मध्यकालीन चारण साहित्य, राजस्थानी साहित्य की आत्मा स्वरूप है-डॉ.गजादान चारण
जोधपुर, जेएनवीयू के राजस्थानी विभाग द्वारा ऑनलाईन फेसबुक लाइव पेज पर गुमेज व्याख्यानमाला को सम्बोधित करते हुए राजस्थानी साहित्य के ख्यातनाम हस्ताक्षर डॉ. गजादान चारण ने मध्यकालीन चारण साहित्य परम्परा पर कहा कि राजस्थानी भाषा का चारण साहित्य राजस्थानी साहित्य की आत्मा स्वरूप है।
राजस्थानी विभागाध्यक्ष एवं गुमेज व्याख्यानमाला की संयोजक डॉ. मीनाक्षी बोराणा ने बताया कि राजस्थानी साहित्य के अनछुए पहलुओं को बाहर लाने व राजस्थानी भाषा के अध्यार्थियों, शोधार्थियों व आपजन के ज्ञान वर्धन हेतु विभाग ने वेब श्रृंखला की महत्वपूर्ण शुरुआत की है। इसी योजनांतर्गत आसन्न व्याख्यानमाला में डॉ.गजादान चारण ने मध्यकालीन चारण साहित्य पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए कहा कि यह लगभग 500 वर्षाें की कालावधि का साहित्य है जिसमें अचलदास खींची की वचनिका से लेकर वीर सतसई तक का प्रमुख ग्रन्थ हैं।
डॉ. चारण ने कहा कि यह साहित्य वैविध्यपूर्ण है जिसमे बात,ख्यात, विगत,वचनिका,दवावेत,रासौ, विलास,वेलि,दुहा,झमाल,कुण्डलियां, निसाणी,रूपक, छंद, छप्पय, कवित, रसावला, गुण सतसई, बीसी, ईक्सी, बावनी आदि इस प्रकार के संख्यावाचक रूप मिलते जो चारण साहित्य की विविधता को प्रदशित करते हैं।
गजादान ने कहा कि डिंगल गीत तो चारण साहित्य ऐसी निराली विधा है जो कोई दूसरी भाषा के साहित्य में देखने को नही मिलती। अकेला गीत छंद ऐसा छंद है जिसके 82 से 120 अलग-अलग भेद बाये जाते हैं और इन डिंगल छंदों को पढने की एक अलग शैली होती है। जिसे प्रपाठ कहते हैं। इसी लिए इन गीत छंदों को लिखने और पढ़ने में साहित्यकारों ने खूब पसंद किया है। उन्होंने कहा कि मध्यकालीन चारण साहित्य का योगदान अपनी शौर्य प्रदान संस्कृति के निर्माण और परित्राण में प्राण स्वरूप रहा है। यह साहित्य सामाजिक चेतना का संचारण और क्रान्ति का कारण रहा है।
चारण स्वतंत्रता का समर्थक, पौरूष का प्रसंशक और प्रगति का पोशक होने के साथ ही युग चेता,निर्भिक नेता रहा है। अपने युग के चारण साहित्य बारे मे बताते हुए चारण ने कहा कि चारण कवियों ने अपनी वाणी से उत्कृष्ठता का अभिनंदन और निकृष्ठता का निंदन अपनी सहज वृति से किया। सिद्धान्त और स्वाभिमान के लिए संघर्ष करने वाले बागी वीरों का अनुरागी रहा है।
उन्होंने कहा कि चारण साहित्य राजस्थानी साहित्य का प्रर्याय है। क्योंकि आदिकाल और मध्यकाल के चारण साहित्य में कवियों ने अपनी कलम से तत्कालीन साहित्य भण्डार को भरा है। उस समय की रचनाओं को पढे तो विचार,वाणी और व्यवहार के तारतम्यता की त्रिवेणी चारण साहित्य में देखने को मिलती है।
स्वतंत्रय चेतना का भाव इस साहित्य में भरा पड़ा है। इन कवियों ने विदेशी आक्रांताओं से बचाने के लिए अपने स्वाभिमान,राष्ट्रीय चेतना,स्वामी भक्ति को बचाने के लिए प्रयास किए और राजाओं को इन विदेशी आक्रांताओं से प्रभावित होने से रोका। मध्यकालीन चारण साहित्य उतरदायित्व बोध, राष्ट्रीय चेतना,वीरत की किरत, गुण पूजा, प्रशस्ति, ऐतिहासिक गौरव स्मरण, भक्ति की भागीरथी,नीति के नगीने,विश्व बंधुत्व,सांप्रदायिक सौहार्द आदि के बारे में उदाहरण सहित बताया।
इस ऑनलाईन व्याख्यानमाला में रमेश बोराणा,डॉ गजेसिंह राजपुरोहित, डॉ.धनंजया अमरावत, लक्ष्मीकांत व्यास, गिरधरदान रतनू, रवि पुरोहित भंवरलाल सुथार, सुखदेव राव, विमला नागला,तरूण दाधीच,गौरीशंकर प्रजापत, डॉ उम्मेदसिंह, डॉ. इन्द्रदान चारण, नमामी शंकर आचार्य,विक्रम राजपराुहित, प्रहलाद सिंह, शारदा भारद्वाज, महेन्द्र सिंह छायण, डॉ अनिता,ओमकार सिंह सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार,विद्ववान और शोधार्थी, विद्यार्थी जुड़े थे।
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