राजस्थानी साहित्य का प्रेमाख्यान विश्व की समृद्ध और बेजोड़ परम्परा- डॉ. शारदा कृष्ण

जोधपुर, जयनारायण व्यास विश्व विद्यालय के राजस्थानी विभाग द्वारा ऑनलाईन वेब गुमेज व्याख्यानमाला के अंतर्गत गुरुवार को राजस्थानी भाषा-साहित्य की प्रेमाख्यान परम्परा पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए राजस्थानी भाषा की ख्यातनाम रचनाकार,साहित्यवेता डॉ. शारदा कृष्ण ने कहा कि राजस्थानी प्रेमाख्यान परम्परा विश्व साहित्य की सबसे समृद्ध और बेजोड़ परम्परा है।

राजस्थानी विभागाध्यक्ष एवं गुमेज व्याख्यानमाला की संयोजक डॉ. मीनाक्षी बोराणा ने सभी का स्वागत करते हुए बताया कि इस वेब व्यख्यानमाला के माध्यम से राजस्थानी भाषा के ख्यातनाम साहित्यकारों की अभिव्यक्ति से आमजनों को लाभान्वित किया जा रहा है। डॉ. शारदा कृष्ण ने अपने उद्बोधन में कहा कि राजस्थानी साहित्य का इतिहास बहुत ही विशाल, समृद्ध और लोक प्रचलित है। इसकी परम्परा हमें गर्व की अनुभूति करवाती है। उसी तरह इसकी साहित्यिक विधाएं भी बहुत ही समरद्धशाली और गौरवशाली हैं।

मध्यकालीन प्रेमख्यान परम्परा राजस्थानी भाषा के सम्पूर्ण साहित्य में माणक मोतियां के समान जड़ित हैं एंव ओज लिए हुए नजर आती है। इस परम्परा के उद्भव पर बात करते हुए उन्होंने ने कहा कि प्राचीन वेदों से इस परम्परा के उत्स के सूत्र हमें मिलते हैं। प्रथम वेद ऋगवेद में यम यमी संवाद, उर्वशी पुर्वा संवाद आदि में इस तरह के उल्लेख मिलते हैं। पुराणों में भी प्रेम पर आधारित आख्यान, कथाएं, प्रसंग मिलते हैं। आदिकाव्य रामायण और महाभारत में भी कई आख्यान, उपाख्यान इस तरह के हैं जो अपने आप में महत्वपूर्ण हैं, जिनके उन्होंने कई उदाहरण दिए। इसके अलावा उन्होंने कहा कि प्राकृत अपभ्रंश जैन काव्यों में प्रेम कथाएं भरपूर मात्रा में मिलती हैं।

डॉ.शारदा ने राजस्थानी प्रेमाख्यान के रूपों के बारे में कहा कि ये लौकिक, साहित्यिक और ऐतिहासिक तीन रूपों में मिलते हैं। जिनमें आख्यान गीत कहानी गान, गाथा आदि में भी भरपूर और निरंतर सृजन होता रहा है। प्रेम की परिभाषा देते हुए उन्होंने प्रेम को जीवन का सार और जीवन का मूल बताया उन्होंने कहा कि प्रेम में श्रृंगार आता है और इसके दोनो रूप संयोग और वियोग का सटीक और प्रभावी चित्रण हमें इसमें देखने को मिलता है। प्रेमाख्यान की आधारभूमि पर ही लौकिक प्रेमकाव्य रचा गया है। उन्होंने बिझां-सौरठ, ढोला-मारू, माधवानल कामंदकला, जेठवा- ऊजळी आदि अमर-प्रेमकथाओं के बारे में भी विस्तार से चर्चा की। उन्होंने आख्यान और काव्य के बारे में बताते हुए इनके भेद बताए।

प्रेमाख्यान की जो कथाएं है जिसमें प्रेम में लिप्त नायक नायिकाओं के साथ परिवार, समाज, जाति आदि उनके प्रेम में रोड़ा बनते हैं समस्याएं उत्पन्न करते हैं और उन बधाओं को पार करके सोने के समान तप कर अपने प्रेम को अमर कर जाते हैं। ऐसी प्रेम कथाओं का भी विस्तार से वर्णन किया। इन कथाओं का अंत सुखांत और दुखांत दोनो रूप में मिलता है। उन्होंने कहा कि प्रेमाख्यान इतने महत्वपूर्ण है कि इस पर सतत् साहित्य सृजन होता रहता है और इसमें मिथक अलौकिक तत्वों का, अन्य कथाओं का समावेश होता रहता है और यह प्रेमाख्यान लोगों के मन का रजंन करते रहते हैं। ऐसे प्रेमाख्यान युगों युगों तक अमर रहते हैं। प्रेमाख्यान की कथाओं में दुख, दर्द, पीड़ा, प्रेम के साथ जुड़े रहते हैं और प्रेम को अमरता प्रदान करते हैं। उन्होंने वर्तमान परिपेक्ष्य में प्रेमाख्यान परम्परा की प्रासंगिकता सिद्ध करने के लिए इस तरह की और व्याख्यान मालाएं आयोजित की जानी चाहिए ऐसा सुझाव दिया।

इस ऑनलाईन व्याख्यानमाला में बड़ी संख्या में साहित्यकार,विद्ववान और शोधार्थी,विद्यार्थी जुडे रहे। जैसे मधु आचार्य आशावादी, डॉ गजेसिंह राजपुरोहित, श्याम सुन्दर भारती, गिरधरदान रतनू, भंवरलाल सुथार, सुखदेव राव, रणजीतसिंह पंवार, गोविन्द गुर्जर, सुरेश मुदगल, पुष्पा परिहार, राम रतन लटियाल, रिंकी आचार्य, विमला नागला, तरूण दाधीच, गौरीशंकर प्रजापत, उपस्थित थे।

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