रस,भाव और आंगिक अभिनय पर विस्तार से हुई चर्चा
राष्ट्रीय नाट्यशास्त्र कार्यशाला
जोधपुर, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी व राजस्थान संस्कृत अकादमी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय नाट्यशास्त्र कार्यशाला के तीसरे दिन प्रो राधा वल्लभ त्रिपाठी ने नाट्य शास्त्र के 6 टे, 7वें, और 25वें अध्यायों का सार प्रस्तुत करते हुए रस और भाव के स्वरूप पर प्रकाश डाला तथा नाट्यशास्त्र के अनुसार नायक और नायिका के भेद की भी बारीकियाँ समझाई। विषय प्रवर्तन करते हुए नाट्यविद रमेश बोराणा ने नाट्यशास्त्र की प्रासंगिकता का उल्लेख करते हुए भारतीय परम्परा की जड़ों से जुड़ने का आह्वान किया। कार्यशाला के प्रतिभागियों ने प्रो. त्रिपाठी के परामार्शनुसार रस और भाव की विभिन्न आशु नाट्य रचना करते हुए रोचक प्रस्तुतियां भी इस अवसर पर प्रस्तुत की।
द्वितीय सत्र के मुख्य वक्ता देश के जाने-माने रंगकर्मी,नाटककार,नाट्य समीक्षक और कवि भारतरत्न भार्गव थे। भार्गव ने विश्व विख्यात नाट्य निर्देशक कावालम नारायण पणिक्कर की 50 वर्षों की रंगयात्रा के संबंध में अपने प्रत्यक्ष अनुभवों को साझा किया। पणिक्कर के साथ कई वर्ष कार्य कर चुके भार्गव ने उनके अनेक नाटकों के हिन्दी अनुवाद भी किये हैं। उन्होंने भारतीय रंगमंच के लिए पणिक्कर के महत्त्वपूर्ण योगदान पर विस्तार से प्रकाश डाला।
अपराह्न के सत्र में प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने अपने व्याख्यान में नाट्यशास्त्र के 13वें अध्याय के आधार पर लोकधर्मी, नाट्यधर्मी और प्रवृत्ति के स्वरूप को विस्तार से समझाया तथा प्रतिभागियों को इन पर आधारित नाट्य प्रस्तुतियां करने के लिए प्रेरित किया।
आज के अंतिम सत्र में डॉली ठक्कर ने नाट्य शास्त्र सम्मत आंगिक अभिनय की कतिपय प्रस्तुतियों को प्रतिभागियों से तैयार करवाया और उन्हें आंगिक अभिनय की बारीकियाँ समझाई। इन प्रस्तुतियों में सुनील माथुर, शिल्पी माथुर, प्रियदर्शिनी, गुलनाज़, दीपमाला, शब्बीर दादा,एसपी रंगा, अरू स्वाति व्यास आदि की प्रस्तुतियां सराहनीय रही। सत्र के अंत में नाट्य शास्त्र की विधि से आधुनिक नाटकों को प्रस्तुत करने की समस्याओं पर गहन विचार विमर्श हुआ।
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