जीवन के अंतिम क्षण तक राष्ट्र संगठित का भाव मन में रहा- विजयानंद
संघ के वरिष्ठ प्रचारक व विहिप के केंदीय मंत्री रहे धर्मनारायण की श्रद्धांजलि सभा में सुनाए स्मरण
जोधपुर(डीडीन्यूज),जीवन के अंतिम क्षण तक राष्ट्र संगठित का भाव मन में रहा- विजयानंद।विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय मंत्री व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक धर्मनारायण शर्मा के निधन पर भारत माता मंदिर विहिप कार्यालय में हुई शोक सभा में स्वयंसेवकों व कार्यकर्ताओं ने पुष्पांजलि देकर श्रद्धा सुमन अर्पित किए।
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विहिप प्रांत प्रचार प्रमुख अमित पाराशर ने बताया कि शोक सभा में उनके साथ कार्य करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी शांति प्रसाद ने स्मरण सुनाते हुए कहा 1959 में संघ प्रचारक बने। वे भीलवाड़ा, जयपुर, अजमेर सहित कई स्थानों पर प्रचारक रहते कार्य करते हुए 1984 से 1994 तक जोधपुर विभाग में प्रचारक रहे। तभी से तेजस्वी कार्यों को करते हुए संघ कार्य को आगे बढ़ाया।
उनकी आवाज में स्वाभाविक गर्जन से बड़ी सभाओं को संबोधित करते हुए लोगों को सम्मोहित कर लेते थे। आप के अध्ययन की शक्ति तेज होने से अनेक विषयों पर जानकारी व हिंदू आचार संहिता का मसौदा तैयार किया व अनेक पुस्तकें भी लिखी।अपना सर्वस्व जीवन राष्ट्र,धर्म, संस्कृति,समाज के लिए समर्पित करते हुए अंतिम क्षण तक हिंदुत्व के लिए चिंतन करते हुए काम किया।
मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक विजयानंद ने कहा कि संघ प्रचारक की यह भी आकांक्षा नहीं होती कि जाने के बाद उनको कोई याद रखे नींव के पत्थर होकर जीते और अंत नींव में ही विसर्जित हो जाते हैं। तेरा वैभव अमर रहे मां, हम दिन चार रहे न रहें के ध्येय को चरितार्थ करते हैं। उन्होंने कार्यों को विशेष योजनाबद करने की विलक्षणता से सामान्य स्वयंसेवक के साथ जुड़ते उन्हीं जैसे कर्मयोगियों के प्रयास से आज यह पौधा विराट वट वृक्ष बना है।
विहिप प्रांत मंत्री परमेश्वर जोशी ने स्मरण बताते हुए कहा कि संघ शिक्षा वर्गों में उनकी कठोर पद्धति से कार्यकर्ताओं को उस समय असहज भाव लगता लेकिन शिक्षण प्राप्त होने के बाद निपुण होकर निष्ठावान ध्यानिष्ठ कार्यकर्ता का निर्माण होता।
शोक सभा में डॉ राम गोयल,पंकज भंडारी,विभाग प्रचारक मंगलाराम, कार्यवाह मनोहर सिंह व विहिप संघ से जुड़े वरिष्ठ प्रचारक, पदाधिकारी कार्यकर्ता उपस्थित थे। पंडित राजेश दवे ने गीता के 15 वें अध्याय का पाठ का वाचन किया। संचालन महेंद्र सिंह राजपुरोहित ने किया।
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