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मृत्युभोज की परम्परा तोड़ सर्व समाज में शिक्षा पर खर्च करेंगे

मृत्युभोज की परम्परा तोड़ सर्व समाज में शिक्षा पर खर्च करेंगे

पिता के निधन पर लिया संकल्प

देवगढ़ (आगोलाई) के कर्नल डॉ. बलदेवसिंह चौधरी के परिवार की सामाजिक क्षेत्र में क्रांतिकारी पहल

जोधपुर, जिले के आगोलाई क्षेत्र के देवगढ़ गांव के कर्नल डॉ.बलदेवसिंह चौधरी के परिवार ने अपने जाट समाज के साथ-साथ सभी समाज को नई राह दिखाते हुए मारवाड़ में सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ क्रांतिकारी पहल की शुरुआत की है। कर्नल चौधरी के पिता नैनाराम सारण का गत 26 जनवरी को 82 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। पिछले दो दशक से अधिक समय से लगातार मानव व शिक्षा सेवा से जुड़े मानव की उपाधि प्राप्त कर्नल डॉ.बलदेवसिंह चौधरी व इनके छोटे भाई धर्माराम चौधरी ने आगोलाई सहित कोर्णावटी क्षेत्र में सामाजिक कुरीति मृत्युभोज, अफीम-डोडा का पूर्णतया बहिष्कार का फैसला लिया। उन्होंने जाट समाज सहित क्षेत्र के सर्व समाज में शिक्षा पर खर्च कर अपने पिता को सच्ची श्रद्धांजलि देने का निर्णय लिया।

वर्तमान में भारतीय सेना में कर्नल के पद पर कार्यरत व प्रथम राज एनसीसी बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर डॉ. बलदेवसिंह चौधरी ने बताया कि मृत्युभोज जैसी सामाजिक कुरीति के खिलाफ खड़ा होने पर हो सकता सामाजिक लोग ताने भी देंगे लेकिन मेरा परिवार व मेरा कुटुंब मृत्युभोज जैसी कुरीति समाप्त करने के लिए हर वो ताना सुनने के लिए तैयार हैं क्योंकि पिता नैनाराम जाट समाज कोर्णावटी पट्टी के 12 खेड़ों के पंच होने से ऐसे आयोजनों व सभाओं में जाते थे।

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कर्नल चौधरी ने बताया यदि मृत्युभोज करते हैं तो 20 लाख से अधिक खर्च हो जाते। कई गांवों में तो यह आंकड़ा 40-50 लाख तक भी पहुंच जाता है। इस तरह के आयोजनों में लोगों के गहने,जमीन-जायदाद सब बिक जाते हैं। समर्थ होने के बाद भी हमने ये निर्णय इसलिए लिया कि हमारी आने वाली पीढ़ी इससे बर्बाद नही हो,किसी को जमीन बेचने की नोवत ना आए। कर्नल के परिवार की इस क्रांतिकारी पहल की सर्व समाज मे चर्चा है और सभी ने सराहना की है।

बचपन मे झेला मृत्युभोज का दर्द:- कर्नल डॉ.बलदेवसिंह चौधरी ने बताया कि आगोलाई के सरकारी स्कूल से 8वीं पास करके साल 1982 में जोधपुर शहर में महेश स्कूल में 9वीं कक्षा में प्रवेश लिया ही था कि उनके दादाजी शेराराम का निधन हो गया था। उस समय न चाहते हुए भी समाज के दवाब में नैनाराम को मृत्यु भोज करना पड़ा। जिसके लिए घर के गहने तक बेचने पड़े तथा रिश्तोदारों से कर्जा लेना पड़ा। मजबूरन नैनाराम अपने बेटे को पढ़ाई छाेड़कर गांव बुलाया लेकिन कर्नल ने अपने ​रिश्तेदारों के सहयोग से पढ़ाई जारी रखने की को​शिश की लेकिन परिवार की आ​र्थिक ​स्थिति डांवाडोल बनी रही।

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मृत्युभोज के कारण पिता पर कर्ज होने पर कर्नल डॉ.बलदेवसिंह चौधरी ने अपनी आगे की पढ़ाई बीच मे छोड़कर आर्मी में सिपाही बन गए। उसके बाद वे आर्मी में रहते हुए अध्ययन करते रहे तथा उन्हें 1998 में सेना में स्थायी कमीशन मिला। दादा के निधन के बाद मृत्युभोज व दो बहनों के बाल-विवाह करने पर कर्नल को उस समय मृत्युभोज जैसी कुरीति से घृणा हो गई और इसका बहिष्कार करने का फैसला लिया।

सर्व समाज में शिक्षा के लिए देंगे अनुदान

कर्नल डॉ.बलदेवसिंह चौधरी के परिवार ने यह तय किया कि पिता के बारहवें पर 5 फरवरी को सर्व समाजों में शिक्षा व सामाजिक विकास हेतु आर्थिक सहयोग दिया जाएगा। इसके तहत देवगढ़ गांव के विकास हेतु 2 लाख रुपए,देवगढ़ में श्मशान भूमि में शेड एवं पानी की टँकी निर्माण हेतु 2 लाख,मोहनपुरा बाईराम मंदिर में पुस्तकालय हेतु 1 लाख,देवगढ़ उच्च प्राथमिक विद्यालय में प्रति वर्ष छात्र वृति हेतु 1 लाख, एक ट्रक ईट आगोलाई में गौशाला हेतु,रामगढी जोधपुर किसान छात्रावास में शिक्षा हेतु 51 हजार,वीर तेजा मंदिर चांदणा भाखर जोधपुर में पुस्तकालय हेतु 51 हजार,वीर तेजा मन्दिर आगोलाई में पुस्तकालय हेतु 51 हजार,ढांढनिया मठ में सम्पूर्ण हिन्दू साहित्य सेट हेतु 51 हजार,तेजा फाउंडेशन जयपुर में शिक्षा हेतु 51 हजार,50 विलेजर्स बाड़मेर में शिक्षा हेतु 51 हजार रुपए का सहयोग देने का निर्णय लिया।

इसके अलावा राजपूत,विश्नोई,ब्राह्मण, राजपुरोहित,चारण,वंशावली राव,नाई, दर्जी,मेघवाल,देवासी,गोस्वामी,सुथार, भील, दिशान्तरी, सन्त (साद), कायमखानी (सिंधी) समाज सहित सर्व समाज में शिक्षा हेतु आर्थिक सहयोग देकर दिवंगत पिता को श्रद्धांजलि देने का निर्णय लिया।

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