प्रेमचंद रंग महोत्सव के पहले दिन हुआ नाटक सद्गति का प्रभावी मंचन

प्रेमचंद रंग महोत्सव के पहले दिन हुआ नाटक सद्गति का प्रभावी मंचन

दुखिया को शहीद होकर ही मिली सद्गति

जोधपुर, मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि पर प्रेमचंद रंग महोत्सव का आगाज़ मेजबान संस्था आकांक्षा संस्थान की प्रस्तुति नाटक सद्गति के प्रभावी मंचन से की गई। सद्गति मुंशी प्रेमचंद की श्रेष्ठ रचनाओं में से एक है जिसे मंच पर सजीव किया डॉ. विकास कपूर के कुशल निर्देशन ने। 1930 में लिखी यह कहानी भारत की तत्कालीन वर्णाश्रमधर्मी सामाजिक व्यवस्था का एक कटु लेकिन सटीक चित्र प्रस्तुत करती है। कहानी के केंद्र में सामाजिक विषमताओं और जात-पांत का प्रतिनिधित्व करती लकड़ी की एक मोटी गाँठ है, जिसे दुखिया चमार अपने दुर्बल हाथों से चीरने का असफल प्रयास कर रहा है।

प्रेमचंद रंग महोत्सव के पहले दिन हुआ नाटक सद्गति का प्रभावी मंचन

दुखिया आया तो था अपनी बेटी की सगाई के लिए साइत निकलवाने लेकिन पंडित घासीराम ने उसे घर भर के काम करने को बाध्य कर दिया। दुखिया दिन भर भूखा प्यासा पंडित जी के आँगन में बेगार करने को विवश हो जाता है, लेकिन अछूत होने के कारण पानी तक नहीं मांग पाता। अंत में वही गाँठ उस बेचारे की जान ले लेती है। पंडित-पंडिताइन इस बात से विचलित नहीं हैं कि उनके अमानवीय व्यवहार ने एक गरीब की जान ले डाली है, वे इस बात से परेशान है कि अछूत की लाश को ब्राह्मण कैसे छुएगा? मंच पर दुखिया के किरदार को जीवंत किया अफज़़ल हुसैन ने और पंडित घासीराम को मंच पर जिया रमेश बोहरा ने। चमार की पत्नी झुरिया के किरदार में नेहा मेहता ने प्रभावित किया और पंडिताइन के चरित्र को अभिनीत किया माधुरी कौशिक ने, चिखुरी के किरदार को जीवंत किया राजकुमार चौहान ने और गाववालों के अन्य किरदारों को प्रशंसनीय ढंग से निभाया, जिसके भरत मेवाड़ा, शरद शर्मा, डॉ. नीतू परिहार और अश्विन रामदेव ने निभाया।

वेश भूषा डॉ. क्रान्ति कपूर, रूप सज्जा अभिषेक त्रिवेदी, डॉ. नीतू परिहार मंच सज्जा मोहम्मद इमरान, मोती जांगिड, नेहा मेहता संगीत आकाश उपाध्याय, अरुण कुमार रंगदीपन शफी मोहम्मद, नाट्य रूपांतरण रमेश बोहरा, प्रस्तुति नियंत्रण प्रवीण कुमार झा और निर्देशन डॉ. विकास कपूर का था। नाटक के अंत में दर्शकों ने नाटक के कलाकारों और निर्देशक से नाटक और कहानी व अभिनय के बारे में सवांद भी किया जो इस प्रस्तुति की अनूठी बात रही। नाटक अंत में दर्शकों के मन में यह अनसुलझा सवाल छोड़ जाने में सफल रहा कि अफ़सोस इस बात का है कि स्वतंत्रता मिलने के 75 वर्ष बाद भी कहानी में वर्णित कर्मकांड और धर्म-सम्मत दलित उत्पीडऩ आज भी जारी है। धर्माडम्बर की इस गाँठ पर अभी जाने कितने दुखिया और शहीद होंगे। नाटक के मंचन ने कहानी की सार्थकता को मंच पर जीवंत कर दिया और इसके माध्यम से मुंशी जी को आदरांजलि दी गई। इसके लिए सभी कलाकार बधाई के पात्र हैं।

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