डॉक्टर से 2.18 करोड़ की ठगी करने के दो आरोपियों को पकड़ा

  • साइबर थाना पुलिस की कार्रवाई
  • सस्ती कीमत पर शेयर दिलाने का झांसा देकर की थी ठगी
  • दिल्ली में आए पकड़ में

जोधपुर,डॉक्टर से 2.18 करोड़ की ठगी करने के दो आरोपियों को पकड़ा।कमिश्नरेट के साइबर पुलिस थाना ने एक ऐसी अंतरराष्ट्रीय गैंग का खुलासा किया है जो सस्ती रेट पर शेयर दिलाने व लोन पास करवाने की आड़ में करोड़ों रुपए की ठगी कर चुकी है। पुलिस ने दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है जो दोनों उदयपुर के रहने वाले हैं। उन्होंने एक डॉॅक्टर से करीब 2.18 करोड़ की ठगी की थी।

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सहायक पुलिस आयुक्त व साइबर थाना प्रभारी जयराम मुण्डेल ने बताया कि उम्मेद हैरिटेज में रहने वाले डॉ.बलवीर सिंह ने गत 16 मई को रातानाडा थाने में धोखाधड़ी की रिपोर्ट दी थी। इसमें बताया कि उसके फेसबुक अकांउट पर ऑन लाइन कोटक पीएमएस साइट पर शेयर व आईपीओ में पैसा लगाने पर मार्केट रेट से पांच प्रतिशत कम रेट पर शेयर मिलने का मैसेज आया।

उनके द्वारा एक एप डाउनलोड करवाया तथा एक आईडी व पासवर्ड दिए दिए। शुरुआत में निवेश पर मार्केट रेट से ज्यादा लाभ मिला। उसके बाद आईपीओ व शेयर में निवेश करने पर ज्यादा लाभ प्राप्त होने के नाम पर दो करोड़ 18 लाख 97 हजार 797 रुपए की धोखाधड़ी कर ली गई। केस को साइबर पुलिस थाना में सौंपा गया।

यूं पकड़ मेें आए आरोपी
साइबर थाना पुलिस की टीम को जांच में पता चला कि इस ठगी में डॉक्टर को एक फर्जी खाता पंजाब नैशनल बैंक अलवर प्राप्त हुआ था। इस पर अलवर से खाता खुलवाने वाले अजयसिंह को अलवर के मेवात क्षेत्र से गिरफ्तार कर पुलिस अभिरक्षा में लेकर अन्य अपराधियों की तलाश जयपुर,अलवर व दिल्ली में की गई। तब अजयसिंह,अनूप यादव,दिपेश सोमवंशी व यश जोशी के नाम सामने आए। इसके बाद आरोपी 48 पहाड शिवनाथ विला एकलिगंपुरा उदयपुर निवासी दिपेश सोमवंशी और नगर परिषद कॉलोनी आदुर साइड ब्रह्मपोल उदयपुर निवासी यश जोशी को दिल्ली क्षेत्र से दस्तयाब करने में सफलता प्राप्त की।

विश्वास में लेते और लोन पास करवाने की आड़ में आवश्यक दस्तावेज जुटाते
आरोपीयों की गैंग ऐसे व्यक्तियों को चिन्हित करती है,जिनको पैसों की जरूरत होती है। ऐसे व्यक्ति को विश्वास में लेते और लोन पास करवाने की आड़ में आवश्यक दस्तावेज तैयार करवाकर अपने प्रभाव वाली बैंक में चालू खाता खुलवाते। फिर उस खाते को (कॉरपोरेट इन्टरनेट बैंकिंग) से जोडक़र इस खाते में खाताधारक के अलावा एक आदमी ट्रांजेक्शन के लिए और जोड़ देते थे जो अपनी ही गैंग का सदस्य होता था,इससे जुडऩे के बाद खाताधारक को किसी भी लेनदेन के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है। फिर उस खाते में जितना भी ट्रांजेक्शन होता उसमें अपना 10 प्रतिशत हिस्सा टेलीग्राम आईडी तथा डाउनलोड एप द्वारा प्राप्त कर लेते थे।

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खाताधारक को पता चलने से पहले ये लोग उरा खाते से रुपए हड़प लेते हैं। इस प्रकार के मामलों में बैंक मैनेजर या किसी बैंककर्मी की मिलीभगत हो सकती है। फिलहाल इसमें अनुसंधान चल रहा है।