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संसदीय लोकतंत्र में संवैधानिक पद की शपथ

संसदीय लोकतंत्र में संवैधानिक पद की शपथ

संविधान की मर्यादा (1)

पार्थसारथि थपलियाल

भारत में संवैधानिक पदों यहां तक कि सरकारी नौकरियों में भी पदभार ग्रहण से पूर्व विधिवत शपथ लेने का प्रावधान है। राष्ट्रपति,उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सदस्य,लोकसभा के अध्यक्ष, मुख्यन्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीश संविधान में स्थापित व्यवस्था के अनुरूप शपथ ग्रहण करते हैं।

राष्ट्रपति को शपथ सर्वोच्च न्यायालय के मुख्यन्यायाधीश शपथ दिलाते हैं। उपराष्ट्रपति,प्रधानमंत्री व मंत्रिमंडल, प्रोटेम स्पीकर आदि संवैधानिक पदों पर चयनित अधिकारियों को राष्ट्रपति, उनके पद की शपथ दिलाते हैं। लोकसभा के निर्वाचित सदस्यों को प्रोटेम स्पीकर शपथ दिलाते हैं। लोकसभा अध्यक्ष के पदभार ग्रहण के बाद यदि आवश्यक हो तो लोकसभा अध्यक्ष शपथ दिलाते हैं। राज्यसभा स्थाई सदन है, इसमें नए सदस्यों को सभापति शपथ दिलाते हैं। उपराष्ट्रपति पदेन राज्यसभा के सभापति होते हैं।

यह बताने का मतलब यह नही कि आपको पाठ पढ़ाना हो। बल्कि उद्देश्य यह है कि यह जानना है कि शपथ एक औपचारिकता मात्र है या इसको देखने समझने वाला भी कोई है? मंत्री पद की शपथ निर्वाचित या अनिर्वाचित व्यक्ति जिसके नाम की अनुशंसा (केंद्र सरकार में) प्रधानमंत्री अथवा (राज्य सरकार में) मुख्यमंत्री ने की हो मंत्री पद की शपथ ले सकता है। अनिर्वाचित सदस्य को मंत्री पद पर बने रहने के लिए 6 माह के अंदर अंदर संसद अथवा विधानसभा में (यथा स्थिति) किसी एक सदन का सदस्य होना आवश्यक है। मंत्रियों को दो प्रकार की शपथ लेनी होती है। पहली शपथ पद की होती है और दूसरी शपथ गोपनीयता की होती है।

पद की शपथ का नमूना देखिये-

मैं, ………, ईश्वर की शपथ लेता हूं/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा, मैं भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखूंगा, मैं ….. संघ के मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंत:करण से निर्वहन करूंगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार कार्य करूंगा।

यह चर्चा इसलिए जरूरी है क्योंकि जिन लोगों को जनता अपना प्रतिनिधि चुनती है वे अपनी शपथ को सम्मान भी देते हैं या नही? इसका प्रमाण उत्तराखंड विधानसभा में नियुक्तियों में हुए घोटाले और उत्तराखंड अधीनस्थ कर्मचारी चयन आयोग के परीक्षा पत्र लीक होने का प्रकरण है। विशेष चर्चा उन विधान सभा अध्यक्षों की होगी जिन्होंने अपनी सत्य निष्ठा की शपथ को कलंकित किया। इसका उद्देश्य किसी को अपमानित करने का भी नही लेकिन इस तथ्य को उजागर करना है कि जिन लोगों को नागरिकों ने अपना प्रतिनिधि चुना उनका चरित्र कितना संदिग्ध और अनैतिक है? विधान सभा राज्य के लिए कानून बनाती है। संसदीय प्रणाली में अध्यक्ष की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण होती है, लेकिन उत्तराखंड में इनकी भूमिका निकृष्ट पाई गई हो। भले ही प्रक्रिया में ये लोग अपने को सही सिद्ध कर लें लेकिन नैतिकता पर लगे दागों को क्या ये लोग धो पाएंगे?

क्रमशः ..2

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