राष्ट्रीय मंच पर राजस्थान की हस्तशिल्प विरासत का प्रदर्शन
- The Kunj में IITजोधपुर-JCKIF
- कारीगरों की सतत आजीविका हेतु विज्ञान,प्रौद्योगिकी एवं पारंपरिक ज्ञान का समन्वय
- वस्त्र मंत्रालय एवं प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय के अनुरूप IIT जोधपुर की समर्थित पहल
- संस्थागत एवं नवाचार-आधारित सहयोग से शिल्प इकोसिस्टम को सशक्त बनाना
जोधपुर(दूरदृष्टीन्यूज),राष्ट्रीय मंच पर राजस्थान की हस्तशिल्प विरासत का प्रदर्शन। विज्ञान,प्रौद्योगिकी और नवाचार के साथ पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों के समन्वय के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को सुदृढ़ करते हुए,भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान जोधपुर IIT समर्थित जोधपुर सिटी नॉलेज एंड इनोवेशन फाउंडेशन (JCKIF) ने भारत सरकार के वस्त्र मंत्रालय की प्रमुख पहल द कुन्ज,नई दिल्ली के साथ सहयोग कर,राजस्थान की समृद्ध पारंपरिक हस्तशिल्प विरासत को राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित किया है।
JCKIF द्वारा क्यूरेट एवं आयोजित यह शिल्प प्रदर्शनी-जो IIT जोधपुर के इकोसिस्टम में निहित एक संस्थागत पहल है। वस्त्र मंत्रालय के विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) कार्यालय के निकट सहयोग से शुक्रवार को दोपहर 12 बजे,द कुन्ज,नेल्सन मंडेला मार्ग,नई दिल्ली में उद्घाटित की गई। यह प्रदर्शनी 07 जनवरी 2026 तक आम जनता के लिए खुली रहेगी।
प्रदर्शनी का उद्घाटन भारत सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. अजय कुमार सूद ने मुख्य अतिथि के रूप में किया। इस अवसर पर डॉ. परविंदर मैनी,वैज्ञानिक सचिव,प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय; प्रो. अविनाश कुमार अग्रवाल,निदेशक, IIT जोधपुर एवं चेयरमैन,बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स, JCKIF; वस्त्र मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी-डॉ.एम.बीना, विकास आयुक्त (हथकरघा) एवं अनुज ओझा,संयुक्त विकास आयुक्त (हस्तशिल्प);डॉ.आकांक्षा चौधरी, फैकल्टी इंचार्ज,JCKIF; कर्नल रोहित खरे (सेवानिवृत्त),सीईओ, JCKIF-सहित अनेक गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।
समारोह को संबोधित करते हुए प्रो. अजय कुमार सूद ने सतत आजीविका सृजन एवं व्यापक सामाजिक,आर्थिक प्रभाव के लिए पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों के साथ विज्ञान,प्रौद्योगिकी और नवाचार के एकीकरण के महत्व को रेखांकित किया। उन्होंने प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय के मार्गदर्शन एवं परामर्श में JCKIF द्वारा अपनाए गए संरचित दृष्टिकोण की सराहना की,जो कारीगरों को संस्थानों,तकनीक और बाज़ारों से जोड़ने वाला एक सशक्त इकोसिस्टम विकसित कर रहा है।
डॉ. पारविंदर मैनी ने स्वदेशी शिल्पों को सुदृढ़ करने और नवाचार- आधारित मूल्य संवर्धन को बढ़ावा देने में समन्वित संस्थागत सहयोग के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने जमीनी स्तर की रचनात्मकता को राष्ट्रीय नवाचार और स्थिरता प्राथमिकताओं से जोड़ने वाली पहलों के प्रति PSA कार्यालय की निरंतर प्रतिबद्धता को दोहराया। इस अवसर पर प्रो. अविनाश कुमार अग्रवाल,निदेशक IIT जोधपुर ने कहा कि JCKIF, IIT जोधपुर की उस व्यापक दृष्टि को प्रतिबिंबित करता है,जिसके अंतर्गत शैक्षणिक और तकनीकी क्षमताओं को समावेशी सामाजिक प्रभाव में परिवर्तित किया जाता है। उन्होंने प्रौद्योगिकी-सक्षम समाधान, डिज़ाइन नवाचार,क्षमता निर्माण तथा रणनीतिक संस्थागत साझेदारियों के माध्यम से कारीगर समुदायों को सशक्त बनाने पर JCKIF के मिशन-उन्मुख फोकस को दोहराया और प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार कार्यालय द्वारा प्रदान किए गए सतत मार्गदर्शन के लिए आभार व्यक्त किया।
द कुन्ज में JCKIF प्रदर्शनी राजस्थान के पारंपरिक हस्तशिल्प एवं हथकरघा की एक जीवंत और व्यापक झलक प्रस्तुत करती है, जिसे एक प्रमुख राष्ट्रीय मंच पर प्रदर्शित किया गया है। प्रदर्शनी में हड्डी एवं सींग शिल्प,ब्लॉक प्रिंट वस्त्र,सलावास दरी,लेदर मोज़री, आर्ट मेटल क्राफ्ट और बीड ज्वेलरी सहित विविध हस्तनिर्मित उत्पाद प्रदर्शित किए गए हैं,जो राज्य की सांस्कृतिक विविधता और कारीगरों की उत्कृष्टता को दर्शाते हैं।
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इस अवसर पर JCKIF ने वस्त्र मंत्रालय के विकास आयुक्त (हस्तशिल्प) कार्यालय द्वारा प्रदान किए गए सहयोग के लिए भी आभार व्यक्त किया,जिसने कारीगरों की भागीदारी सुनिश्चित करने और क्षेत्रीय शिल्प समुदायों के साथ सुदृढ़ संपर्क स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वसंत कुंज स्थित द कुन्ज की पहली मंज़िल पर स्थित दृष्टि में एक प्रदर्शनी-सह-विक्रय का आयोजन किया जा रहा है,जिसमें राजस्थान की पारंपरिक कलाओं और हस्तशिल्प को प्रदर्शित किया गया है।प्रदर्शनी में विभिन्न पारंपरिक कलाकृतियाँ,हस्तनिर्मित वस्तुएँ तथा विशिष्ट रंग संयोजन प्रस्तुत किए गए हैं,जो राजस्थान की समृद्ध सांस्कृतिक और कलात्मक विरासत को दर्शाते हैं। यह आयोजन आगंतुकों को क्षेत्र की पारंपरिक शिल्प परंपराओं से परिचित होने का अवसर प्रदान करता है।
यह प्रदर्शनी IIT जोधपुर समर्थित शिक्षा जगत,नीति संस्थानों और कारीगर इकोसिस्टम के बीच सहयोग का एक सशक्त उदाहरण प्रस्तुत करती है,जो यह दर्शाती है कि नवाचार,स्थिरता और बेहतर बाज़ार पहुँच के माध्यम से पारंपरिक शिल्पों को राष्ट्रीय एवं वैश्विक स्तर पर कैसे सुदृढ़ किया जा सकता है।
