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शब्द संदर्भ:-(104) गोष्ठी,संगोष्ठी और परिसंवाद

लेखक  – पार्थसारथि थपलियाल

जिज्ञासा
फरीदाबाद से हेम सिंह जानना चाहते हैं-गोष्ठी,संगोष्ठी और परिसंवाद के बारे में।

समाधान

गोष्ठी शब्द मूलतः गाय को बांधने या गायों के खड़े होने की जगह का सूचक है। हमारे देश के गांवों में अब भी यह परंपरा है कि गायों को बांधने की जगह घर से अलग ही होती है। अगर गाय,बैल,भैंस,बकरी,भेड़,घोड़ा या कोई अन्य जानवर भी है तो भी उन्हें एक बाड़े में भी अपने-अपने ग्रुप में ही रखा जाता है। इसका आशय यह कि जानवर अपनी-अपनी बोली/भाषा में अपनी बात कर सकें। समान भाषा और समान बोध होना किसी विषय को आसानी से जानने-समझने का अच्छा माध्यम है।

संस्कृत में संवाद के लिए समूह चर्चा, गोष्ठी,प्रवचन,ज्ञानचर्चा,संबोधन, संभाषण,व्याख्यान और शास्त्रार्थ प्रमुख विधाएं रही हैं। इन्ही गोष्ठियों का रूप ग्राम चौपाल रही हैं जो हमारे ग्रामीण अंचल में अनौचरिक बैठक के स्थान रहे हैं।
गुरुकुलों में विभिन्न विषयों पर महान आचार्यों और गुरुओं द्वारा अपने-अपने सिद्ध विषयों पर ज्ञान बांटा जाता था। हमारे उपनिषदों, पुराणों, आगम और निगम ग्रंथों में इस परंपरा के प्रमाण उपस्थित हैं। मुनियों द्वारा ऋषियों से पूछा जाता रहा है। नारदीय शिक्षा,भरतमुनि का नाट्य शास्त्र इसके अच्छे उदाहरण हैं। पुराणों में हम अक्सर पढ़ते हैं- “वैश्यम्पायनो: वाच:” अथवा “सूतो: वाच:” ज्ञान बांटने की यह विधा गोष्ठी परंपरा ही है।

संगोष्ठी:- गोष्ठी शब्द पर “सं” उपसर्ग जुड़ने से बना शब्द है संगोष्ठी। संगोष्ठी एक व्यापक विचार मंथन है। यह भी बुद्धिजीवियों और वैज्ञानिकों का उपलब्ध ज्ञान बांटने का एक प्रकार है। अंग्रेज़ी में इसे सेमिनार कहते हैं। अक्सर किसी एक विषय के विभिन्न पहलुओं पर विद्वानों द्वारा अपने-अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए जाते हैं। यह एक सुनियोजित आयोजन होता है जिसे व्ययपक रूप से प्रचारित किया जाता है। सुविज्ञ वक्ताओं और शोधकर्ताओं को अपना मंतव्य व्यक्त करने का अवसर दिया जाता है। विद्वानों द्वारा इसकी समीक्षा की जाती है। इसकी रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है। दुर्गासप्तशती के दूसरे अध्याय में महिषासुर वध के लिए देवताओं द्वारा एक स्थान पर एकत्र होकर विमर्श करना,अपनी-अपनी सिद्धियों को वैज्ञानिक ढंग से प्रकट करना भी संगोष्ठि था।

परिसंवाद:- अभिव्यक्ति की वाद, विवाद,संवाद,गोष्ठी,संगोष्ठी का एक रूप परिसंवाद भी है। परिसंवाद के आयोजन में दिए गए एक विषय पर वक्ता अपना-अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं, जिस पर श्रोताओं की जिज्ञासा का उत्तर भी वक्ता को देना होता है। परिसंवाद में विषय पर मतभिन्नता भी हो सकती है। अंत में अध्यक्ष सभी वक्ताओं के विषय पर अध्यक्षीय उद्बोधन के साथ अपनी बात रखते हैं।

“यदि आप भी जानना चाहते हैं किसी हिंदी शब्द का अर्थ व व्याख्या तो अपना प्रश्न यहां पूछ सकते हैं।”

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