भर्ती प्रक्रिया में अपात्र कर देने को लेकर हाइकोर्ट में दी गई चुनौति
राजस्थान हाईकोर्ट
जोधपर,राजस्थान हाईकोर्ट ने आयुर्वेद कम्पाउण्डर/नर्स-जूनियर ग्रेड भर्ती 2024 में ई-मित्र कार्मिक की गलती से अनुसूचित जाति की जगह ओबीसी.वर्ग में आवेदन कर देने से भर्ती प्रक्रिया में अपात्र कर देने को लेकर दी गई चुनौति को लेकर सुनवाई करते हुए दस्तावेज सत्यापन काउंसलिंग में सम्मिलित करने के लिए अंतरिम आदेश दिया है।
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इसमें अधिवक्ता यशपाल ख़िलेरी ने याचिकाकर्ता किशोर सबलानिया की ओर से पैरवी की।राजस्थान हाइकोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश अरुण मोंगा की एकलपीठ से अंतरिम राहत दी गई।
नवलगढ़ ज़िला झुंझुनूं निवासी किशोर सबलानिया की ओर से अधिवक्ता यशपाल ख़िलेरी ने रिट याचिका दायर कर बताया कि आयुर्वेद विभाग की ओर से जारी विज्ञप्ति 10 दिसंबर 2024 में ई-मित्र कार्मिक की ओर हुई अनजाने में हुई ग़लती के कारण याचिकाकर्ता का ऑनलाइन आवेदन पत्र में जाति वर्ग में अनुसूचित जाति/ओबीसी के स्थान पर अन्य पिछड़ा वर्ग लिख दिए जाने से उसे अपात्र कर दिया गया,जिसे लेकर हाइकोर्ट जोधपुर में चुनोती दी गयी।
रिट याचिका में बताया गया कि याचिकाकर्ता ने आयुर्वेद नर्सिंग और फार्मेसी में तीन वर्षीय डिप्लोमा करने के बाद आयुर्वेद विभाग द्वारा 650 पदों हेतु निकाली आयुर्वेद नर्स भर्ती 2024 में अपना ऑनलाइन आवेदन पेश किया। ऑनलाइन आवेदन पत्र में ई-मित्र के कम पढ़े लिखे संचालक ने याचिकाकर्ता के ऑनलाइन आवेदन पत्र के जाति वर्ग कॉलम में ग़लती से अनुसूचित जाति की जगह अन्य पिछड़ा वर्ग लिख दिया।
यद्यपि गलत जाति वर्ग भर देने से उसे कोई भी फायदा नही होना था और न ही उसको ओबीसी. वर्ग का कोई फायदा मिलना है। ऐसा गलत जाति वर्ग लिख देने के पीछे उसका कोई भी अनुचित लाभ लेने का कोई उद्देश्य नही रहा है और न ही उसने किसी तथ्यों का मिथ्या व्यापदेशन और छिपाव किया है।।मात्र ई-मित्र कार्मिक की जरा सी चूक की वजह से उसे भर्ती प्रक्रिया से ही बाहर कर दिया जाना उसके लिए भारी दण्ड है जो उसके भविष्य के लिए बहुत ज्यादा नुकसानदेह हैं।।
अधिवक्ता ख़िलेरी ने बताया कि समान प्रकरण में हॉल ही में उच्चतम न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया है कि आवेदन पत्र में सद्भाविक त्रुटि से हुई मामूली चूक की वजह से आवेदक को चयन प्रक्रिया से ही बाहर कर देना बहुत ही ज्यादा अन्यायपूर्ण है औऱ सदभाविक आवेदक को चयन प्रक्रिया में भाग लेने का पूर्ण मौक़ा मिलना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि उम्मीदवारी केवल चूक/त्रुटि की गंभीरता की सावधानी पूर्वक जांच के बाद ही रद्द की जा सकती है न कि मामूली चूक या त्रुटियों के लिए। क़ानून की एक महत्त्वपूर्ण उक्ति है कि डी मिनिमिस नॉन क्यूरेट लेक्स जिसका अर्थ है “कानून छोटी-छोटी बातों से सरोकार नहीं रखता”। अर्थात कानून भी छोटे या महत्वहीन मामलों पर ध्यान नहीं देता है।
प्रकरण के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए और याची के अधिवक्ता के तर्कों से प्रथमद्रष्टया सहमत होकर वरिष्ठ न्यायाधीश अरुण मोंगा की एकलपीठ ने याचिकाकर्ता को आयुर्वेद कम्पाउण्डर/नर्स भर्ती 2024 के चल रही दस्तावेज सत्यापन काउंसलिंग में सम्मिलित करने के अहम अंतरिम आदेश पारित करते हुए मामले की अगली सुनवाई 18 मार्च 2025 नियत की।