खींचन में तीस हजार कुरजां का कलरव, पर्यटकों के लिए बना आकर्षण का केंद्र

खींचन में तीस हजार कुरजां का कलरव, पर्यटकों के लिए बना आकर्षण का केंद्र

जोधपुर, जिले का फलोदी कस्बे के खींचन गांव में कुरजां का कलरव विदेशी मेहमानों के लिए आकर्षण का केंद्र बनता जा रहा है। शनिवार को यहां पर तीस हजार से ज्यादा कुरजांओं की चहचहाट सुनाई दी है। वह जब इन दिनों प्रदेश भर में बर्ड फ्लू की आशंका और कहीं कहीं पर फैलना सामने आया है। ऐसे में खींचन विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। अब पक्षी विशेषज्ञों ने इनकी सुरक्षा भी बढ़ा दी है। गौरतलब है कि कुरजां का डेरा सदियों से फलोदी के खींचन गांव में चला आ रहा है। शीत ऋतु में यह कुरजां हजारों मील का सफर कर यहां पर आती है।

हजारों मील से आती मारवाड़ की धरा पर कुरजां

सर्दी के आरंभ के साथ ही हजारों किलोमीटर का सफर तय कर हजारों कुरजां परिन्दें मारवाड़ की धरा पर उतरते हैं। मारवाड़ में इन दिनों पचास से अधिक तालाब के निकट कुरजां ने डेरा जमा रखा है। इनमें से सबसे अधिक कुरजां खींचन पहुंचती है। खींचन की आबोहवा व सुरक्षा के साथ ही यहां के लोगों की मेजबानी कुरजां को इतनी अधिक रास आई हुई है।

गत साल से ज्यादा कुरजां पहुंची

ग्रामीणों की मानें तो इस बार पिछले साल के मुकाबले कुछ अधिक पक्षी आए हुए हैं। रोजाना करीब पंद्रह क्विंटल दाना कुरजां को खिलाया जा रहा है। कुरजां खींचन की मिट्टी में उपलब्ध छोटे-छोटे कंकर खाती है। साथ ही मक्की व ज्वार दाना भी खाती है। गांव में बरसों से यह क्रम बना हुआ है कि कई समाज के लोग इन प्रवासी परिन्दों के लिए दाने-पानी की व्यवस्था करते हैं।

बर्ड फ्लू का खतरा टला नहीं, सुरक्षा बढ़ाई

प्रदेश में पक्षियों पर इस बार बर्ड फ्लू का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि फिलहाल खतरे के बादल टलते नजर आ रहे हैं। गत कुछ दिन से नया मामला सामने नहीं आया है। इसके बावजूद अतिरिक्त सतर्कता बरती जा रही है। खींचन व आसपास जहां तक कुरजां जाती है वहां तक लगातार निगरानी रखी जा रही है। ताकि किसी पक्षी के बीमार पड़ते ही उसे अन्य पक्षियों से अलग किया जा सके। कुरजां पक्षियों के झुंड रात में खींचन से दूर खेतों में सोने के लिए चले जाते हैं।

साइबेरियाई कुरजां और फरवरी में वापसी

साइबेरिया और मंगोलिया से होकर यह कुरजां मारवाड़ में सर्द ऋतु के साथ ही दस्तक देती है। मारवाड़ में फलोदी का खींचन, कापरड़ा और तकरीबन पोखर तालाब इनके लिए अब जाने जाते हैं। स्थानीय पर्यटक के साथ विदेशी मेहमान इन्हें देखने आते रहते हैं। इनका सफर पांच से सात हजार किलोमीटर लंबा माना जाता है। पहाड़ी की ऊंची चोटियां पार कर ये मारवाड़ की धरा पर उतरती हैं। फरवरी में सर्दी विदाई पर होती है तब ये फिर अपने प्रदेश के लिए उड़ान भर लेती हैं।

दूरदृष्टिन्यूज़ की एप्लिकेशन अभी डाउनलोड करें – http://play.google.com/store/apps/details?id=com.digital.doordrishtinews

Similar Posts