जोधपुर, कविमित्र समूह द्वारा रविवार को मासिक ऑनलाइन गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी का प्रारम्भ लुधियाना की रोशनी सिंह की कविताओं से हुआ। अर्पण कर दिया था मैंने / मन का फूल तुम्हें। युवा कवयित्री शिवानी पुरोहित जिनकी कविताओं में प्रेम के अनेक रंग उभर कर आते हैं, ने प्रेम को जानने का सूत्र दिया – हर कोई प्रेम को जानना चाहता है/ लेकिन प्रेम एक साधना है / खुद को भूलना होता है।

ऑनलाइन मासिक काव्य गोष्ठी

प्रशासनिक अधिकारी दशरथ कुमार सोलंकी ने अपनी कविताओं द्वारा याद दिलाया कि देश की संस्कृति आज गांवों में जिंदा है। ‘उधार’ कविता में कहते हैं- मैं माटी से भीनी खुशबू उधार लूंगा / आकाश से लूंगा ऊंचाई और मर्यादा / जल से तृप्ति/ अग्नि से तपन/ वायु से वेग। उदयपुर के शैलेन्द्र ढड्ढा ने अपनी कविता में प्रकाश और अंधकार के रिश्ते को नई रूप में परिभाषित करते हुए कहा-चल किरण तुझे अंधेरे से मिला दूं / देख एक दुनिया जहां तू नहीं है।

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एक अन्य कविता रचनात्मकता और निर्दोषता का मिलन ही भगवान है। रेणुका श्रीवास्तव ने यही जाना मैंने/ खो देना/ पाने जैसा ही आता सबके हिस्से/ हम खो देते / और वो पल / अटका रहता ताकता हमको कविता प्रस्तुत की। ज्योति तिवारी ने अपनी रचना- घर आंगन में लौटी चिड़िया/ हवा हुई है उजयाली/लौटेगी फिर खुशहाली सुनाई।

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वरिष्ठ रंगकर्मी प्रमोद वैष्णव ने किताबों की तुलना बुजर्गों से करते हुए कहा-घर के/बुजुर्ग सी/हो गई है किताबें/आजकल/ जिसके कुछ पन्ने फट चुके तो/ कुछ पढ़ने लायक नहीं बचे/ उन पन्नों में लिखे शब्दों में/ किसी की दिलचस्पी नहीं है ।

गोष्ठी के अंत में मकबूल शायर अशफाक अहमद फौजदार ने अपने कलाम पेश किये- गैर मुल्की परिंदे भी यहां आकर खूब किलोल करते हैं/दोस्तों सभी का खैर मकदम हुआ है पत्थरों के शहर में।

गोष्ठी में बीकानेर की वरिष्ठ साहित्यकार मोनिका गौड़, डॉ. फतेह सिंह भाटी और रंगकर्मी कमलेश तिवारी ने उपस्थित रह कर कवियों की हौसला अफजाई की। अंत में संस्था के अध्यक्ष शैलेन्द्र ढड्ढा ने धन्यवाद ज्ञापन किया। संचालन प्रमोद वैष्णव का था।

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