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राष्ट्रीय संगोष्ठी,भारत की एकात्मता और जनजातीय संस्कृति

संस्कृति (2)

पार्थसारथि थपलियाल

धरती पर मुर्गी पहले आई या अंडा? यह प्रश्न सदैव अनुत्तरित रहा है। ये कहना कि मनुष्य का विकास बंदरों से हुआ या मनुष्य के पूर्वज बंदर थे, यह पश्चमी दुनिया का विचार है। भारतीय जीवन दर्शन ऐसा नही मानता। समझने के लिए यह विषय भी है कि क्या बंदर प्रजाति ने अब आदमी बनाने बन्द कर दिए? कुछ लोगों का ये मानना की अमीबा से मानव की उत्तपत्ति हुई तब हम यह नही पूछते हैं कि क्या अब अमीबा होना भी बंद हो गया? पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों की तरह इतिहासकारों पर भी संशय होता है जो मूल निवासियों को लेकर नई नई धारणाएं लेकर आते हैं। पश्चिम ने एक विचार दिया और हमने मान लिया। एक दौर में उन्नत देशों ने जगह-जगह जाकर जनजातीय लोगों को यातनाएं दी या उन्हें उनके जंगलों से मार भगा दिया गया। अनेक संघर्षों में विश्व में हज़ारों जनजातीय लोगों के कत्ल कर दिए गए। बाद में उन्हें खुश करने के उद्देश्य से “विश्व मूल निवासी दिवस” मनाने के प्रयास संयुक्त राष्ट्र संघ की ओर से किए गए। इसे कहते हैं गाय मार कर जूता दान करना।

6 अगस्त को अंतर विश्वविद्यालय संवाद केंद्र दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी “भारत की एकात्मता और जनजातीय संस्कृति” की पृष्ठभूमि को रेखांकित किया,सभ्यता अध्ययन केंद्र के निदेशक रविशंकर ने। उन्होंने बताया कि जिस दौर में भारत के लोग नावों में बैठकर अपने समुदाय के साथ दूर देशों में जाकर व्यापार करते थे उस दौर में यूरोपीय देश यह ढूंढ रहे थे कि दुनियां में भारत कहां है? इटली के समुद्री यात्री क्रिस्टोफर कोलंबस निकला था भारत की खोज करने पहुंच गया अमेरिका। पुर्तगाली नाविक वास्को डी गामा इसी तरह भटकते हुए अफ्रीका महाद्वीप पहुंचा और गुजरात के व्यापारी कानू भाई के साथ कालीकट (भारत) आया। यूरोपीय लोग जिस भी महाद्वीप में गए सबसे पहले अपना उपनिवेश बढ़ाते हुए उन्होंने मूल निवासियों को मारा काटा या दुत्कारा। यह बात समझ से परे है कि जिन लोगों ने हजारों मूल निवासियों की हत्या की वे मूल निवासी दिवस घोषित कर क्या बताना चाहते हैं। खैर, 9 अगस्त 1982 को जिनेवा में मूलनिवासी दिवस घोषित करने को लेकर पहली बार संयुक्त राष्ट्र संघ ने विचार विमर्श किया। बाद में दिसंबर 1993 में संयुक्त राष्ट्र मूल निवासी निर्धारण कार्य दल ने यह तय किया गया कि 9 अगस्त को प्रतिवर्ष विश्व स्वदेशी या मूल निवासी दिवस (World indigenous day) मनाया जाएगा। पहला अंतरराष्ट्रीय मूल निवासी सम्मेलन जिनेवा में 9 अगस्त 1994 को आयोजित किया गया। तब से प्रतिवर्ष 9 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय मूल निवासी दिन मनाया जाने लगा। इस सम्मेलन में मूल निवासियों की संस्कृति,भाषा,उनके अधिकार आदि को एक मत से स्वीकार किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने मूल निवासियों को वचन दिया हम आपके साथ हैं।

रवि शंकर, निदेशक सभ्यता अध्ययन केंद्र ने बताया कि उस समय भारत में मूल निवासी शब्द पर बड़ी चर्चा छिड़ी कि भारत के मूल निवासी कौन। विश्व में जहां केवल ट्राइब्स या आदिवासियों को मूल निवासी माना जाता है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र को बता दिया कि भारत के सभी लोग यहां के मूल निवासी हैं। यह एक ऐतिहासिक षड्यंत्र है जिसमें युगों से पल्लवित परिष्कृत सभ्यता जीवित है उस मानव वर्ग को इधर उधर से आया हुआ बताना अनुचित है। सही बात तो यह है कि जितनी भी जनजातियां है इन्होंने भारत में वनों की और समाज की रक्षा की है। देश की सीमाओं में रह कर इन्होंने देश की रक्षा भी की है। वनों में रहनेवाले ये लोग सनातन संस्कृति के लोग हैं।

रवि शंकर ने यह भी बताया कि वन बंधुओं के कल्याण के लिए भारत में सबसे बड़ा सामाजिक संगठन “वनवासी कल्याण आश्रम” है जो जनजातीय समाज को शिक्षित और जागरूक कर रहा है। इस काम के लिए वनवासी कल्याण आश्रम 40 हज़ार से अधिक विद्यालय संचालित कर रहा है। इस अवसर पर वनवासी कल्याण आश्रम की पत्रिका वन बंधु के अगस्त अंक और सभ्यता अध्ययन केंद्र की पत्रिका सभ्यता संवाद का विमोचन भी किया गया।

क्रमशः-3…..

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