Uttarakhand Silver Jubilee

उत्तराखंड: सम्मान को उड़ान देती नीयत

संदर्भ:- उत्तराखंड रजत जयंती

लेखक:- पार्थसारथि थपलियाल

उत्तराखंड राज्य का गठन 9 नवंबर सन 2000 को किया गया। उत्तराखंड भारत का 27वां राज्य बना। यह हिमालयी राज्य है। हिमालय जैसा ही कठिन यहां का जनजीवन है। उत्तराखंड का कुल क्षेत्रफल 53,483 वर्ग किलोमीटर है। कुल क्षेत्रफल का 71% + भू-भाग अनाच्छादित है। कृषि योग्य भूमि 14% है। उत्तराखंड राज्य में 13 जिले हैं। दो मंडल हैं-1.गढ़वाल मंडल और 2.कुमाऊं मंडल।

गढ़वाल मंडल में पौड़ी गढ़वाल, चमोली,रुद्रप्रयाग, टिहरी, उत्तरकाशी, हरिद्वार और देहरादून जिले हैं। कुमाऊं मंडल में-नैनीताल,अल्मोड़ा, बागेश्वर,चंपावत,पिथौरागढ़ और उद्यम सिंह नगर जिले हैं। इन 13 जिलों में से 9 जिले पूर्णतः पर्वतीय जिले हैं। संपूर्ण राज्य में 16,674 ग्राम हैं। राज्य गठित होने के समय उत्तराखंड की कुल जनसंख्या 84,89,349 थी। सन 2011 की जनगणना में यह संख्या 1,00,86,292 थी। सन् 2021 में की जानेवाली जनगणना कोविड बीमारी के कारण विलंबित है, अनुमान है वर्तमान में उत्तराखंड की कुल जनसंख्या एक करोड़ पच्चीस लाख होगी। अनुमान यह भी है कि पिछले 50 वर्षों में उत्तराखंड से 50 लाख से अधिक जनसंख्या उत्तराखंड से बाहर अन्य शहरों में पलायन कर गयी। यह सिलसिला अभी भी जारी है।

इस राज्य में साक्षरता दर (2011 के आंकड़े) 78.82 प्रतिशत है। राज्य निर्माण के आरंभिक योजना का आकार 2001-2002 में 14,501 करोड़ रुपए था। वर्तमान वित्त वर्ष 2025-26 के लिए उत्तराखंड सरकार का बजट 1,01,175.33 करोड़ रुपए है।1994 में राज्य निर्माण के लिए जो निर्णायक आंदोलन चलाया गया उसमें अनेक लोगों ने अपनी जानें गंवाई। उसके फलस्वरूप अंततः 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया। इस वर्ष यह राज्य अपनी स्थापना की रजत जयंती (Silver Jubilee) मना रहा है। पिछले 25 वर्षों का अधिकतर सफर राजनीतिक हिचकोले खाते हुए बढ़ता रहा।

राजनीतिक अस्थिरता से स्थिरता की ओर
प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी से लेकर पुष्कर सिंह धामी तक 10 राज नेताओं ने मुख्यमंत्री पद संभाला। इनके कार्यकाल का औसत ढाई वर्ष है। मुख्यमंत्री के रूप में सबसे लंबा कार्यकाल नारायण दत्त तिवारी का (2 मार्च 2002 से 7 मार्च 2007 तक) 5 साल 5 दिन का रहा। सबसे छोटा कार्यकाल तीर्थ सिंह रावत का (10 मार्च 2021 से 4 जुलाई 2021 तक) 116 दिन रहा। मुख्यमंत्री के रूप में हरीश रावत के कार्यकाल में दो बार राष्ट्रपति शासन रहा।

उनका कार्यकाल तीन खंडों में बंटा रहा। पहला कार्यकाल (1 फरवरी 2014 से 27 मार्च 2016 तक) 2 वर्ष 55 दिन,दूसरा कार्यकाल (21 अप्रैल 2016 से 22 अप्रैल 2016 तक) 1 दिन और तीसरा कार्यकाल (11 मई 2016 से 18 मार्च 2017तक) 311 दिन। बीच के दो अंतराल में राष्ट्रपति शासन रहा। कुल कार्यकाल 3 साल 2दिन। कई बार ऐसा लगा जैसे राजनीति का खो खो खेला जा रहा हो।

भारतीय जनता पार्टी से पुष्कर सिंह धामी पहले मुख्यमंत्री हैं जो चौथी विधान सभा के अंतिम महीनों में (4 मार्च 2021 से 21 मार्च 2022तक) भी मुख्यमंत्री रहे और पांचवीं विधान सभा के आम चुनाव (मार्च 2022) खटीमा से हारने के बाद भी भाजपा विधायक दल के नेता चुने गए और 2022 में 21 मार्च को उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। बाद में जुलाई माह 2022 में उन्होंने चंपावत से विधायक का उपचुनाव जीता। मेजर जनरल (रि) भुवन चंद्र खंडूरी और पुष्कर सिंह धामी,इन दो राजनेताओं ने अलग-अलग काल में मुख्यमंत्री पद की शपथ दो- दो बार ली।

उत्तराखंड में प्रभावी मार्गदर्शन
राजनेताओं का मूल्यांकन जनता करती है। कुछ ने अपनी क्षमताओं का उपयोग दबा कर काम करने में लगाया,कुछ राग तुष्टिकरण का गान करते रहे। विकास की दृष्टि से स्मरणीय कार्यकाल तीन मुख्य मंत्रियों का रहा। नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल में औद्योगिक विकास की संरचना स्थापित हुई। यद्यपि उनके कार्यकाल में “नौछमी नारैण” जागर गीत ने उनकी राजनीतिक पारी पर पूर्ण विराम लगा दिया था।

भुवन चंद्र खंडूड़ी के मुख्यमंत्रित्व काल में विकास की आधारभूत संरचना तैयार हुई। पुष्कर सिंह धामी का कार्यकाल अभी चल रहा है। उनके शासनकाल में इन्वेस्टर्स समिट 2023 का सफल आयोजन,जी 20 की बैठकों का सफल आयोजन, सिलक्यारा की सुरंग दुर्घटना 2024 के समय प्रशासनिक क्षमताओं का बेहतर प्रबंधन,धराली का महाप्रलय (5 अगस्त 2025) और थराली में आई बाढ़ (23 अगस्त 2025), जैसी दुर्घटनाएं हुई।

तीनों ही मुख्य मंत्री धामी के शासन काल में उनकी परीक्षा की बड़ी घड़ी थी। उन्होंने अपनी क्षमता,धैर्य,साहस,उच्च संपर्क जैसे गुणों के साथ स्वयं को सिद्ध करने का अवसर प्राप्त किया। मुख्यमंत्री धामी की निर्णय लेने की क्षमता ने उन्हें लोकप्रियता भी दी। धामी सरकार के कार्यकाल में भ्रष्टाचार मिट गया हो यह कहना असत्य होगा। उसका रूप बदल गया है।

एक शेर कभी सुना था…
किससे कहें और कौन सुने,सुने तो समझें नाहि।
कहना सुनना समझना सब मन ही के मन माहि।

यह (इस) लेखक के अनुभव पर आधारित है। छोटे बछड़े उज्याड़ खाने (प्रतिबंधित/बाड़ वाले खेतों में पशुओं का घुसना) खेतों में तभी घुसते हैं जब बलवान जानवर हरे भरे खेतों में चरने का आनंद लेते हैं। यदि सब कुछ भ्रष्टाचार रहित होता तो एक आईएएस अधिकारी और आयुर्वेद विश्वविद्यालय के कुलपति लांछित न होते। मुख्यमंत्री की भ्रष्टाचार के विरुद्ध उनकी (जीरो टॉलरेंस) की भावना भी कभी कभी दिखाई देती है। अच्छा होता यह काम अभियान के तौर पर किया जाता। 25 वर्षों का राजय का सफर मिला-जुला रहा।सूचना का अधिकार अधिनियम और लोकायुक्त जैसा कानून उत्तराखंड में बने हैं उनकी बहुत सराहना हुई है, लेकिन दोनों कानून निस्तेज/ कुंद पड़ चुके हैं।

विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त प्रदेश
उत्तराखंड विषम भौगोलिक स्थितियों का राज्य है। प्रदेश का अधिकतर भाग पर्वतीय है। जन जीवन मैदानी भागों की तुलना में काफी संघर्षशील है। विषम परिस्थितियों और आर्थिक पिछड़ापन लिए उत्तराखंड को भारतीय संविधान के 371 अनुच्छेद के अंतर्गत विशेष राज्य का दर्जा सन 2001 में दिया गया है। उत्तराखंड को डबल इंजन की सरकारों का बहुत साथ मिला अन्यथा राज्य सरकार के अपने संसाधन इतने कम हैं कि उससे संस्थापन व्यय चुकाना भारी पड़ता।

ऑल वेदर रोड परियोजना जो चारधाम की यात्रा को बारह माह संचालित रखने के उद्देश्य से कि गई, उससे चारधाम यात्रा सुगम और वरदान साबित हुई है। अगले वर्ष ‌ऋषिकेश से कर्ण प्रयाग तक रेल गाड़ी शुरू हो जाने की आशा है तब यात्रा और भी मजेदार होगी। दिल्ली से देहरादून,हरिद्वार,कोटद्वार, हल्द्वानी आदि महत्वपूर्ण स्थानों पर राष्ट्रीय राजमार्ग के माध्यम से बहुत सुगम हो गया है। केंद्र सरकार की सभी लाभकारी योजनाएं उत्तराखंड में व्यापक रूप से चल रही हैं।

उपलब्धियों की रजत जयंती
उत्तराखंड राज्य बनने के बाद अधिकतर मुख्यमंत्रियों ने जनता के हित के काम किए। किसी ने “न खाऊंगा न खाने दूंगा” का सिद्धांत अपनाया तो किसी का लोक हित गंगा में डुबकी लगाने जैसे था। मैं भी डुबकी लगाऊं तू भी लगा। सांसदों में अनिल बलूनी के प्रयासों से उत्तराखंड में अनेक सुविधाओं का विस्तार हुआ है। वे निरंतर प्रयासरत रहते हैं और केंद्र की कई लाभकारी योजनाएं उत्तराखंड की ओर मोड़ने में सफल रहते हैं। वे अक्सर लोगों के बीच पाए जाते हैं। उनका अभियान मेरा गांव मेरा वोट। बग्वाल,भैलो, होली,हरेला आदि को उन्होंने लोकमत के रूप में व्यापकता दी।

उपलब्धियों में शामिल कुछ सरकारी तथ्य
1.मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने समान नागरिक संहिता (UCC) संबंधी जो अधिनियम बनाया है वह भारतीय राज्यों में बनने वाला पहला अधिनियम है। उसकी सर्वत्र सराहना हुई है।

2.उत्तराखंड भू अधिनियम को प्रदेश की जनाकांक्षाओं के अनुरूप बनाया गया है।

3.जबरन धर्मांतरण के विरुद्ध कानून बनाया,साथ ही लव जिहाद,लैंड जेहाद किस्म की प्रवृतियों को भी कानूनन नियंत्रित किया है।

4.गौहत्या,मानव तस्करी,बालश्रम और परीक्षाओं में धोखाधड़ी को रोकने के लिए गैंगस्टर एक्ट में संशोधन किया गया है।

5.परीक्षाओं में अनियमितता रोकने के लिए अलग से एक कानून बनाया।

महिला सशक्तिकरण
महिला सशक्तिकरण के लिए जो व्यवस्थाएं और प्रबंधन स्थापित किए हैं। उत्तराखंड पहला राज्य है जहां महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए अलग से नीति निर्धारित की गई है।

1.लड़कियों के जन्म से लेकर शिक्षा प्राप्ति तक आर्थिक सहयोग के लिए नंदा गौरी योजना है।

2.पशुपालक महिलाओं के लिए घसियारी कल्याण योजना है।

3.एकल ( Singal women) महिलाओं को स्वरोजगार स्थापित करने के लिए मुख्यमंत्री एकल महिला रोज़गार योजना।

4.लखपति दीदी योजना के अंतर्गत 1.63 महिलाएं लखपति बन चुकी हैं।

5.जलसखी योजना के अंतर्गत बिजली,पानी आदि के बिलिंग का काम भी स्वयं सहायता समूह को दिया गया है।

6.सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 30% आरक्षण दिया गया है।

7.सहकारी समितियों तथा पंचायत निकाय चुनावों में महिलाओं को 33% आरक्षण है।

8.पैतृक संपति में महिलाओं के अधिकार सुनिश्चित कर दिए गए हैं।

उपलब्धियों पर विहंगम दृष्टि
1.उत्तराखंड राज्य सरकार का 2025-26 का सकल राज्य घरेलू उत्पादन (Gross State Domestic Production) 4,29,308 करोड़ रुपए अनुमानित है। यह राशि गत वर्ष की राशि से 13% अधिक है। गत वित्त वर्ष में आर्थिक दर 6.6% आंकी गई। छोटे राज्यों में गोवा के बाद उत्तराखंड दूसरे स्थान पर रहा।

2.स्टार्टअप योजना में प्रदेश के युवा उद्यमी बढ़ चढ कर भाग ले रहे हैं, केवल तीन वर्षों में उत्तराखंड पहले 5 राज्यों के ग्रुप में आ गया है।

3.शीतकालीन पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है जिससे सालभर रोजगार की स्थिति बनी रहे।

4.गांव गांव में होम स्टे बन रहे हैं। गांव के लोग समृद्ध हो रहे हैं। इसके लिए सरकार आर्थिक सहायता देती है।

5.सरकार डेस्टिनेशन वेडिंग के लिए त्रियुगी नारायण के अलावा अन्य क्षेत्रों को विकसित कर रही है। साथ ही पर्यटन के अन्य स्थानों को विकसित करने पर भी सरकार काम कर रही है।

6.धार्मिक यात्राओं के लिए ऑल वेदर रोड से चारधाम यात्रा सुगम हुई है। हेली सेवा से यात्रियों को सुविधा मिली है। वर्ष 2024 में 50 लाख लोगों ने चार धाम यात्रा की।

7.मंदिर माला परियोजना के अंतर्गत कुमाऊं मंडल के 16 देवस्थानों को विकसित किया जा रहा है। सरकार ने 100 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया है।

8.सिक्किम और मेघालय के बाद उत्तराखंड जैविक कृषि वाला तीसरा राज्य बने। सरकार के प्रयास जारी हैं।

9.डेस्टिनेशन फिल्म स्टेशन के लिए सरकार प्रोड्यूसर्स/इच्छुक लोगों को कई प्रकार का बढ़ावा देती है।

10.राज्य की खेल नीति बनने के बाद हर जिले में स्टेडियम बन गये हैं। विद्यालयों में खेल सुविधाएं बढ़ाई गई हैं। प्रतिभाओं को तराशा जा रहा है। उत्तराखंड में पहली बार राष्ट्रीय खेलों का आयोजन किया गया। 38वें राष्ट्रीय खेलों में उत्तराखंड के खिलाड़ियों ने पदकों की झड़ी लगा दी। स्वर्ण,रजत और कांस्य पदकों की संख्या 103 होना गौरव की बात है। उत्तराखंड जो इससे पहले राष्ट्रीय खेलों में 25वें स्थान पर था,38वें राष्ट्रीय खेलों में उत्तराखंड ने ऊंची छलांग लगा कर छठे स्थान पर अपनी विजय पताका निर्धारित की।

11.प्रशासनिक सुधार और सुशासन की दिशा में ई-गवर्नेंस,पंचायत सशक्तिकरण,राजस्व सुधार जैसे कदम उठाए गए हैं।

12.औली में शीतकालीन (राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय) खेलों का आयोजन किया जा रहा है।

जन अपेक्षाएं
1.देव भूमि उत्तराखंड पूर्ण रूप से भ्रष्टाचार मुक्त हो।

2.स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर किया जाय। प्रमुख स्थानों पर विशेषज्ञ डॉक्टरों की नियुक्ति हो।

3.वन्य जानवरों के नियंत्रण के लिए प्रावधान हों। मानवता के पक्ष को अन्य से प्राथमिकता मिले।

4.उत्तराखंड की राजधानी देहरादून की बजाय गैरसैंण हो। इसे सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाय।

5.उत्तराखंड की गढ़वाली-कुमाऊनी बोलियों के संरक्षण संवर्धन के लिए भाषा और साहित्य अकादमी बनायी जाय।

6.उत्तराखंड की लोक संस्कृति संरक्षण/संवर्धन के लिए उत्तराखंड संस्कृति,संगीत नाटक अकादमी स्थापित की जाय। संस्कृति विहीन राज्य आत्मा विहीन शरीर है।

7.संस्कृत भाषा राज्य की दूसरी भाषा है। घोषणा को व्यावहारिक बनाये जाने की आवश्यकता है।

8.पलायन को रोकने के बेहतर प्रयास हो जिससे बेरोज़गारी का निवारण भी हो।

स्थापना के 25 वर्ष यानी रजत जयंती वर्ष। हिचकोले खाते खाते उत्तराखंड जब खनन संबंधी उपलब्धियों के लिए सम्मानित किया जाता है तब लगता है कि विकास के पंखों को नयी उड़ान की नीयत मिल गई है। रजत जयंती वर्ष को लोक उत्सव की तरह मनाया जाना चाहिए। प्रवासी उत्तराखंड की महान हस्तियों को उससे जोड़ा जाय। उत्तराखंड की जय जयकार घाटियों से शिखरों तक पहुंचे। लोग गिर्दा का लिखा गायें-
उत्तराखंड मेरी मातृभूमि,
मातृभूमि मेरी पितृ भूमि
ओ भूमि तेरी जै जैकारा
म्योर हिमाला…..।

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