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‘सिसकी-सिसकी इन साँसों में कैसे लगे पलीते हैं,लुटते छिपते इस इंसान के पीछे पागल चीते हैं’

  • साम्प्रदायिक सौहार्द,प्रेम,देश भक्ति, समृद्ध राजस्थानी संस्कृति,भाषायी सौंदर्य और व्यंग्य से जुड़ी रचनाएं गूंजी
  • डॉ.प्रभा ठाकुर, इकराम राजस्थानी, सम्पत सरल,डॉ.आईदान सिंह भाटी, दुर्गादान सिंह एवं जगदीश सिंह सोलंकी ने अपनी कविताओं से समा बाँध दिया

जोधपुर,राजस्थान साहित्य उत्सव के पहले दिन शनिवार रात उम्मेद उद्यान के जनाना बाग में आयोजित कवि सम्मेलन का आनंद लेने बड़ी संख्या में श्रोताओं ने पहुंचकर काव्य रस का रसास्वादन किया। साहित्यकारों के साथ ही साहित्यप्रेमियों और जोधपुर वासियों ने जी भर कर कवि सम्मेलन का लुत्फ लिया। कला एवं संस्कृति मंत्री डॉ.बीडी कल्ला कवि सम्मेलन में मुख्य अतिथि थे। कला प्रेमियों का उत्साह देखते ही बना। मीरा बाई मुख्य सभागार श्रोताओं से खचाचख भरा रहा। डॉ.कुमार विश्वास ने इस कवि सम्मेलन का संचालन किया।

काव्य जगत के पुरोधाओं ने साम्प्रदायिक सौहार्द,प्रेम,देशभक्ति, समृद्ध राजस्थानी संस्कृति,भाषायी सौंदर्य और व्यंग्य से जुड़ी रचनाएं प्रस्तुत की। सम्मेलन में डॉ.प्रभा ठाकुर, इकराम राजस्थानी,सम्पत सरल,डॉ.आईदान सिंह भाटी, दुर्गादान सिंह एवं जगदीश सिंह सोलंकी ने एक से बढ़कर एक कविताओं से सम्मेलन में चार चाँद लगा दिए।

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कवि सम्मेलन का संचालन कर रहे डॉ.कुमार विश्वास ने ‘‘मुस्कुराती जिंदगानी चाहिए,शब्द की जागृत कहानी चाहिए,सारी दुनिया अपनी हो जाती है,बस एक उसकी मेहरबानी चाहिए.पर खूब दाद बटोरी। मंच संचालन के दौरान ‘‘सुनते हैं कि अपने ही थे घर लूटने वाले,अच्छा हुआ मैंने ये तमाशा नहीं देखा..पर श्रोताओं को तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। कवि डॉ.आईदान सिंह भाटी ने राजस्थानी भाषा के लालित्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने ‘सिसकी-सिसकी इन साँसों में कैसे लगे पलीते हैं, लुटते छिपते इस इंसान के पीछे पागल चीते हैं, कहीं-कहीं पर चौराहों पर बुझती बाती है,मिल जाए तो याद दिलाना हम उनके मन मीते हैं।’

इकराम राजस्थानी ने ‘‘जुड़ा इस देश की माटी से मेरा नाम रहता है,ये धरती राम की है,यहां इकराम रहता है…’’ सुनाते हुए साम्प्रदायिक सौहार्द का संदेश दिया।’उजाले पाने की खातिर वो मुट्ठी तानता भर है, जुबां से कुछ न बोले पर तिरंगा जानता सब है’ सरीखी कविताओं के साथ जगदीश सोलंकी ने माहौल को देशभक्ति की भावना से भर दिया। डॉ.कुमार विश्वास ने सम सामयिक हालातों पर तीखी और धारदार कविताएं पेश करते हुए श्रोताओं को झूमने और काव्य पंक्तियां दोहराने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने कान्हा पर केन्द्रित रचनाओं से प्रेम और श्रृंगार के रंग-रसों की वृष्टि करते हुए भक्ति और द्वापरयुगीन परिवेश और संबंधों का बेहतरीन शब्दचित्र प्रस्तुत किया।

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