोबल बनने के होड़ में लोकल भी नहीं रह पाता।
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