बूढ़ी काकी का यादगार मंचन

नाट्य महोत्सव के समापन पर प्रेमचंद के शहर वाराणसी के दल द्वारा किया गया मंचन

जोधपुर, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के तत्वावधान में रंग संस्था आकांक्षा संस्थान द्वारा आयोजित तीन दिवसीय प्रेमचंद रंग महोत्सव के समापन पर रविवार सायं जयनारायण व्यास स्मृति भवन में सेतु सांस्कृतिक केंद्र वाराणसी की ओर से लोक नाट्य शैली में मुंशी प्रेमचंद की कहानी “बूढ़ी काकी” का स्मरणीय मंचन सलीम राजा के निर्देशन में किया गया।

बूढ़ी काकी का यादगार मंचन

बूढ़ी काकी कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की वह कालजयी कृति है जिसे जब भी पढ़ा जाए आंखें छलक ही पड़ती है। बूढ़ी काकी ने अपना सारा यौवन श्रम करते ही निकाल दिया। अपने भतीजे बुद्धिराम और उसकी पत्नी को अपनी संतान की तरह यह सोचकर प्यार दिया कि वही दोनों बुढ़ापे में संतान का सुख देंगे लेकिन समाज में स्वार्थी लोगों की कोई कमी नहीं। वही भतीजा जिसके नाम बूढ़ी काकी ने अपनी सारी संपत्ति लिख दी थी, उसके ही घर में काकी के लिए खाने के लाले पड़ गए। बुद्धिराम के बड़े बेटे के तिलक के अवसर पर जब घर में काकी की पसंद के सारे पकवान बने और गांव भर ने छक कर खाया। सारे वातावरण में घी और मसाले की सुगंध भर गई। ऐसे में काकी अपने सामने पकवान भरी थाली आने के इंतजार में बैठी रही। कोई उसे पूछने नहीं आया। सारे मेहमान खा कर चले गए और काकी भूख से दोहरी होती बैठी रही। आखिर सब्र का बांध टूट गया। देर रात गए काकी लाठी के सहारे कोठरी से सरकती हुई आंगन में पहुंची और जूठी पत्तल चाटने लगी। यह दृश्य जब रूपा ने देखा तो उसका कलेजा फट गया। रोती हुई रूपा झटपट पकवानों से भरी थाली लेकर आई और काकी बिना किसी शिकवा शिकायत के नन्हे बच्चों की तरह अपने पसंदीदा पकवानों पर टूट पड़ी। सारा तिरस्कार भूल कर पकवान का आनंद लेने में मगन हो गई। रोम रोम से आशीष देने लगी। बुद्धिराम और रूपा प्रार्थना करते रहे कि भगवान उनके अपराध को क्षमा करें। नाटक में अंजना झा बूढ़ी काकी, सत्यम मिश्रा बुद्धिराम, राजलक्ष्मी मिश्रा रूपा, चैतन्या मिश्रा लाड़ली, लाक्षी मिश्रा गुड़िया, सृष्टि सिंह रंगीली, वत्सल शर्मा रंगा, कुसुम मिश्रा ग्रामीण महिला, नितिन मलिक ग्रामीण पुरुष के अहम किरदारों में खूब फबे। गीत संगीत संयोजन नागेन्द्र शर्मा, ढोलक प्यारे अली, मेकअप मनोज मलिक, सेट/ड्रेस कुसुम मिश्रा, लाइट व संगीत संचालन सत्यम मिश्रा, नाट्य रूपांतरण मोहम्मद सलीम राही का और कुशल निर्देशन सलीम राजा का था।

नाटक ने शुरुआत से लेकर अंत तक दर्शकों को बांधे रखा और इस बार भी दर्शकों ने पूर्व के दिनों की तरह नाटक के कलाकारों और निर्देशक से कहानी, चरित्र व अभिनय के बारे में बेबाक सवांद किया, जो रंगकर्म में आम जनता की बढती रूचि को दर्शाता है। बीते तीन दिनों में कुल चार नाटकों के लगभग चालीस कलाकार शहर भर में मुंशी प्रेमचंद की स्मृति को सजीव कर कथा सम्राट को एक अनूठी आदरांजलि पेश कर गए।

अंत में समारोह के आयोजक निर्देशक व संस्था के सचिव डॉ. विकास कपूर ने नाटक के निर्देशक सलीम राजा को स्मृति चिन्ह भेट किया और आभार ज्ञापित किया. पूरे रंग महोत्सव के दौरान अकादमी के कार्यक्रम अधिकारी अरुण कुमार पुरोहित और स्थानीय रंगकर्मी सफी मोहम्मद, राजकुमार चौहान, मोहम्मद इमरान, अफ़ज़ल हुसैन, नेहा मेहता, भरत मेवाड़ा, शरद शर्मा, मोती जांगिड़ का विशेष सहयोग रहा। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ रंगकर्मी रमेश बोहरा ने किया।

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