कमलेश तिवारी के बाल कहानी संग्रह लट्टू और डोरी पर परिचर्चा

जोधपुर, कहानीकार कमलेश तिवारी के बाल कहानी संग्रह लट्टू और डोरी पर गांधी शांति प्रतिष्ठान में परिचर्चा आयोजित की गई। परिचर्चा में शहर के साहित्यकारों, साहित्य प्रेमियों और प्रबुद्धजनों ने भाग लिया। परिचर्चा में बाल साहित्य की विशेषताओं और आज के समय में उसकी प्रासंगिकता पर विचार विमर्श हुआ।

The world will be terrible where children do not have stories - Dr. Bhati

कहानी संग्रह पर बतौर मुख्य वक्ता बोलते हुए डॉ फतेह सिंह भाटी ने कहा कि लेखक के लिए बाल साहित्य लिखना हमेशा चुनोती भरा है क्योंकि उसके लिये बच्चों के स्तर से समझना होता है। बच्चों के लिए नया और बाहर का आकर्षण बना रहता है लेकिन वे दुनियावी प्रतिकूलताओं को समझ नहीं पाते। कहानी दादी नानी की परंपरा से आती है जो न्यूक्लियर फैमिली में खत्म सी हो जा रही है। बच्चों की पत्रिकाएँ भी खत्म हो गई हैं। आर्टफिशल इंटेलीजेंसी के दौर में बाल साहित्य लेखक के सामने बच्चों के लिए लिखना बड़ा चुनोती भरा है।
उन्होंने कहा कि वह संसार भयावह होगा, जहाँ बच्चों के पास कहानियां नहीं होगी। वरिष्ठ रंगकर्मी रमेश बोराणा ने कहा कि सही समय पर बाल साहित्य व सृजन पर बात कर रहे हैं। मासूमियत को बाजार से जो खतरे हैं ऐसी स्थिति में यह संग्रह आना खुशी की बात है। बाल अपराध की रेट देखें तो बाल मन उद्वेलित हो रहा है, उसे समझने की जरुरत है। बाजार की नजर बच्चों पर है उसे मेकेनिज़्म में बदल रहे हैं। आज मोबाइल में बच्चे की दुनिया सिकुड़ गई है। तकनीकी युग में बच्चे पर इतना दबाव है, परिवार के पास समय नहीं है वे बच्चे की जरूरत को समझ नहीं पा रहे हैं। वरिष्ठ साहित्यकार नवीन पंछी ने कहा कि ये कहानियां सम्प्रेषणीय हैं जो सहज सरल तरीके से बाल मन को प्रभावित करता है। वरिष्ठ लेखक मीठेश निर्मोही ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कमलेश जी की कहानियां संदेश देती हुई कहानियां हैं। बच्चों के मन को समझते हुए आप इसमें सफल रहे हैं। इन कहानियों का नाट्य रूपांतरण भी होना चाहिए।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ आईदान सिंह भाटी ने विर्मश को गंभीर बनाते हुए कहा कि लेखक अपने समय को दर्ज करता है। कमलेश ने भी इन कहानियों में अपने समय के बच्चों की चिंताओं पर नज़र रखते हुए इनको लिखा है। पहले सभी लेखक अनिवार्य तौर पर बाल साहित्य लिखते थे।
उन्होंने कहा कि कमलेश जी रंगकर्मी हैं तो उनकी कहानियों में नाटकीयता भी आती है। कई बार ये कहानियां न केवल बच्चों के लिए बल्कि अभिभावकों के लिए भी है। बाल और किशोर मन परस्पर गुंथे हुए हैं।अधिकांश किशोर मन को सम्बोधित करती है। कहानियों को पढ़ते हुए लगा इन्हें पद्य के रुप मे आना चाहिए। वरिष्ठ रंगकर्मी शब्बीर हुसैन ने किताब पर बात करते हुए कहा कि समाज का बड़ा नुकसान हो रहा है, क्योंकि बच्चों के लिए लिखा नहीं जा रहा है।प्राथमिक स्तर पर बच्चों के लिए लिखना जरूरी है। इन कहानियों पर बच्चों से भी चर्चा करवाई जाए।
रंगकर्मी रमेश भाटी ने कहा कि कमलेश जी ने बाल मन अनुरूप कहानियां लिखी हैं। शहर के वरिष्ठ कहानीकार हरिगोपाल राठी ने बाल साहित्य के भविष्य पर टिप्पणी करते हुए कहा बाल कहानियां लम्बे समय तक अवचेतन पर असर करती हैं,कहानियाँ सन्देश देती है। रंगकर्मी एमएस जई ने अपनी बात में कहा कि इनमें इंस्टेंट लेखक की विशेषता है जो इन कहानियों में बख़ूबी दिखाई देता है। कमलेश जी बच्चों के जादुई महल में अनजान प्रवेश करता है तो वे दूरी बनाते हैं लेकिन उनके मन को समझते हैं तो बच्चे करीब आते हैं। कहानीकार संतोष चौधरी ने कहा कि बच्चों के लिए महत्वपूर्ण काम किया है। हिंदी बाल साहित्य का इतिहास समृद्ध है जिसमें इस तरह किताब आना और भी खुशी की बात है। वरिष्ठ रंगकर्मी प्रमोद वैष्णव ने कहानियों पर विस्तार से बात करते हुए कहा कि इस तरह का कहानी संग्रह आना सुखद बात है क्योंकि बाल साहित्य का दायरा दिनोदिन सिकुड़ता जा रहा है।
कहानीकार ने वीणा चूंडावत ने कहानी की बारीकियों पर बात करते हुए कहा कि मां बच्चे की प्रथम गुरु होती है। इसलिए ये कहानियां माँ के जरिये से बच्चे तक पहुंचती है। युवा कवि कल्याण विश्नोई ने परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि इन कहानियों को अपने परिवार के बच्चों तक पहुंचाएं। ये कहानियां बच्चों के सोचने और कल्पना करने के शक्ति को बढ़ाती हैं। बच्चे जब प्रकृति से जुड़ेंगे तो ही सही अर्थ में सीख पाएंगे।
शीर्षक कहानी लट्टू डोरी रंगमंच की कहानी है। टेक्नोलॉजी हमारे बच्चों की गर्दन झुका देगी। मेहू ने एक बाल पाठिका के रूप में अपने अनुभव शेयर किए। डॉ रेणु श्रीवास्तव ने कहा कि तकनीकी युग मे न अच्छा बाल साहित्य है न ही माहौल। हम महंगे गजट तो ला देते हैं पर साहित्य उपलब्ध नहीं कराते हैं। कार्टून से हमारी पीढियां भ्रमित हो रही हैं जिसे ये कहानिया स्वस्थ समाज के निर्माण में मदद करेगी। शाइर फानी जोधपुरी ने कहा कि बचपन में जो पढ़ा जाता है वो ज़ेहन पर लम्बे समय तक छाप पड़ती है। कहानियों को पढ़ते हुए लगता है कि यह कहानियां न केवल बच्चों के लिए बल्कि हमारे लिए भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। चंचल चौधरी ने कहा कि गूंगे समाज के सामने सवाल उठाती है। फाइंडिंग निमो की दुनिया में ले जाती है। ये कहानियाँ बच्चों के लिए फरिश्ते से खुशी देती है। एकल परिवार की वजह से सबसे ज्यादा बच्चों को नुकसान हुआ।
किताब लेखक कमलेश तिवारी ने विर्मश दौरान उठे सवालों का जवाब देते हुए अपने लेखकीय मन्तव्य जाहिर किया। उन्होंने कहा कि आज के बच्चों तक साहित्य नहीं पहुंच पा रहा है। कहानी पढ़ने के बाद बच्चे के मन में क्या बदलता है इसको ध्यान में रखकर मैंने कहानियाँ लिखने की कोशिश की है। बचपन में तमाशा करने वाले लड़के,पुताई करने वाले कारीगरों से किस्सा सुन अभिभूत हो जाता था। कार्यक्रम में अरुण कुमार, छगन राव, दीपा राव, अमजद अहसास, डॉ कप्तान बोरावड़, अशफाक फौजदार,अशोक चांदोरा,नकुल दवे,विजय परिहार,अरमान जोधपुरी,अशोक चौधरी,मनोहर सिंह चौहान ने भी विमर्श में भाग लिया। संचालन रेणु वर्मा ने किया। अंत में माधव राठौड़ ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।