महकी भू ऐसी लगे विरहन पाया कन्त, नाचे झूमे मोर तो सुंदर लगे बसन्त…

कविमित्र की मासिक काव्य गोष्ठी

जोधपुर, नये व पुराने रचनाकार,कवि और शायरों‌ के बीच सेतु का कार्य करने वाली संस्था कविमित्र समूह की मासिक काव्य गोष्ठी इस बार भी अपने उद्देश्य में सफ़ल रही। स्थानीय स्वामी कृष्णानंद स्मृति सभागार में आयोजित इस काव्य सांझ में रचनाकारों ने एक से बढ़कर एक रचना सुनाई। कार्यक्रम में कोरोना को लेकर जारी सभी सरकारी दिशा निर्देशो का पालन भी किया गया।

संस्था के अध्यक्ष शैलेन्द्र ढढ्ढा ने बताया कि काव्य गोष्ठी का आगाज़ नकुल की रचना वो ख़त पूरा होकर भी अधूरा रह गया से हुई। उसके बाद शेखर देथा की तपिश इतनी बढ़ी कि दरिया भी पानी मांगे,चंचल चौधरी की लेख‌नी से निकले शब्द सुबह के पांच बजे,मधु वैष्णव’मान्या’ के मन की डोर को तुम बांधे रखना.. काव्यगोष्ठी की अच्छी शुरुआत में मददगार रही। दीपा परिहार ने महकी भू एसी लगे,विरहन पाया कन्त,नाचे झूमे मोर तो,सुन्दर लगे बसन्त..।छगनराज राव ने आकाश हमारा है,परवाज़ तुम्हारा है, मेरा तो कबूतर है पर बाज़ तुम्हारा है।अशफ़ाक अहमद फौजदार ने दुनिया में तुम सिक्का ए इश्क चला कर देखो व मोहन दास वैष्णव’रुक्मे’ ने अपनी रचनाओं से गोष्ठी को गति प्रदान की। उनकी इसी गति को बरकरार रखते हुए प्रमोद वैष्णव ने आ जाता है करार,तुम्हारे दूर से निहारने पर ही,ये गुस्ताखी करने कभी क़रीब क्यूं‌ नहीं आ जाती हो सुनाई। फ़ानी जोधपुरी ने धूप बिखरी है सड़कों पे,उठा लो इसको,कल इसे शायद यहां मुश्किल हो जायेगा सुनाई ।दशरथ सोलंकी ने आदमियत का संकट,फिर एक दिन और छल सुनाकर वाहवाही लूटी। कमलेश तिवारी ने हम‌ गढ़ ही नहीं पाए एसा शब्द,जो कर दे अभिव्यक्त ज्यूं का त्यूं मन के दुख को.. और अंत में नवीन ‘पंछी’ ने राजा हमारे पुरखों ने देखे,राजा हमने भी देखे सुनाकर आज के हालात पर टिप्पणी करते हुए काव्यगोष्ठी को समापन की ओर बढ़ाया। गोष्ठी का संचालन अशफ़ाक अहमद फौज़दार ने किया।

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